HI/Prabhupada 0349 - मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा: Difference between revisions
(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0349 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1976 Category:HI-Quotes - Arr...") |
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address) |
||
Line 7: | Line 7: | ||
[[Category:HI-Quotes - in USA, New York]] | [[Category:HI-Quotes - in USA, New York]] | ||
<!-- END CATEGORY LIST --> | <!-- END CATEGORY LIST --> | ||
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | |||
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0348 - अगर पचास साल हम केवल हरे कृष्ण मंत्र का जाप करते हैं, वह पूर्ण होगा यकीनन|0348|HI/Prabhupada 0350 - हम कोशिश कर रहे हैं लोगों को योग्य बनाने के लिए ताकि वे कृष्ण को देख सकें|0350}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | <!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | ||
<div class="center"> | <div class="center"> | ||
Line 15: | Line 18: | ||
<!-- BEGIN VIDEO LINK --> | <!-- BEGIN VIDEO LINK --> | ||
{{youtube_right| | {{youtube_right|9rZpjd3YVHM|मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा <br/>- Prabhupāda 0349}} | ||
<!-- END VIDEO LINK --> | <!-- END VIDEO LINK --> | ||
<!-- BEGIN AUDIO LINK --> | <!-- BEGIN AUDIO LINK --> | ||
<mp3player> | <mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/760709AD.NY_clip.mp3</mp3player> | ||
<!-- END AUDIO LINK --> | <!-- END AUDIO LINK --> | ||
Line 27: | Line 30: | ||
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT --> | <!-- BEGIN TRANSLATED TEXT --> | ||
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को पता होना चाहिए अलग अलग स्थितियों, विभिन्न | इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को पता होना चाहिए अलग-अलग स्थितियों, विभिन्न जीवनों के बारे में । वे नहीं जानते । उस दिन हमारे डॉ. स्वरूप दामोदर बोल रहे थे, कि जो भी वैज्ञानिक सुधार या शैक्षणिक सुधार उन्होंने किया है, दो चीजों की कमी है । वे नहीं जानते कि आकाश में ये अलग-अलग ग्रह क्या हैं । वे नहीं जानते । वे केवल कल्पना कर रहे हैं । वे चंद्र ग्रह, मंगल गृह, पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । यह भी संभव नहीं है । अगर तुम चले भी जाओ, एक या दो ग्रहों पर, लाखों ग्रह हैं, तुम उनके बारे में क्या जानते हो ? कोई ज्ञान नहीं है । और एक और ज्ञान: उन्हे जीवन की समस्याएँ क्या हैं, यह पता नहीं है । दो बातें की कमी है उनमें । और हम इन दो चीजों के बारे में जानते हैं । | ||
जीवन की समस्या यह है कि हम वंचित हैं, हम दूर हैं कृष्णभावनामृत से, इसलिए हम पीड़ित हैं । अगर तुम कृष्णभावनामृत को अपनाते हो, तो सारी समस्या हल हो जाती है । और जहाँ तक ग्रह प्रणाली का सवाल है, तो कृष्ण तुम्हें मौका दे रहे हैं, तुम जहाँ जाना चाहो तुम जा सकते हो । लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति चयन करेगा, मद्याजीनो अपि यान्ति माम् ([[HI/BG 9.25|भ.गी. ९.२५]]) । "जो कृष्ण भावनाभावित हैं, वे मेरे पास आते हैं ।" तो इन दोनों के बीच अंतर क्या है ? अगर मैं चंद्र ग्रह या मंगल ग्रह या ब्रह्मलोक चला भी जाऊँ, कृष्ण कहते हैं, अा ब्रह्म भुवनाल् लोका: पुनर अावर्तिनो ([[HI/BG 8.16|भ.गी. ८.१६]]) । तुम ब्रह्मलोक जा सकते हो, लेकिन क्षिणे पुण्ये पुण्यो मर्त्य-लोकम् विशन्ति: "तुम्हें फिर से वापस आना होगा ।" और कृष्ण यह भी कहते हैं यद् गत्वा न निवर्तन्ते त धाम परमम मम ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]]) । मद् याजिनो अपि यान्ति माम । | |||
तो तुम्हे यह अवसर मिला है, कृष्ण भावनामृत । सब कुछ भगवद्गीता में स्पष्ट किया गया है, क्या चीज़ क्या है । इस अवसर को खोना नहीं चाहिए । मूर्ख मत बनो, तथाकथित वैज्ञानिकों या दार्शनिकों या नेताओं द्वारा गुमराह मत होओ। कृष्ण भावनामृत को अपनाअो । और यह संभव है केवल गुरु कृष्ण-कृपाय[[Vanisource:CC Madhya 19.151|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५१]]) । गुरु की कृपा से और कृष्ण की कृपा से तुम सभी सफलता प्राप्त कर सकते हो । यही रहस्य है । | |||
तो जो यह गुरू पूजा हम कर रहे हैं, यह स्वयं की उन्नति के लिए नहीं है, यह असली | :यस्य देव परा भक्तिर् | ||
:यथा देवे तथा गुरौ | |||
:तस्यैते कथिता हि अर्था: | |||
:प्रकाशन्ते महात्मन: | |||
:(श्वेताश्वतर उपनिषद ६.२३) | |||
तो जो यह गुरू पूजा हम कर रहे हैं, यह स्वयं की उन्नति के लिए नहीं है, यह असली शिक्षा है । तुम हर दिन गाते हो, वो क्या है ? गुरु मुख-पद्म-वाक्य... आर ना करिया ऐक्य । बस, यह अनुवाद है । मैं सच में तुम्हें बतता हूँ, जो थोड़ी भी सफलता इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को मिली है, मुझे बस विश्वास था मेरे गुरु महाराज के वचनों पर । तुम भी यही ज़ारी रखो । तो हर सफलता आएगी। | |||
बहुत-बहुत धन्यवाद । | |||
<!-- END TRANSLATED TEXT --> | <!-- END TRANSLATED TEXT --> |
Latest revision as of 18:34, 17 September 2020
Arrival Address -- New York, July 9, 1976
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को पता होना चाहिए अलग-अलग स्थितियों, विभिन्न जीवनों के बारे में । वे नहीं जानते । उस दिन हमारे डॉ. स्वरूप दामोदर बोल रहे थे, कि जो भी वैज्ञानिक सुधार या शैक्षणिक सुधार उन्होंने किया है, दो चीजों की कमी है । वे नहीं जानते कि आकाश में ये अलग-अलग ग्रह क्या हैं । वे नहीं जानते । वे केवल कल्पना कर रहे हैं । वे चंद्र ग्रह, मंगल गृह, पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । यह भी संभव नहीं है । अगर तुम चले भी जाओ, एक या दो ग्रहों पर, लाखों ग्रह हैं, तुम उनके बारे में क्या जानते हो ? कोई ज्ञान नहीं है । और एक और ज्ञान: उन्हे जीवन की समस्याएँ क्या हैं, यह पता नहीं है । दो बातें की कमी है उनमें । और हम इन दो चीजों के बारे में जानते हैं ।
जीवन की समस्या यह है कि हम वंचित हैं, हम दूर हैं कृष्णभावनामृत से, इसलिए हम पीड़ित हैं । अगर तुम कृष्णभावनामृत को अपनाते हो, तो सारी समस्या हल हो जाती है । और जहाँ तक ग्रह प्रणाली का सवाल है, तो कृष्ण तुम्हें मौका दे रहे हैं, तुम जहाँ जाना चाहो तुम जा सकते हो । लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति चयन करेगा, मद्याजीनो अपि यान्ति माम् (भ.गी. ९.२५) । "जो कृष्ण भावनाभावित हैं, वे मेरे पास आते हैं ।" तो इन दोनों के बीच अंतर क्या है ? अगर मैं चंद्र ग्रह या मंगल ग्रह या ब्रह्मलोक चला भी जाऊँ, कृष्ण कहते हैं, अा ब्रह्म भुवनाल् लोका: पुनर अावर्तिनो (भ.गी. ८.१६) । तुम ब्रह्मलोक जा सकते हो, लेकिन क्षिणे पुण्ये पुण्यो मर्त्य-लोकम् विशन्ति: "तुम्हें फिर से वापस आना होगा ।" और कृष्ण यह भी कहते हैं यद् गत्वा न निवर्तन्ते त धाम परमम मम (भ.गी. १५.६) । मद् याजिनो अपि यान्ति माम ।
तो तुम्हे यह अवसर मिला है, कृष्ण भावनामृत । सब कुछ भगवद्गीता में स्पष्ट किया गया है, क्या चीज़ क्या है । इस अवसर को खोना नहीं चाहिए । मूर्ख मत बनो, तथाकथित वैज्ञानिकों या दार्शनिकों या नेताओं द्वारा गुमराह मत होओ। कृष्ण भावनामृत को अपनाअो । और यह संभव है केवल गुरु कृष्ण-कृपायचैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५१) । गुरु की कृपा से और कृष्ण की कृपा से तुम सभी सफलता प्राप्त कर सकते हो । यही रहस्य है ।
- यस्य देव परा भक्तिर्
- यथा देवे तथा गुरौ
- तस्यैते कथिता हि अर्था:
- प्रकाशन्ते महात्मन:
- (श्वेताश्वतर उपनिषद ६.२३)
तो जो यह गुरू पूजा हम कर रहे हैं, यह स्वयं की उन्नति के लिए नहीं है, यह असली शिक्षा है । तुम हर दिन गाते हो, वो क्या है ? गुरु मुख-पद्म-वाक्य... आर ना करिया ऐक्य । बस, यह अनुवाद है । मैं सच में तुम्हें बतता हूँ, जो थोड़ी भी सफलता इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को मिली है, मुझे बस विश्वास था मेरे गुरु महाराज के वचनों पर । तुम भी यही ज़ारी रखो । तो हर सफलता आएगी।
बहुत-बहुत धन्यवाद ।