HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं: Difference between revisions
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जब | जब कृष्ण जानना चाहते थे... अर्जुन कृष्ण से जानना चाहता था, "कितनी फैली हुई है अापकी शक्ति ? कैसे अाप काम करते हैं ? मैं जानना चाहता हूँ ।" क्योंकि वह जिज्ञासु है, ब्रह्म-जिज्ञासा । हम समझने की कोशिश कर रहे है की भगवान क्या हैं । और भगवान व्यक्तिगत रूप से जवाब देते हैं । तो उन्होंने वो अध्याय में कहा है कि "मैं इनमें से ये हूँ, मैं इनमें से ये हूं, मैं इनमें से ये हूं..." फिर, फिर वे सारांशित करते हैं कि "मैं कितना कहूँ ? केवल मुझे समझने की कोशिश करो, मेरी शक्ति को... यह भौतिक दुनिया में असंख्य ब्रह्मांड़ हैं, और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में असंख्य ग्रह हैं । तो मैं उन सब में गया "विष्टभ्याहम इदम कृत्स्नम, सभी में, अौर मैं पोषण करता हूँ ।" जैसे कृष्ण हर किसी के दिल में स्थित हैं, फिर... इसी तरह, कृष्ण हर चीज़ में स्थित हैं, परमाणु के भीतर भी । यही कारण हैं । हम कृष्ण की नकल करना चाहते हैं लेकिन अगर... अगर हमें कहा जाता है कि "तुम परमाणु में प्रवेश करो," "मैं ऐसा नहीं कर सकता ।" नहीं । | ||
कृष्ण, भगवान, मतलब वे... वे कर सकते हैं, क्योंकि वे महानतम से अधिक महान हैं । हम सबसे बड़ी की कल्पना कर सकते हैं, ब्रह्मांड । तो, यह ब्रह्मांड ही नहीं, लेकिन कई लाखों ब्रह्मांड, वे उनके शारीरिक बालों के छेद से बनाए जा रहे हैं । यस्यैक निश्वसित कालम अथावलम्ब्य जीवंति लोम विल जा जगद अंड नाथा: (ब्रह्मसंहिता ५.४८) | यही भगवान हैं । शायद हमारे अपने शरीर में कई लाख छेद हैं । भगवान के है, महा-विष्णु, और उस छेद से ब्रह्मांड लगातार बाहर आ रहे हैं, श्वास से । यस्यैक निश्वसित कालम । तो तुम्हे पता होना चाहिए कि भगवान की अवधारणा क्या है: महानतम से महान, और सबसे छोटे से छोटा । यही भगवान हैं । वे केवल सांस लेने से इन बड़े, बड़े ब्रह्मांडों उत्पादन कर सकते हैं, और फिर - हम नहीं जानते हैं कि कितने परमाणु हैं प्रत्येक ब्रह्मांड में - वे प्रत्येक परमाणु में प्रवेश कर सकते हैं । अंडांतर स्थ परमाणु चयान्तर स्थम | | |||
:एको अपि असौ रचयितुम जगद अंड़ कोटीम | |||
:यच शक्तिर अस्ति जगद अंड़ चया यद अंत: | |||
:अंडान्तर स्थ परमाणु चयान्तर स्थम | |||
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यह भगवान की अवधारणा है । | |||
तो यहाँ प्रस्ताव यह है कि हम इस भौतिक दुनिया में दुखी हैं । हम केवल सोच रहे हैं कि "भविष्य में हम सुखी हो जाऍगे अगर मैं इस एसा करता हूँ तो |" लेकिन उस भविष्य के अाने से पहले कि हम समाप्त हो जाते हैं । यह हमारी स्थिति है । एक बार नहीं, लेकिन कई बार । फिर भी मैं, तुम, राय रखते हैं । जैसे तथाकथित वैज्ञानिक लाखों साल के अंतराल के बाद, यह होगा, वह होगा । नहीं । ये सब बकवास है । फिर कैसे - तुम्हारी उम्र पचास या साठ साल है - तुम कैसे लाखों सालों की बात करते हो ? तुम्हारी पचास, साठ साल की उम्र लाखों बार खत्म हो जाएगी तुम्हारे सच जानने से पहले । लेकिन ये तथाकथित वैज्ञानिक, वे सोच रहे हैं "नहीं । यह पचास, साठ साल के जीवन की अवधि, एक बड़ी अवधि है ।" उस तरह नहीं समझ सकते । यह संभव नहीं है । चिरम विचिन्वन । अगर तुम मूर्खतावश सोचोगे चिरम, शाश्वतता, के लिए, तो तुम नहीं समझ सकते हो । चिरम् विचिन्वन । | |||
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:न चान्य एको अपि चिरम विचिन्वन | |||
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चिरम का मतलब सदा अगर तुम भगवान को समझने के लिए अटकलें करते हो, अपने नन्हे मस्तिष्क से और सीमित इन्द्रियों से, यह नहीं होगा... शास्त्र का कथन लो, अगर तुम चाहते हो, पहली बात तुम्हे भौतिक अासक्ति को छोड़ना होगा । निवृत्त... (एक तरफ, अस्पष्ट) भौतिक लगाव, जब तक मैं भौतिक चीजों से आकर्षित हूँ, कृष्ण मुझे वैसा ही शरीर देंगे । तथा देहान्तर प्राप्तिर [[HI/BG 2.13|भ.गी. २.१३]]) | अगर तुम हम यह अस्थायी भौतिक आनंद चाहते हो, तो शरीर के अनुसार आनंद होता है । चींटी के जीवन में भी वही बातें है - खाना, सोना, यौन जीवन और बचाव । और इंद्र काे या स्वर्ग के राजा इंद्र को, उसे भी वही वृत्ति है - खाना, सोना, संभोग और बचाव । तो अगर तुम चंद्र ग्रह या सूर्य ग्रह या सर्वोच्च ग्रह पर जाते हो, जहाँ भी तुम जाओ, चार बातें तो रहेंगी: खाना, सोना, संभोग, बचाव और जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
750306 - Lecture SB 02.02.06 - New York
जब कृष्ण जानना चाहते थे... अर्जुन कृष्ण से जानना चाहता था, "कितनी फैली हुई है अापकी शक्ति ? कैसे अाप काम करते हैं ? मैं जानना चाहता हूँ ।" क्योंकि वह जिज्ञासु है, ब्रह्म-जिज्ञासा । हम समझने की कोशिश कर रहे है की भगवान क्या हैं । और भगवान व्यक्तिगत रूप से जवाब देते हैं । तो उन्होंने वो अध्याय में कहा है कि "मैं इनमें से ये हूँ, मैं इनमें से ये हूं, मैं इनमें से ये हूं..." फिर, फिर वे सारांशित करते हैं कि "मैं कितना कहूँ ? केवल मुझे समझने की कोशिश करो, मेरी शक्ति को... यह भौतिक दुनिया में असंख्य ब्रह्मांड़ हैं, और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में असंख्य ग्रह हैं । तो मैं उन सब में गया "विष्टभ्याहम इदम कृत्स्नम, सभी में, अौर मैं पोषण करता हूँ ।" जैसे कृष्ण हर किसी के दिल में स्थित हैं, फिर... इसी तरह, कृष्ण हर चीज़ में स्थित हैं, परमाणु के भीतर भी । यही कारण हैं । हम कृष्ण की नकल करना चाहते हैं लेकिन अगर... अगर हमें कहा जाता है कि "तुम परमाणु में प्रवेश करो," "मैं ऐसा नहीं कर सकता ।" नहीं ।
कृष्ण, भगवान, मतलब वे... वे कर सकते हैं, क्योंकि वे महानतम से अधिक महान हैं । हम सबसे बड़ी की कल्पना कर सकते हैं, ब्रह्मांड । तो, यह ब्रह्मांड ही नहीं, लेकिन कई लाखों ब्रह्मांड, वे उनके शारीरिक बालों के छेद से बनाए जा रहे हैं । यस्यैक निश्वसित कालम अथावलम्ब्य जीवंति लोम विल जा जगद अंड नाथा: (ब्रह्मसंहिता ५.४८) | यही भगवान हैं । शायद हमारे अपने शरीर में कई लाख छेद हैं । भगवान के है, महा-विष्णु, और उस छेद से ब्रह्मांड लगातार बाहर आ रहे हैं, श्वास से । यस्यैक निश्वसित कालम । तो तुम्हे पता होना चाहिए कि भगवान की अवधारणा क्या है: महानतम से महान, और सबसे छोटे से छोटा । यही भगवान हैं । वे केवल सांस लेने से इन बड़े, बड़े ब्रह्मांडों उत्पादन कर सकते हैं, और फिर - हम नहीं जानते हैं कि कितने परमाणु हैं प्रत्येक ब्रह्मांड में - वे प्रत्येक परमाणु में प्रवेश कर सकते हैं । अंडांतर स्थ परमाणु चयान्तर स्थम |
- एको अपि असौ रचयितुम जगद अंड़ कोटीम
- यच शक्तिर अस्ति जगद अंड़ चया यद अंत:
- अंडान्तर स्थ परमाणु चयान्तर स्थम
- गोविंदम अादि पुरुषम तम अहम भजामि
- (ब्रह्मसंहिता ५.३५) |
यह भगवान की अवधारणा है ।
तो यहाँ प्रस्ताव यह है कि हम इस भौतिक दुनिया में दुखी हैं । हम केवल सोच रहे हैं कि "भविष्य में हम सुखी हो जाऍगे अगर मैं इस एसा करता हूँ तो |" लेकिन उस भविष्य के अाने से पहले कि हम समाप्त हो जाते हैं । यह हमारी स्थिति है । एक बार नहीं, लेकिन कई बार । फिर भी मैं, तुम, राय रखते हैं । जैसे तथाकथित वैज्ञानिक लाखों साल के अंतराल के बाद, यह होगा, वह होगा । नहीं । ये सब बकवास है । फिर कैसे - तुम्हारी उम्र पचास या साठ साल है - तुम कैसे लाखों सालों की बात करते हो ? तुम्हारी पचास, साठ साल की उम्र लाखों बार खत्म हो जाएगी तुम्हारे सच जानने से पहले । लेकिन ये तथाकथित वैज्ञानिक, वे सोच रहे हैं "नहीं । यह पचास, साठ साल के जीवन की अवधि, एक बड़ी अवधि है ।" उस तरह नहीं समझ सकते । यह संभव नहीं है । चिरम विचिन्वन । अगर तुम मूर्खतावश सोचोगे चिरम, शाश्वतता, के लिए, तो तुम नहीं समझ सकते हो । चिरम् विचिन्वन ।
- अथापि ते देव पदाम्बुज द्वय
- प्रसाद लेशानुगृहीत एव हि
- जानाति तत्वम भगवन महिम्नो
- न चान्य एको अपि चिरम विचिन्वन
- (श्रीमद भागवतम १०.१४.२९) |
चिरम का मतलब सदा अगर तुम भगवान को समझने के लिए अटकलें करते हो, अपने नन्हे मस्तिष्क से और सीमित इन्द्रियों से, यह नहीं होगा... शास्त्र का कथन लो, अगर तुम चाहते हो, पहली बात तुम्हे भौतिक अासक्ति को छोड़ना होगा । निवृत्त... (एक तरफ, अस्पष्ट) भौतिक लगाव, जब तक मैं भौतिक चीजों से आकर्षित हूँ, कृष्ण मुझे वैसा ही शरीर देंगे । तथा देहान्तर प्राप्तिर भ.गी. २.१३) | अगर तुम हम यह अस्थायी भौतिक आनंद चाहते हो, तो शरीर के अनुसार आनंद होता है । चींटी के जीवन में भी वही बातें है - खाना, सोना, यौन जीवन और बचाव । और इंद्र काे या स्वर्ग के राजा इंद्र को, उसे भी वही वृत्ति है - खाना, सोना, संभोग और बचाव । तो अगर तुम चंद्र ग्रह या सूर्य ग्रह या सर्वोच्च ग्रह पर जाते हो, जहाँ भी तुम जाओ, चार बातें तो रहेंगी: खाना, सोना, संभोग, बचाव और जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी ।