HI/Prabhupada 0360 - हम सीधे कृष्ण के निकट नहीं जाते हैं । हमें कृष्ण के दास से अपनी सेवा शुरू करनी चाहिए

Revision as of 18:35, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on SB 7.9.42 -- Mayapur, March 22, 1976

तो यहाँ, को नु अत्र ते अखिल-गुरो भगवान प्रयास । तो हर किसी को कुछ अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता है एहसान के लिए, लेकिन कृष्ण को आवश्यकता नहीं है । यही कृष्ण हैं । वे कुछ भी कर सकते हैं । वे दूसरों पर निर्भर नहीं हैं । दूसरे कृष्ण की मंजूरी पर निर्भर करते हैं, लेकिन कृष्ण को किसी की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है । इसलिए प्रह्लाद महाराज ने कहा भगवान प्रयास । प्रयास, सलाह दी जाती है प्रयास न करने की, विशेष रूप से भक्तो को । कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिसमें बहुत ही कठिन प्रयास की आवश्यकता है । नहीं । हमें केवल साधारण चीज़ों को करना चाहिए जो संभव है । बेशक, एक भक्त जोखिम लेता है । जैसे हनुमान की तरह । वे प्रभु रामचंद्र के नौकर थे ।

तो भगवान रामचंद्र सीतादेवी के बारे में जानकारी चाहते थे । तो उन्होंने विचार नहीं किया, "मैं समुद्र की दूसरी तरफ, लंका, कैसे जाऊँ ?" वे बस, प्रभु रामचंद्र पर विश्वास करते हैं, "जय राम," उस पर कूद गए । रामचंद्र को एक पुल का निर्माण करना था । बेशक, वह पुल भी अद्भुत है क्योंकि ये बंदर पत्थर ला रहे थे, और वे समुद्र में फेंक रहे हैं, लेकिन पत्थर तैर रहे थे । तो कहाँ है तुम्हारा गुरुत्वाकर्षण का कानून ? एह ? पत्थर पानी पर तैरता है ।

यह वैज्ञानिकों द्वारा नहीं किया जा सकता है । लेकिन प्रभु रामचंद्र की इच्छा थी, एक पत्थर तैरने लगा । वरना कितने पत्थर हमें समुद्र में फेंकने होंगे ताकि वो एक पुल के स्तर पर आ जाए ? ओह, यह संभव नहीं था । यह संभव था, सब कुछ संभव था, लेकिन रामचंद्र, प्रभु रामचंद्र, चाहते थे, "यह सरल हो जाए । तो उन्हें पत्थर लाने दो और वह तैरेगा । फिर हम जाएँगे ।" तो पत्थर के बिना वे जा सकते हैं, लेकिन वे बंदरों से कुछ सेवा कराना चाहते थे । कई बंदर थे ।

बरो बरो बदरे, बरो बरो पेट, लंका डिंगके, मत करे हेत। कई अन्य बंदर थे, लेकिन एकदम हनुमान की तरह सक्षम नहीं । इसलिए उन्हें भी कुछ मौका दिया गया कि, "तुम कुछ पत्थर ले कर अाअो ।" तुम हनुमान की तरह समुद्र के ऊपर से कूद नहीं सकते, तो तुम पत्थर लेकर अाओ, और मैं पत्थरों को तैरने के लिए कहूँगा ।" तो कृष्ण कुछ भी कर सकते हैं । अंगानि यस्य सकलेन्द्रिय वृत्तिमंति । वे कुछ भी कर सकते हैं । हम उनकी कृपा के बिना कुछ नहीं कर सकते ।

तो प्रह्लाद महाराज अनुरोध करते हैं कि, "अगर आप हम पर दयालु हो जाते हैं, यह आप के लिए एक महान काम नहीं है, क्योंकि आप जो भी चाहें वो कर सकते हैं । क्योंकि आप निर्माण, पालन और विनाश का कारण हैं, तो यह आप के लिए मुश्किल नहीं है ।" इसके अलावा, मूढेषु वै महद-अनुग्रह अार्त-बंधो । आमतौर पर, जो लोग अार्त-बंधो हैं, पीड़ित मानवता के दोस्त, वे विशेष रूप से मूढों पर, दुष्टो पर, कृपा करते हैं । कृष्ण उस प्रयोजन से आते हैं क्योंकि हम में से हर एक, हम मूढ हैं । दुष्कृतिनो । न माम दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते (भ.गी. ७.१५) ।

आमतौर पर क्योंकि हम पापी हैं, क्योंकि हम मूढ हैं, हम कृष्ण के प्रति समर्पण नहीं करते हैं । न माम प्रपद्यन्ते । जो कृष्ण के प्रति समर्पण नहीं करता है, वह दुष्कृतिन, मूढा, नराधमा, माययापहृत - ज्ञान के रूप में वर्गीकृत किया जाता है । कृष्ण की इच्छा से स्वतंत्र कुछ भी करना कभी संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए कृष्ण की कृपा के बिना, स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए जो कोशिश कर रहे हैं, वे मूढ हैं, सब दुष्ट । वे स्वीकार नहीं करेंगे जो कृष्ण कहते हैं, और वे कृष्ण के बिना कुछ कानून स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं । "भगवान की कोई जरूरत नहीं है ।" यह है, ज़्यादातर वैज्ञानिक, वे उस तरह कहते हैं ।

"अब हमारे पास विज्ञान है । हम सब कुछ कर सकते हैं ।" वे मूढा हैं । यह संभव नहीं है । स्वतंत्र रूप से तुम कृष्ण की कृपा के बिना नहीं कर सकते हो । इसलिए सबसे अच्छी बात है हमेशा कृष्ण की कृपा पाने की कोशिश करो । और तुम सीधे कृष्ण की कृपा की कामना नहीं कर सकते हो । वह भी एक और बात है । किम तेन ते प्रिय-जनान अनुसेवताम् न: तुम कृष्ण तक नहीं पहुँच सकते बिना उनके भक्त की कृपा के । यस्य प्रसादाद् भगवत प्रसाद: । तुम सीधे भगवान की कृपा की कामना नहीं कर सकते । यह एक और मूर्खता है ।

तुम्हें कृष्ण के सेवक के माध्यम से जाना चाहिए । गोपी भर्तुर् पद-कमलयोर् दास-दास-दासानुदास: । यह हमारी प्रक्रिया है । हम सीधे कृष्ण के निकट नहीं जाते हैं । हमें कृष्ण के दास से अपनी सेवा शुरू करनी चाहिए । और कृष्ण का दास कौन है ? जो कृष्ण के दास का दास बन गया है । इसे दास-दासानुदास कहा जाता है । कोई भी स्वतंत्र रूप से कृष्ण का दास नहीं बन सकता है । यह एक और मूर्खता है । कृष्ण सीधे किसी की सेवा को स्वीकार कभी नही करते हैं । नहीं । यह संभव नहीं है । तुम्हें दास के दास के माध्यम से आना चाहिए (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०) । इसे परम्परा प्रणाली कहा जाता है ।

जैसे तुम परम्परा प्रणाली द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हो ... कृष्ण नें ब्रह्मा से बात की, ब्रह्मा ने नारद से, नारद ने बात की व्यासदेव से, और हम इस ज्ञान को प्राप्त कर रहे हैं । जैसे कृष्ण की तरह ... भगवद्गीता अर्जुन को कृष्ण द्वारा कहा गया था । तो अगर हम अर्जुन की तरह इस प्रक्रिया को समझने का प्रयास न करें, तो तुम कृष्ण, या भगवान को समझने में सक्षम कभी नहीं हो पाअोगे । यह संभव नहीं है । तुम्हें उस प्रक्रिया को अपनाना होगा जो अर्जुन ने स्वीकार किया । अर्जुन ने यह भी कहा कि,"मैं आपको स्वीकार कर रहा हूँ, परम भगवान, क्योंकि व्यासदेव नें स्वीकार किया है, असीत ने स्वीकार किया है, नारद ने स्वीकार किया है । " एक ही बात ।

हमें कृष्ण को समझना होगा । हम सीधे नहीं समझ सकते हैं । इसलिए ये दुष्ट व्याख्या द्वारा सीधे कृष्ण को समझने की कोशिश कर रहे हैं, वे सब दुष्ट हैं । वे कृष्ण को नहीं समझ सकते हैं । वो तथाकथित बहुत बड़ा आदमी हो सकता है । कोई भी बड़ा आदमी नहीं है । वे भी हैं स वै ... श्व-विद-वराहोष्ट्र-खरै: संस्तुत: पुरुष: पशु:(श्रीमद भागवतम् २.३.१९) । पुरुष: पशु: । ये बड़े, बड़े आदमी जो कुछ दुष्टों द्वारा सराहे जाते हैं, ये सभी बड़े, बड़े नेता, क्या हैं ये ? क्योंकि वे कृष्ण के भक्त नहीं हैं, वे नेतृत्व नहीं कर सकते हैं । वे सिर्फ गुमराह करेंगे । इसलिए हम उन सब को दुष्ट मानते हैं । यह कसौटी है । इस एक कसौटी को ले लो । कुछ भी तुम किसी से सीखना चाहते हो, सबसे पहले देखो कि वह कृष्ण का भक्त है या नहीं । अन्यथा कोई भी शिक्षा शिक्षा नहीं लेना । हम इस तरह के व्यक्ति से कोई शिक्षा नहीं लेते हैं, "शायद," "हो सकता है," नहीं । हमें इस तरह का वैज्ञानिक या गणितज्ञ नहीं चाहिए । नहीं । कृष्ण को जो जानता है, कृष्ण का जो भक्त है । जो परमानंद में अभिभूत है बस कृष्ण के बारे में सुन कर, तुम उससे शिक्षा लो । वरना सब दुष्ट हैं । बहुत-बहुत धन्यवाद ।