Category:HI-Quotes - 1974
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- HI/Prabhupada 0007 - कृष्ण का संरक्षण आएगा
- HI/Prabhupada 0011 - मन में कृष्ण की पूजा की जा सकती है
- HI/Prabhupada 0022 - कृष्ण भूखे नहीं है
- HI/Prabhupada 0024 - कृष्ण इतने दयालु है
- HI/Prabhupada 0041 - वर्तमान जीवन अशुभता से भरा है
- HI/Prabhupada 0046 - आप जानवर मत बनिये - सामना कीजिए
- HI/Prabhupada 0062 - चौबीस घंटे कृष्ण को देखें
- HI/Prabhupada 0067 - गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे
- HI/Prabhupada 0074 - आपको पशुओ को क्यों खाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0075 - तुम्हे एक गुरु के पास जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0095 - हमारा काम है शरण लेना
- HI/Prabhupada 0101 - हमारा स्वस्थ जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में है
- HI/Prabhupada 0103 - भक्तों के समाज से दूर जाने की कोशिश कभी नहीं करो
- HI/Prabhupada 0107 - किसी भी भौतिक शरीर को फिर से स्वीकार न करें
- HI/Prabhupada 0125 - समाज इतना प्रदूषित है
- HI/Prabhupada 0130 - कृष्ण इतने सारे अवतार में दिखाई दे रहे हैं
- HI/Prabhupada 0132 - वर्गहीन समाज बेकार समाज है
- HI/Prabhupada 0139 - यह आध्यात्मिक संबंध है
- HI/Prabhupada 0163 - धर्म का मतलब है भगवान द्वारा दिए गए संहिता और कानून
- HI/Prabhupada 0172 - असली धर्म है कृष्ण को आत्मसमर्पण करना
- HI/Prabhupada 0179 - हमें कृष्ण के लिए काम करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0193 - हमारा यह पूरा समाज इन किताबों को सुन रहा है
- HI/Prabhupada 0221 - मायावादी, उन्हे लगता है कि वे भगवान के साथ एक हो गए हैं
- HI/Prabhupada 0230 - वैदिक सभ्यता के अनुसार, समाज के चार विभाजन हैं
- HI/Prabhupada 0231 - भगवान का मतलब है जो पूरे ब्रह्मांड के मालिक हैं
- HI/Prabhupada 0317 - हम कृष्ण को आत्मसमर्पण नहीं कर रहे हैं, यही रोग है
- HI/Prabhupada 0318 - सूर्यप्रकाश में आओ
- HI/Prabhupada 0323 - हंसों के एक समाज का निर्माण कर रहे हैं, कौवों का नहीं
- HI/Prabhupada 0340 - तुम मौत के लिए नहीं बने हो, लेकिन प्रकृति तुम्हे मजबूर कर रही है
- HI/Prabhupada 0341 - जो बुद्धिमान है , वह इस प्रक्रिया को लेगा
- HI/Prabhupada 0342 - हम सभी व्यक्तिगत व्यक्ति हैं, और कृष्ण भी व्यक्तिगत व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0344 - श्रीमद भागवतम, केवल भक्ति से संबन्धित है
- HI/Prabhupada 0352 - यह साहित्य पूरी दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा
- HI/Prabhupada 0353 कृष्णके बारेमें लिखो, पढो, बात,चिन्तन करो,पूजा करो, भोजन बनाओ, ग्रहण करो,ये कृष्ण कीर्तन है
- HI/Prabhupada 0356 - हम सनकी तरीके से काम नहीं कर रहे हैं। हम शास्त्र से आधिकारिक संस्करण ले रहे हैं
- HI/Prabhupada 0359 - हमें परम्परा प्रणाली से इस विज्ञान को जानना चाहिए
- HI/Prabhupada 0362 - जैसे हमारे बारह जीबीसी हैं, इसी प्रकार श्री कृष्ण के जीबीसी हैं
- HI/Prabhupada 0413 - तो जप करके, हम पूर्णता के सर्वोच्च स्तर पर आ सकते हैं
- HI/Prabhupada 0490 - कई महीनों के लिए माँ के गर्भ में एक वायु रोधक हालत में
- HI/Prabhupada 0491 - मेरी मर्जी के खिलाफ कई पीडाऍ हैं, कई पीडाऍ
- HI/Prabhupada 0492 - बुद्ध तत्वज्ञान है कि तुम इस शरीर को उद्ध्वस्त करो, निर्वाण
- HI/Prabhupada 0493 - जब यह स्थूल शरीर आराम कर रहा है, सूक्ष्म शरीर काम कर रहा है
- HI/Prabhupada 0494 - नेपोलियन नें मजबूत निर्मित मेहराब का निर्माण किया, लेकिन वह कहाँ गया, कोई नहीं जानता
- HI/Prabhupada 0495 - मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ
- HI/Prabhupada 0496 - श्रुति का मतलब है परम से सुनना
- HI/Prabhupada 0602 -पिता परिवार के नेता हैं
- HI/Prabhupada 0603 - यह मृदंग घर घर में जाएगा
- HI/Prabhupada 0616 - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, यह प्राकृतिक विभाजन है
- HI/Prabhupada 0618 - आध्यात्मिक गुरु बहुत खुशी महसूस करता है, कि "यह लड़का मुझसे अधिक उन्नत है "
- HI/Prabhupada 0712 - कृष्ण नें अादेश दिया " तुम पश्चिमी देशों में जाओ । उन्हें सिखाओ "
- HI/Prabhupada 0713 - व्यस्त मूर्ख खतरनाक है
- HI/Prabhupada 0714 - कोई भी लाभ क्यों न हो, मैं बोलूँगा कृष्ण के लिए
- HI/Prabhupada 0715 - आप भगवान का प्रेमी बन जाओ । यह प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 0723 - रसायन जीवन से आते हैं ; जीवन रसायन से नहीं आता है
- HI/Prabhupada 0728 - जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं
- HI/Prabhupada 0737 - पहला आध्यात्मिक ज्ञान यह है कि 'मैं यह शरीर नहीं हूं'
- HI/Prabhupada 0741 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन का उद्देश्य है मानव समाज की मरम्मत
- HI/Prabhupada 0754 - बहुत शिक्षाप्रद है नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष
- HI/Prabhupada 0765 - तुम्हें पूरी तरह सचेत होना होगा कि, 'सब कुछ कृष्ण का है और अपना कुछ भी नहीं'
- HI/Prabhupada 0766 - किसी भी स्थिति में, बस श्रीमद भागवत पढ़ कर, आप खुश रहेंगें
- HI/Prabhupada 0768 - मुक्ति अर्थात् पुनः भौतिक शरीर प्राप्त करने की जरूरत न होना । इसी को मुक्ति कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0770 - मैं आत्मा से प्यार करता हूँ । आत्म तत्व वित । और क्यों मुझे आत्मा से प्यार है
- HI/Prabhupada 0788 - हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्यों हम दुखी हैं क्योंकि हम इस भौतिक शरीर में हैं
- HI/Prabhupada 0809 - दानव-तंत्र' का शॉर्टकट 'लोकतंत्र' है
- HI/Prabhupada 0810 - इस भौतिक दुनिया की खतरनाक स्थिति से उत्तेजित मत होना
- HI/Prabhupada 0812 - हम पवित्र नाम का जाप करने के लिए अनिच्छुक हैं
- HI/Prabhupada 0814 - भगवान को कोई कार्य नहीं है । वह आत्मनिर्भर है। न तो उनकी कोई भी आकांक्षा है
- HI/Prabhupada 0825 - मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें
- HI/Prabhupada 0832 - शुद्धता धर्मपरायण के साथ ही होती है
- HI/Prabhupada 0834 - भक्ति केवल भगवान के लिए ही है
- HI/Prabhupada 0846 - भौतिक दुनिया है छाया, आध्यात्मिक दुनिया का प्रतिबिंब
- HI/Prabhupada 0848 - कोई भी गुरु नहीं बन सकता जब तक वह कृष्ण तत्त्व नहीं जानता हो
- HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0857 - कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में अाते हैं
- HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है
- HI/Prabhupada 0961 - हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं
- HI/Prabhupada 0988 - श्रीमद-भागवतम में तथाकथित भावुक धर्मनिष्ठा नहीं है
- HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग
- HI/Prabhupada 0990 - प्रेम का मतलब यह नहीं 'मैं खुद को प्यार करता हूँ' और प्रेम पर ध्यान करता हूं । नहीं
- HI/Prabhupada 0991 - जुगल प्रीति : राधा और कृष्ण के बीच का प्रेम
- HI/Prabhupada 0992 - अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है
- HI/Prabhupada 1029 - हमारा धर्म वैराग्य नहीं कहता है । हमारा धर्म भगवान से प्रेम करना सिखाता है
- HI/Prabhupada 1030 - मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एमात्र उद्देश्य है
- HI/Prabhupada 1031 - प्रत्येक जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं
- HI/Prabhupada 1032 - अपने आपक को भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति की और ले जाने की पद्धति
- HI/Prabhupada 1033 - यीशु मसीह भगवान के पुत्र हैं, भगवान के श्रेष्ठ पुत्र, तो उनके प्रति हमें पूरा सम्मान है