HI/Prabhupada 0032 - मुझे जो कुछ भी कहना था, मैने अपनी पुस्तकों में कह दिया है
Arrival Speech -- May 17, 1977, Vrndavana
प्रभुपाद: तो मैं बोल नहीं सकता हूँ । मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रहा हूँ । मैं अन्य स्थानों को जाने वाला था जैसे चंडीगढ़ कार्यक्रम, लेकिन मैंने कार्यक्रम रद्द कर दिया क्योंकि मेरा स्वास्थ्य बहुत खराब हो रहा है । तो मैंने वृन्दावन आना पसंद किया । अगर मृत्यु को अाना है तो वह यहां अाए । तो नया कहने को कुछ भी नहीं है । मुझे जो कुछ भी कहना था, मैने अपनी पुस्तकों में कह दिया है । अब तुम उसे समझने की कोशिश करो और अपना प्रयास जारी रखो । मैं उपस्थित हूँ या नहीं, बात यह नहीं है । जैसे कृष्ण सनातन हैं, उसी तरह, जीव भी सनातन है । लेकिन कीर्तिर् यस्य स जीवति: "भगवान की जिसने सेवा की है वह हमेशा के लिए जीवित रहता है ।" तो तुमहे श्री कृष्ण की सेवा करने के लिए सिखाया गया है, और कृष्ण के साथ हम सदा रहेंगे । हमारा जीवन अनन्त है । न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ गी २।२०) । शरीर का अस्थायी नष्ट होना, कोइ बात नहीं है । शरीर नष्ट होने के लिए ही बना है । तथा देहान्तर प्रप्ति: (भ गी २।१३) । तो अनन्त हो जाअो कृष्ण की सेवा करके । बहुत बहुत धन्यवाद ।
भक्त: जया !