HI/Prabhupada 0972 - समझने की कोशिश करो 'किस तरह का शरीर मुझे अगला मिलेगा?: Difference between revisions
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तो, जब तक कोई जीवन की शारीरिक अवधारणा में रहेगा, उसका भ्रम बढ़ता जाएगा । यह कभी कम नहीं होगा । इसलिए कृष्ण का अर्जुन को पहला अनुदेश है... क्योंकि अगर अर्जुन भ्रम की उस स्थिति में नहीं होता, कि "मैं यह शरीर हूं, और दूसरी तरफ, मेरे भाई, मेरे दादा, मेरे भतीजे, वे सब मेरे संबंधी हैं । मैं कैसे मार सकता हूं ?" यह भ्रम है । इसलिए इस भ्रम, अँधेरे, को दूर करने के लिए, कृष्ण पहली शिक्षा शुरू करते हैं "तुम यह शरीर नहीं हो ।" देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा तथा देहान्तर प्राप्ति: ([[HI/BG 2.13|भ.गी. २.१३]])) | | |||
तो तथा देहांतर प्राप्तिर धीरस तत्र न मुह्यति ([[ | तुम्हे इस शरीर को बदलना होगा जैसे तुम पहले ही बदल चुके हो । तुम पहले ही बदल चुके हो । तुम एक बच्चे थे । तुम बच्चे में अपने शरीर को बदलते हो । तुम लड़कपन में अपने शरीर को बदलते हो । तुम युवक में अपने शरीर को बदलते हो । तुम बूढ़े आदमी में अपने शरीर बदलते हो । अब, इस परिवर्तन के बाद... जैसे की तुमने पहले ही इतनी बार बदला है, इसी तरह, एक और बदलाव होगा । तुम्हे एक और शरीर को स्वीकार करना होगा । बहुत ही सरल तर्क । तुम पहले से ही बदल गए हो । तो तथा देहांतर प्राप्तिर धीरस तत्र न मुह्यति ([[HI/BG 2.13|भ.गी. २.१३]]) । क्योंकि वे जीवन की शारीरिक अवधारणा में हैं, "मैं यह शरीर हूँ । और शरीर का कोई परिवर्तन नहीं होता है ।" | ||
शरीर बदल रहा है । वह इस जीवन में वास्तव में देख रहा है । फिर भी वह विश्वास नहीं करता है कि "इस शरीर को बदलने के बाद, मुझे एक और शरीर मिलेगा ।" यह बहुत ही तार्किक है । देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा तथा देहांतर प्राप्ति: ([[HI/BG 2.13|भ.गी. २.१३]]) | बिल्कुल इसी तरह, जैसे हमने इस शरीर को कई बार बदला है, मुझे बदलना होगा । इसलिए, जो बुद्धिमान है, उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए की "किस तरह का अगला शरीर मुझे मिलेगा ?" यह बुद्धीमत्ता है । तो यह भी भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है, किस तरह का शरीर तुम पा सकते हो । | |||
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अगर तुम उच्च ग्रहों में जाना चाहते हो जहॉ देवता रहते हैं सैकड़ों और हजारों और लाखों सालों के लिए ... जैसे ब्रह्मा की तरह । तुम गणना नहीं कर सकते हो ब्रह्मा के एक दिन की । तो उच्च ग्रहों में, तुम्हे हजारों और हजारों बेहतर सुविधा मिलेगी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए और जीवन की अवधि के लिए । सब कुछ । अन्यथा, क्यों कर्मी, वे स्वर्गीय ग्रह में जाना चाहते हैं ? तो यांति देवा- | :यांति देव व्रता देवान | ||
:पितृन यांति पितृ व्रता: | |||
:भूतानि यांति भूतेज्या | |||
:यांति मद्याजिनो अपि माम | |||
:([[HI/BG 9.25|भ.गी. ९.२५]]) | | |||
अगर तुम उच्च ग्रहों में जाना चाहते हो जहॉ देवता रहते हैं सैकड़ों और हजारों और लाखों सालों के लिए... जैसे ब्रह्मा की तरह । तुम गणना नहीं कर सकते हो ब्रह्मा के एक दिन की । तो उच्च ग्रहों में, तुम्हे हजारों और हजारों बेहतर सुविधा मिलेगी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए और जीवन की अवधि के लिए । सब कुछ । अन्यथा, क्यों कर्मी, वे स्वर्गीय ग्रह में जाना चाहते हैं ? तो यांति देवा-व्रता देवान ([[HI/BG 9.25|भ.गी. ९.२५]]) । | |||
तो अगर तुम उच्च ग्रह में जाने की कोशिश करते हो, तुम जा सकते हो । श्री कृष्ण कहते हैं । प्रक्रिया है । जैसे चंद्र ग्रह पर जाने के लिए, हमें बहुत निपुण होना है कर्म-कांड में, कर्मी कार्यों में । कर्म-कांड से, तुम पा सकते हो, अपने पुण्य कार्यों के फ़ल से, तुम चंद्र ग्रह पर भेजे जा सकते हो । यह श्रीमद-भागवतम में उल्लेखित है । लेकिन तुम अपने इस प्रक्रिया के द्वारा चंद्र ग्रह में प्रवेश नहीं कर सकते हो : "हम बल द्वारा इस हवाई जहाज और जेट विमान और अवकाशयान से जाएॅगे । ओह..." मान लो मेरे पास अमेरिका में एक अच्छी मोटर गाड़ी है । अगर मैं जबरन किसी दूसरे देश में प्रवेश करना चाहता हूं, तो क्या यह संभव है ? नहीं । तुम्हे वीजा पासपोर्ट लेना होगा । तुम्हे सरकार से मंजूरी मिलनी चाहिए । तो फिर तुम प्रवेश कर सकते हो । ऐसा नहीं है कि तुम्हे एक बहुत अच्छी गाड़ी मिली है, तो तुम्हे अनुमति दी जाएगी । | |||
तो हम बल द्वारा नहीं... यह मूर्खतापूर्ण प्रयास है, बचकाना प्रयास । वे नहीं जा सकते । इसलिए आजकल उन्होंने बंद कर दिया है । वे बात नहीं करते । वे अपनी असफलता का अनुभव कर रहे हैं । इस तरह से, तुम नहीं जा सकते हो । तो, लेकिन संभावना है । तुम जा सकते हो अगर तुम वास्तविक प्रक्रिया को अपनाअो । तुम्हे भेजा जा सकता है । इसी प्रकार तुम पितृलोक जा सकते हो । श्राद्ध अौर पिंड अर्पण करके, तुम पितृलोक जा सकते हो । इसी प्रकार तुम इस लोक में रह सकते हो । भूतेज्या । इसी प्रकार तुम वापस घर जा सकते हो, भगवत धाम । | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
730400 - Lecture BG 02.13 - New York
तो, जब तक कोई जीवन की शारीरिक अवधारणा में रहेगा, उसका भ्रम बढ़ता जाएगा । यह कभी कम नहीं होगा । इसलिए कृष्ण का अर्जुन को पहला अनुदेश है... क्योंकि अगर अर्जुन भ्रम की उस स्थिति में नहीं होता, कि "मैं यह शरीर हूं, और दूसरी तरफ, मेरे भाई, मेरे दादा, मेरे भतीजे, वे सब मेरे संबंधी हैं । मैं कैसे मार सकता हूं ?" यह भ्रम है । इसलिए इस भ्रम, अँधेरे, को दूर करने के लिए, कृष्ण पहली शिक्षा शुरू करते हैं "तुम यह शरीर नहीं हो ।" देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा तथा देहान्तर प्राप्ति: (भ.गी. २.१३)) |
तुम्हे इस शरीर को बदलना होगा जैसे तुम पहले ही बदल चुके हो । तुम पहले ही बदल चुके हो । तुम एक बच्चे थे । तुम बच्चे में अपने शरीर को बदलते हो । तुम लड़कपन में अपने शरीर को बदलते हो । तुम युवक में अपने शरीर को बदलते हो । तुम बूढ़े आदमी में अपने शरीर बदलते हो । अब, इस परिवर्तन के बाद... जैसे की तुमने पहले ही इतनी बार बदला है, इसी तरह, एक और बदलाव होगा । तुम्हे एक और शरीर को स्वीकार करना होगा । बहुत ही सरल तर्क । तुम पहले से ही बदल गए हो । तो तथा देहांतर प्राप्तिर धीरस तत्र न मुह्यति (भ.गी. २.१३) । क्योंकि वे जीवन की शारीरिक अवधारणा में हैं, "मैं यह शरीर हूँ । और शरीर का कोई परिवर्तन नहीं होता है ।"
शरीर बदल रहा है । वह इस जीवन में वास्तव में देख रहा है । फिर भी वह विश्वास नहीं करता है कि "इस शरीर को बदलने के बाद, मुझे एक और शरीर मिलेगा ।" यह बहुत ही तार्किक है । देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा तथा देहांतर प्राप्ति: (भ.गी. २.१३) | बिल्कुल इसी तरह, जैसे हमने इस शरीर को कई बार बदला है, मुझे बदलना होगा । इसलिए, जो बुद्धिमान है, उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए की "किस तरह का अगला शरीर मुझे मिलेगा ?" यह बुद्धीमत्ता है । तो यह भी भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है, किस तरह का शरीर तुम पा सकते हो ।
- यांति देव व्रता देवान
- पितृन यांति पितृ व्रता:
- भूतानि यांति भूतेज्या
- यांति मद्याजिनो अपि माम
- (भ.गी. ९.२५) |
अगर तुम उच्च ग्रहों में जाना चाहते हो जहॉ देवता रहते हैं सैकड़ों और हजारों और लाखों सालों के लिए... जैसे ब्रह्मा की तरह । तुम गणना नहीं कर सकते हो ब्रह्मा के एक दिन की । तो उच्च ग्रहों में, तुम्हे हजारों और हजारों बेहतर सुविधा मिलेगी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए और जीवन की अवधि के लिए । सब कुछ । अन्यथा, क्यों कर्मी, वे स्वर्गीय ग्रह में जाना चाहते हैं ? तो यांति देवा-व्रता देवान (भ.गी. ९.२५) ।
तो अगर तुम उच्च ग्रह में जाने की कोशिश करते हो, तुम जा सकते हो । श्री कृष्ण कहते हैं । प्रक्रिया है । जैसे चंद्र ग्रह पर जाने के लिए, हमें बहुत निपुण होना है कर्म-कांड में, कर्मी कार्यों में । कर्म-कांड से, तुम पा सकते हो, अपने पुण्य कार्यों के फ़ल से, तुम चंद्र ग्रह पर भेजे जा सकते हो । यह श्रीमद-भागवतम में उल्लेखित है । लेकिन तुम अपने इस प्रक्रिया के द्वारा चंद्र ग्रह में प्रवेश नहीं कर सकते हो : "हम बल द्वारा इस हवाई जहाज और जेट विमान और अवकाशयान से जाएॅगे । ओह..." मान लो मेरे पास अमेरिका में एक अच्छी मोटर गाड़ी है । अगर मैं जबरन किसी दूसरे देश में प्रवेश करना चाहता हूं, तो क्या यह संभव है ? नहीं । तुम्हे वीजा पासपोर्ट लेना होगा । तुम्हे सरकार से मंजूरी मिलनी चाहिए । तो फिर तुम प्रवेश कर सकते हो । ऐसा नहीं है कि तुम्हे एक बहुत अच्छी गाड़ी मिली है, तो तुम्हे अनुमति दी जाएगी ।
तो हम बल द्वारा नहीं... यह मूर्खतापूर्ण प्रयास है, बचकाना प्रयास । वे नहीं जा सकते । इसलिए आजकल उन्होंने बंद कर दिया है । वे बात नहीं करते । वे अपनी असफलता का अनुभव कर रहे हैं । इस तरह से, तुम नहीं जा सकते हो । तो, लेकिन संभावना है । तुम जा सकते हो अगर तुम वास्तविक प्रक्रिया को अपनाअो । तुम्हे भेजा जा सकता है । इसी प्रकार तुम पितृलोक जा सकते हो । श्राद्ध अौर पिंड अर्पण करके, तुम पितृलोक जा सकते हो । इसी प्रकार तुम इस लोक में रह सकते हो । भूतेज्या । इसी प्रकार तुम वापस घर जा सकते हो, भगवत धाम ।