Category:HI-Quotes - Conversations
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- HI/Prabhupada 0005 - प्रभुपाद की जीवनी तीन मिनटों में
- HI/Prabhupada 0025 - अगर हम असली चीज देते हैं, तो उसका असर तो होगा ही
- HI/Prabhupada 0031 - मेरे उपदेशो तथा प्रशिक्षण के अनुसार जीवन व्यतीत करो
- HI/Prabhupada 0051 - यह आंदोलन सबसे बुद्धिमान वर्ग के लिए है
- HI/Prabhupada 0060 - जीवन भौतिक पदार्थ से नहीं आ सकता
- HI/Prabhupada 0069 - मैं मरने नहीं वाला
- HI/Prabhupada 0070 - अच्छी तरह से संचालन करो
- HI/Prabhupada 0071 - भगवान के लापरवाह बेकार पुत्र
- HI/Prabhupada 0101 - हमारा स्वस्थ जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में है
- HI/Prabhupada 0108 - छपाई और अनुवाद जारी रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0112 - किसी भी बात को परिणाम से माना जाता है
- HI/Prabhupada 0128 - मैं कभी नहीं मरूँगा
- HI/Prabhupada 0141 - माँ दूध देती है, और तुम माँ को मार रहे हो
- HI/Prabhupada 0153 - साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है
- HI/Prabhupada 0154 - तुम अपने हथियार हमेशा तेज रखना
- HI/Prabhupada 0160 - कृष्ण विरोध कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0162 - केवल भगवद्गीता का संदेश पहुँचाएँ
- HI/Prabhupada 0164 - वर्णाश्रम धर्म की भी स्थापना करनी चाहिए जिससे पद्धति सरल हो जाये
- HI/Prabhupada 0168 - नम्र और विनम्र बनने की संस्कृति
- HI/Prabhupada 0181 - मैं भगवान के साथ परिचित संबंध जोडूँगा
- HI/Prabhupada 0193 - हमारा यह पूरा समाज इन किताबों को सुन रहा है
- HI/Prabhupada 0198 - इन बुरी आदतों को छोडना होगा और इन मोतियों पर हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना होगा
- HI/Prabhupada 0212 - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है
- HI/Prabhupada 0214 - जब तक हम भक्त रहते हैं, हमारा आंदोलन चलता रहेगा
- HI/Prabhupada 0215 - आपको पढ़ना होगा । तो आप समझ पाअोगे
- HI/Prabhupada 0223 - यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0229 - मैं देखना चाहता हूँ कि एक शिष्य नें श्री कृष्ण के तत्वज्ञान को समझा है
- HI/Prabhupada 0319 भगवानको स्वीकार करो, भगवानके सेवकके रूपमें अपनी स्थितिको स्वीकार करो और भगवानकी सेवा करो
- HI/Prabhupada 0327 - जीव, इस शरीर, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर, के भीतर है
- HI/Prabhupada 0329 - एक गाय को मारो या एक सब्जी को मारो, पापी प्रतिक्रिया तो होगी
- HI/Prabhupada 0332 - पूरी दुनिया में बहुत ही शांतिपूर्ण स्थिति हो सकती है
- HI/Prabhupada 0369 - ये मेरे शिष्य मेरा अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0370 - जहॉ तक मेरा संबंध है, मैं कोई भी श्रेय नहीं लेता
- HI/Prabhupada 0406 - जो कोई भी कृष्ण का विज्ञान जानता है, वह आध्यात्मिक गुरु हो सकता है
- HI/Prabhupada 0407 - हरिदास का जीवन इतिहास यह है कि वह एक मुसलमान परिवार में पैदा हुए
- HI/Prabhupada 0412 - कृष्ण चाहते हैं कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रसार होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0425 - उन्होने कुछ परिवर्तन किया होगा
- HI/Prabhupada 0606 - हम भगवद गीता यथारूप का प्रचार कर रहे हैं । यह अंतर है
- HI/Prabhupada 0717 - मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया
- HI/Prabhupada 0732 - मैं हवा या आकाश की सेवा नहीं कर सकता । मुझे एक व्यक्ति की सेवा करनी है
- HI/Prabhupada 0753 - बड़े, बड़े आदमी उन्हें एक किताबों का समूह लेने दो और पढने दो
- HI/Prabhupada 0763 - हर कोई गुरु बन जाएगा जब वह विशेषज्ञ शिष्य होगा, लेकिन यह अपरिपक्व प्रयास क्यों
- HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0857 - कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में अाते हैं
- HI/Prabhupada 0858 - हम प्रशिक्षण दे रहे हैं, हम वकालत कर रहे हैं कि अवैध यौन संबंध पाप है
- HI/Prabhupada 0859 - यही पश्चिमी सभ्यता का दोष है। वोक्स पोपुलै, जनता की राय लेना
- HI/Prabhupada 0860 - यह ब्रिटिश सरकार की नीति थी कि हर भारतीय चीज़ की निंदा करना
- HI/Prabhupada 0861 - मेलबोर्न शहर के सभी भूखे पुरुष, यहाँ आओ, तुम भर पेट खाना खाअो
- HI/Prabhupada 0862 - जब तक तुम समाज को नहीं बदलते, तुम समाज कल्याण कैसे कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0863 - तुम मांस खा सकते हो, लेकिन तुम अपने पिता और माता की हत्या करके मांस नहीं खा सकते हो
- HI/Prabhupada 0864 - पूरे मानव समाज को सुखी करने के लिए, यह भगवद भावनामृत आंदोलन फैलना बहुत आवश्यक है
- HI/Prabhupada 0869 - जनता व्यस्त मूर्ख है । तो हम आलसी बुद्धिमान पैदा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है
- HI/Prabhupada 0953 - जब आत्मा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो वह नीचे गिर जाता है । यही भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0954 - जब हम इन नीच गुणों पर विजय पाते हैं, तब हम सुखी होते हैं
- HI/Prabhupada 0955 - ज्य़ादातर जीव, वे आध्यात्मिक दुनिया में हैं । केवल कुछ ही नीचे गिरते हैं
- HI/Prabhupada 0956 - कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा : ' स्कूल जाअो ' नहीं । वे कुत्ते हैं
- HI/Prabhupada 0957 - मुहम्मद कहते हैं कि वे भगवान के दास हैं । मसीह कहते हैं कि वे भगवान के पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0958 - अाप गायों को प्यार नहीं करते; आप उन्हें कसाईखाने भेज देते हो
- HI/Prabhupada 0959 - भगवान को भी विवेक है । बुरा तत्व हैं
- HI/Prabhupada 0960 - जो भगवान के अस्तित्व से इनकार करता हैं, वो पागल हैं
- HI/Prabhupada 1001 - कृष्ण भावनामृत हर किसी के हृदय में सुषुप्त है
- HI/Prabhupada 1002 - यदि मैं भगवान से किसी लाभ के लिये प्रेम करूँ, तो वह व्यापार है; वो प्रेम नहीं है
- HI/Prabhupada 1003 - व्यक्ति भगवान के पास गया है, भगवान आध्यात्मिक है, लेकिन वो भौतिक लाभ मांग रहा है
- HI/Prabhupada 1004 - बिल्लियों और कुत्तों की तरह काम करते रहना और मर जाना । ये बुद्धिमता नहीं है
- HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं
- HI/Prabhupada 1006 - हम जाति व्यवस्था प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1007 - जहाँ तक कृष्ण भावनामृत का संबंध है, हम समान रूप से वितरित करते हैं
- HI/Prabhupada 1008 - मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया 'जाओ और पश्चिमी देशों में इस पंथ का प्रचार करो'
- HI/Prabhupada 1009 - अगर तुम गुरु को भगवान की तरह सम्मान देते हो, तो उन्हे भगवानकी तरह सुविधा भी देनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1010 - तुम लकड़ी, पत्थर देख सकते हो । तुम आत्मा नहीं देख सकते
- HI/Prabhupada 1011 - धर्म क्या है यह तुम्हे भगवान से सीखना होगा । तुम अपने मन से धर्म का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1037 - इस भौतिक जगत में हम देखते हैं कि लगभग हर कोई भगवान को भूल गया है
- HI/Prabhupada 1038 - शेर का ख़ुराक दूसरा जानवर है । मनुष्य का ख़ुराक फल, अनाज, दूध की उत्पाद है
- HI/Prabhupada 1039 - गाय माँ है क्योंकि हम गाय का दूध पीते हैं । मैं कैसे नकार सकता हूँ कि वह माँ नहीं है ?
- HI/Prabhupada 1052 - माया के प्रभाव में अाकर हम सोच रहे हैं कि 'यह मेरी संपत्ति है'
- HI/Prabhupada 1053 - क्योंकि तुम्हे समाज को चलाना है, इसका मतलब यह नहीं कि तुम असली बात भूल जाअो
- HI/Prabhupada 1054 - वैज्ञानिक, तत्वज्ञानी, विद्वान - सभी नास्तिक
- HI/Prabhupada 1055 - देखो कि अपना कर्तव्य करते हुए अापने भगवान को प्रसन्न किया है या नहीं
- HI/Prabhupada 1056 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर