HI-Quotes - 1976: Difference between revisions
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H
- HI/Prabhupada 0010 - कृष्ण की नकल न करो
- HI/Prabhupada 0021 - ये देश में इतने सारे तलाक क्यों होते है
- HI/Prabhupada 0042 - इस दीक्षा को बहुत गंभीरता से लो
- HI/Prabhupada 0049 - हम प्रकृति के नियमों से बंधे हैं
- HI/Prabhupada 0051 - यह आंदोलन सबसे बुद्धिमान वर्ग के लिए है
- HI/Prabhupada 0056 - बारह अधिकारियों का उल्लेख है शास्त्रों में
- HI/Prabhupada 0071 - भगवान के लापरवाह बेकार पुत्र
- HI/Prabhupada 0072 - सेवक का कर्तव्य है शरणागत होना
- HI/Prabhupada 0079 - मेरा कोई श्रेय नहीं है
- HI/Prabhupada 0082 - कृष्ण सर्वत्र हैं
- HI/Prabhupada 0089 - कृष्ण का तेज सर्वस्व का स्रोत है
- HI/Prabhupada 0104 - जन्म और मृत्यु के चक्र को रोको
- HI/Prabhupada 0109 - हम किसी भी आलसी आदमी को अनुमति नहीं देते
- HI/Prabhupada 0113 - जिह्वा को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0117 - मुफ्त होटल और मुफ्त सोने का आवास
- HI/Prabhupada 0141 - माँ दूध देती है, और तुम माँ को मार रहे हो
- HI/Prabhupada 0148 - हम भगवान का अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0149 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, इसका मतलब है परम पिता का पता लगाना
- HI/Prabhupada 0151 - हमें अाचार्यों से सीखना होगा
- HI/Prabhupada 0153 - साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है
- HI/Prabhupada 0154 - तुम अपने हथियार हमेशा तेज रखना
- HI/Prabhupada 0155 - सभी ईश्वर बनने का प्रयत्न कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0159 - लोगों को शिक्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएँ कठिन परिश्रम कैसे करें
- HI/Prabhupada 0162 - केवल भगवद्गीता का संदेश पहुँचाएँ
- HI/Prabhupada 0169 - कृष्ण को देखने के लिए कठिनाई कहां है
- HI/Prabhupada 0170 - हमें गोस्वामियों का अनुसरण करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0181 - मैं भगवान के साथ परिचित संबंध जोडूँगा
- HI/Prabhupada 0190 - भौतिक जीवन के लिए अनासक्ति बढाओ
- HI/Prabhupada 0194 - यहाँ प्रथम श्रेणी के पुरुष है
- HI/Prabhupada 0195 - शरीर में मजबूत, मन में मजबूत, दृढ़ संकल्प में मजबूत
- HI/Prabhupada 0197 - तुम्हे भगवद गीता यथार्थ पेश करना होगा
- HI/Prabhupada 0201 - तुम्हारी मौत को कैसे रोकें
- HI/Prabhupada 0212 - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है
- HI/Prabhupada 0213 - मौत को बंद करो तब मैं तुम्हारा रहस्यवाद देखूँगा
- HI/Prabhupada 0214 - जब तक हम भक्त रहते हैं, हमारा आंदोलन चलता रहेगा
- HI/Prabhupada 0215 - आपको पढ़ना होगा । तो आप समझ पाअोगे
- HI/Prabhupada 0216 - कृष्ण प्रथम श्रेणी के हैं, उनके भक्त भी प्रथम श्रेणी के हैं
- HI/Prabhupada 0219 - मालिक बनने का यह बकवास विचार त्याग दो
- HI/Prabhupada 0327 - जीव, इस शरीर, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर, के भीतर है
- HI/Prabhupada 0329 - एक गाय को मारो या एक सब्जी को मारो, पापी प्रतिक्रिया तो होगी
- HI/Prabhupada 0332 - पूरी दुनिया में बहुत ही शांतिपूर्ण स्थिति हो सकती है
- HI/Prabhupada 0336 - यह कैसे है कि वे भगवान के पीछे पागल हो रहे हैं
- HI/Prabhupada 0337 - इस तथाकथित खुशी और संकट के बारे में परेशान होकर अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0343 - हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0349 - मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा
- HI/Prabhupada 0360 - हम सीधे कृष्ण के निकट नहीं जाते हैं । हमें कृष्ण के दास से अपनी सेवा शुरू करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0363 - कोई तुम्हारा दोस्त होगा, और कोई तुम्हारा दुश्मन होगा
- HI/Prabhupada 0364 - भगवद धाम जाना, यह इतना आसान नहीं है
- HI/Prabhupada 0366 - आप सभी लोग, गुरू बनें लेकिन बकवास बात न करें
- HI/Prabhupada 0368 - तो तुम मूर्खतापूर्वक सोच रहे हो कि तुम अनन्त नहीं हो
- HI/Prabhupada 0369 - ये मेरे शिष्य मेरा अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0540 - एक व्यक्ति की पूजा करना सबसे ऊँचे व्यक्तित्व के रूप में, क्रांतिकारी माना जाता है
- HI/Prabhupada 0541 - अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा
- HI/Prabhupada 0542 - गुरु की योग्यता क्या है, कैसे हर कोई गुरु बन सकता है
- HI/Prabhupada 0543 - यह नहीं है कि आपको गुरु बनने का एक विशाल प्रदर्शन करना है
- HI/Prabhupada 0544 - हम विशेष रूप से भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के मिशन पर जोर देते हैं
- HI/Prabhupada 0545 - असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना
- HI/Prabhupada 0546 - जितना संभव हो उतनी किताबें प्रकाशित करो और दुनिया भर में वितरित करने के लिए प्रयास करें
- HI/Prabhupada 0605 - वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं
- HI/Prabhupada 0611 - जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा
- HI/Prabhupada 0614 - हमें बहुत सावधान रहना चाहिए, पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल
- HI/Prabhupada 0617 - कोई नया सूत्र नहीं है । वही व्यास पूजा, वही तत्वज्ञान
- HI/Prabhupada 0619 - उद्देश्य है आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाना । यही गृहस्थ-आश्रम है
- HI/Prabhupada 0620 - उसके गुण और कर्म के अनुसार वह एक विशेष व्यावसायिक कर्तव्य में लगा हुअा है
- HI/Prabhupada 0622 - जो कृष्ण भावनामृत में लगे हुए हैं, उनके साथ अपना संग करो
- HI/Prabhupada 0711 - कृपया आपने जो शुरू किया है, उसे तोड़ें नहीं है बहुत आनंद के साथ उसे जारी रखें
- HI/Prabhupada 0719 - सन्यास ले रहे हो उसे बहुत अच्छी तरह से निभाओ
- HI/Prabhupada 0724 - भक्ति की परीक्षा
- HI/Prabhupada 0725 - चीजें हमेशा इतनी आसानी से नहीं होंगी । माया बहुत, बहुत बलवान है
- HI/Prabhupada 0727 - मैं कृष्ण के सेवक के सेवक का सेवक हूं
- HI/Prabhupada 0730 - फिर सिद्धांत बोलिया चित्ते, कृष्ण को समझने में आलसी मत बनो
- HI/Prabhupada 0735 - हम इतने मूर्ख हैं कि अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0744 - जैसे ही तुम कृष्ण को देखते हो, तुम्हे शाश्वत जीवन मिलता है
- HI/Prabhupada 0745 - तुम विश्वास करो या नहीं, कृष्ण के शब्द झूठे नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0750 - क्यों माँ इतनी सम्मानीय है
- HI/Prabhupada 0753 - बड़े, बड़े आदमी उन्हें एक किताबों का समूह लेने दो और पढने दो
- HI/Prabhupada 0755 - समुद्र पीड़ित
- HI/Prabhupada 0756 - आधुनिक शिक्षा में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं है
- HI/Prabhupada 0758 - उस व्यक्ति की सेवा करो जिसने कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है
- HI/Prabhupada 0760 - यौन जीवन इस आंदोलन में मना नहीं है, लेकिन पाखंड मना है
- HI/Prabhupada 0762 - बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें । आपका यह जीवन सुरक्षित् है, आपका अगला जीवन सुरक्षित् है
- HI/Prabhupada 0763 - हर कोई गुरु बन जाएगा जब वह विशेषज्ञ शिष्य होगा, लेकिन यह अपरिपक्व प्रयास क्यों
- HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा
- HI/Prabhupada 0774 - हम आध्यात्मिक उन्नति के हमारे अपने तरीके का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 0775 - कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है परिवारिक लगाव
- HI/Prabhupada 0780 - हम निरपेक्ष सत्य के ज्ञान की एक झलक पा सकते हैं
- HI/Prabhupada 0797 जो कृष्णकी ओर से, लोगोंको उपदेश दे रहे हैं, कृष्ण भावनामृतको अपनाने के लिए, वे महान सैनिक है
- HI/Prabhupada 0801 - प्रौद्योगिकी एक ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य का व्यापार नहीं है
- HI/Prabhupada 0802 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है कि अधीर धीर हो सकता है
- HI/Prabhupada 0803 - मेरे भगवान, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, यही जीवन की पूर्णता है
- HI/Prabhupada 0804 - हमने अपने गुरु महाराज से सीखा है कि प्रचार, बहुत, बहुत ही महत्वपूर्ण बात है
- HI/Prabhupada 0806 - कृष्ण और उनके प्रतिनिधियों का अनुसरण करना है, तो तुम महाजन बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0807 - ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है। यह सूक्ष्म तरीका है
- HI/Prabhupada 0811 - रूप गोस्वामी का निर्देश है किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो
- HI/Prabhupada 0820 - गुरु का मतलब है जो भी वे अनुदेश देंगे, हमें किसी भी तर्क के बिना स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 0821 - पंडित का मतलब यह नहीं है कि जिसके पास डिग्री है । पंडित मतलब सम चित्ता
- HI/Prabhupada 0828 - जो अपने अधीनस्थ का ख्याल रखता है, वह गुरु है
- HI/Prabhupada 0835 - आधुनिक राजनेता कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्तेकी तरह मेहनत करना चाहते है
- HI/Prabhupada 0842 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति मार्ग का प्रशिक्षण है, बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं
- HI/Prabhupada 0843 - उनके जीवन की शुरुआत ही बहुत गलत है । वे इस शरीर को आत्मा मान रहे हैं
- HI/Prabhupada 0845 - कुत्ता भी जानता है कि कैसे यौन जीवन के उपयोग करें । फ्रायड के तत्वज्ञान की आवश्यकता नहीं ह