HI/Prabhupada 1069 - रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं: Difference between revisions

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660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं अतएव सनातन धर्म, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, कि भगवान सनातन हैं, और दिव्य धाम, जो नित्य चिन्मय अाकाश से परे है, यह भी सनातन है । और जीव भी सनातन हैं । तो संगति सनातन भगवान की, सनातन जीव की, सनातन धाम में मानव जीवन की सार्थक्ता है । भगवान जीवों पर अत्यंत दयालु रहते हैं क्योंकि जीव उनके अात्मज हैं । भगवान घोषित करते हैं सर्व योनिषु कौन्तेय संभवंति मूर्तयो या: ( भ गी १४।४) । हर जीव, हर प्रकार का जीव... अपने अपने कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के जीव हैं, लेकिन भगवान कहते हैं कि वे सबके पिता हैं, अतएव भगवान अवतरित होते हैं उन समस्त पतित बद्धजीवों का उद्धार करने वापस सनातन-धाम ले जाने के लिए, नित्य चिन्मय अाकाश, जिससे सनातन जीव भगवान की नित्य संगति में रहकर अपने सनातन स्थिति को पुन: प्राप्त कर सकें । भगवान स्वयं नाना अवतारों के रूप में अवतरित होते हैं । वे अपने विश्वस्त सेवकों को अपने पुत्रों या पार्षदों या अाचार्यों के रूप में इन बद्धजीवों का उद्धार करने के लिए भेजते हैं । अतएव सनातन-धर्म किसी सांप्रदायिक धर्म पद्धति का सूचक नहीं है । यह तो नित्य परमेश्वर के साथ नित्य जीवों के नित्य कर्म धर्म का सूचक है । जहॉ तक सनातन-धर्म का संबंध है, इसका अर्थ है नित्य कर्म-धर्म । श्रीपाद रामानुजाचार्य नें सनातन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है " वह जिसका न अादि है अौर न अन्त ।" अतएव जब हम सनातन-धर्म के विषय में बात करते हैं तो हमें यह मान लेना चाहिए श्रीपाद रामानुजाचार्य के प्रमाण के अाधार पर कि इसका न अादि है न अन्त । अंग्रेजी का "रिलीजन" शब्द सनातन-धर्म से थोड़ा भिन्न है । रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है । किसी को एक विशेष विधि में विश्वास हो सकता है अौर वह इस विश्वास को बदल कर दूसरा ग्रहण कर सकता है । लेकिन सनातन-धर्म उस धर्म का सूचक है जो बदला नहीं जा सकता है । उदाहरणार्थ पानी और तरलता । तरलता पानी से विलग की नहीं जा सकती है । अग्नि अौर ऊष्मा । ऊष्मा विलग नहीं की जा सकती है अग्नि से । इसी तरह, जीव से उसके नित्य कर्म को विलग नहीं किया जा सकता है, जो सनातन-धर्म के रूप में जाना जाता है । इसे बदलना संभव नहीं है । हमें पता लगाना होगा कि जीव का नित्य धर्म क्या है । जब हम सनातन-धर्म के विषय में बात करते हैं, तो हमें यह मान लेना चाहिए श्रीपाद रामानुजाचार्य के प्रमाण पर कि उसका न तो अादि है न अन्त । जिसका अादि -अंत न हो, वह सांप्रदायिक नहीं हो सकता न उसे किसी सीमा में बॉधा जा सकता है । जब हम सनातन-धर्म पर सम्मेलन करते हैं, जो लोग किसी सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है वे समझने में भूल कर सकते हैं कि हम कुछ सांप्रदायिक बात कर रहे हैं। किन्तु यदि हम इस विषय पर गम्भीरता से विचार करें अौर अाधुनिक विज्ञान के प्रकाश में सोचें हमें यह समझने में अासानी होगी कि सनातन-धर्म विश्व समस्त लोगों का ही नहीं, अपित ब्रह्मांड के समस्त जीवों का है । भले ही असनातन धार्मिक विश्वास का मानव इतिहास के पृष्ठों में कोई अादि हो, लेकिन सनातन धर्म के इतिहास का कोई अादि नहीं होता है, क्योंकि यह जीवों के साथ शाश्वत चलता रहता है । जहॉ तक जीवों का सम्बन्ध है, प्रमाणिक शास्त्रों का कथन है, कि जीव का न तो कोई जन्म होता है, न मृत्यु । भगवद्- गीता में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जीव न तो जन्मता है न कभी मरता है । वह शाश्वत तथा अविनाशी है, और इस क्षणभंगुर शरीर के नष्ट होने के बाद भी रहता है ।