Category:HI-Quotes - 1975
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H
- HI/Prabhupada 0001 - एक करोड़ तक फैल जाअो
- HI/Prabhupada 0002 - उन्मत्त सभ्यता
- HI/Prabhupada 0003 - पुरूष भी स्त्री है
- HI/Prabhupada 0012 - ज्ञान का स्रोत श्रवण है
- HI/Prabhupada 0018 - गुरु के शब्द सर्वस्व
- HI/Prabhupada 0020 - कृष्ण को समझना इतना सरल नहीं है
- HI/Prabhupada 0026 - अापको सबसे पहले स्थानांतरित किया जाएगा उस ब्रह्मांड में जहाँ कृष्ण मौजूद हैं
- HI/Prabhupada 0027 - उन्हे पता ही नहीं की पुनर्जिवन है
- HI/Prabhupada 0033 - महाप्रभु का नाम पतीत-पावन है, वे सब बुरे पुरुषों का उद्धार कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0034 - हर कोई अधिकारियों से ज्ञान प्राप्त करता है
- HI/Prabhupada 0035 - ये शरीर में दो जीव है
- HI/Prabhupada 0036 - जीवन का लक्ष्य है हमारे स्वाभाविक स्थिति को समझना
- HI/Prabhupada 0037 - जो कृष्ण को जानता है, वह गुरू है
- HI/Prabhupada 0038 - ज्ञान वेदों से उत्पन्न होता है
- HI/Prabhupada 0039 - आधुनिक नेता कठपुतली के समान है
- HI/Prabhupada 0040 - यहाँ एक परम पुरुष हैं
- HI/Prabhupada 0058 - आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है शाश्वत जीवन
- HI/Prabhupada 0059 - अपने वास्तविक कर्तव्य को मत भूलो
- HI/Prabhupada 0060 - जीवन भौतिक पदार्थ से नहीं आ सकता
- HI/Prabhupada 0063 - मुझे एक महान मृदंग वादक होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0064 - सिद्धि का अर्थ है जीवन का सिद्ध होना
- HI/Prabhupada 0066 - हमें कृष्ण की इच्छाओं से सेहमत होना है
- HI/Prabhupada 0068 - हर किसी को काम करना पड़ता है
- HI/Prabhupada 0091 -आप यहाँ नग्न खड़े हो जाओ
- HI/Prabhupada 0096 - हमे व्यक्ति भागवत से अध्ययन करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0111 - अनुदेश का पालन करो, तो फिर तुम कहीं भी सुरक्षित हो
- HI/Prabhupada 0128 - मैं कभी नहीं मरूँगा
- HI/Prabhupada 0129 - कृष्ण पर निर्भर करो
- HI/Prabhupada 0133 - मैं एक छात्र चाहता हूँ जो मेरे आदेशों का पालन करे
- HI/Prabhupada 0134 - तुम मारोगे नहीं, और तुम मार रहे हो
- HI/Prabhupada 0135 - वेदों की उम्र तुम गिन नहीं सकते
- HI/Prabhupada 0136 - ज्ञान अाता है परम्परा उत्तराधिकार द्वारा
- HI/Prabhupada 0137 - जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान क्या है
- HI/Prabhupada 0138 - ईश्वर बहुत दयालु है। तुम जो इच्छा करते हो, वह पूरी करेंगे
- HI/Prabhupada 0140 - एक रास्ता धार्मिक है, एक पथ अधर्मिक है कोई तीसरा रास्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 0142 - भौतिक प्रकृति के इस कत्लेआम की प्रक्रिया को रोको
- HI/Prabhupada 0145 - हमें कुछ प्रकार की तपस्या को स्वीकार करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0146 - अगर मेरी अनुपस्थिति में यह रिकॉर्ड चलाया जाता है , यह एकदम वही आवाज़ दोहराएगा
- HI/Prabhupada 0147 - साधारण चावल सर्वोच्च चावल नहीं कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0150 - हमें जप नहीं छोडना चाहिए
- HI/Prabhupada 0157 - जब तक आपका हृदय शुद्ध न हो जाए, आप नहीं समझ सकते कि हरि कौन हैं
- HI/Prabhupada 0173 - हम हर व्यक्ति का मित्र बनना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0183 - श्रीमान उल्लू, कृपया अपनी आँखें खोलो और सूरज को देखो
- HI/Prabhupada 0184 - लगाव को भौतिक ध्वनि से आध्यात्मिक ध्वनि मे स्थानांतरित करें
- HI/Prabhupada 0185 - हमें इन हवाई बातचीत से परेशान नहीं होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0186 - भगवान भगवान है । जैसे सोना सोना है
- HI/Prabhupada 0187 - हमेशा चमकदार रोशनी में रहो
- HI/Prabhupada 0189 - भक्त को तीनों गुणों से ऊपर रखें
- HI/Prabhupada 0191 - कृष्ण को नियंत्रित कर सकते हैं - यही वृन्दावन जीवन है
- HI/Prabhupada 0192 - पूरे मानव समाज को घोर अंधेरे से निकालने के लिए
- HI/Prabhupada 0200 - एक छोटी सी गलती पूरी योजना को खराब कर देगी
- HI/Prabhupada 0202 - एक उपदेशक से बेहतर कौन प्यार कर सकता है
- HI/Prabhupada 0203 - इस हरे कृष्ण आंदोलन को रोकना मत
- HI/Prabhupada 0204 - मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है
- HI/Prabhupada 0205 - मैंने उम्मीद कभी नहीं किया, "यह लोग स्वीकार करेंगे"
- HI/Prabhupada 0206 - वैदिक समाज में पैसे का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0207 - गैर जिम्मेदाराना जीवन मत जिअो
- HI/Prabhupada 0208 - उस व्यक्ति की शरण लेनी चाहिए जो कृष्ण का भक्त है
- HI/Prabhupada 0209 - कैसे घर के लिए वापस जाऍ, भगवद धाम
- HI/Prabhupada 0211 - हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना
- HI/Prabhupada 0217 - देवहुति का पद एक आदर्श महिला का पद है
- HI/Prabhupada 0218 - गुरु आंखें खोलता है
- HI/Prabhupada 0224 - बड़े मकान का निर्माण, एक दोषपूर्ण नींव पर
- HI/Prabhupada 0229 - मैं देखना चाहता हूँ कि एक शिष्य नें श्री कृष्ण के तत्वज्ञान को समझा है
- HI/Prabhupada 0312 - मनुष्य तर्कसंगत जानवर है
- HI/Prabhupada 0313 - सभी श्रेय कृष्ण को जाता है
- HI/Prabhupada 0314 - शरीर के लिए ज्यादा ध्यान नहीं देना, लेकिन आत्मा के लिए पूरा ध्यान देना
- HI/Prabhupada 0315 - हम बहुत जिद्दी हैं, हम बार बार कृष्ण को भूलने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0319 भगवानको स्वीकार करो, भगवानके सेवकके रूपमें अपनी स्थितिको स्वीकार करो और भगवानकी सेवा करो
- HI/Prabhupada 0320 - हम कोशिश कर रहे हैं कि लोग भाग्यवान बनें
- HI/Prabhupada 0324 - इतिहास का मतलब है प्रथम श्रेणी के आदमी की गतिविधियों को समझना
- HI/Prabhupada 0331 - असली खुशी वापस भगवद धाम जाने में है
- HI/Prabhupada 0333 - हर किसी को शिक्षित कर रहे है दिव्य बनने के लिए
- HI/Prabhupada 0339 - भगवान प्रबल हैं, हम उनके अधीन हैं
- HI/Prabhupada 0347 - पहले तुम जन्म लो जहॉ कृष्ण अब मौजूद हैं
- HI/Prabhupada 0350 - हम कोशिश कर रहे हैं लोगों को योग्य बनाने के लिए ताकि वे कृष्ण को देख सकें
- HI/Prabhupada 0367 - वृन्दावन का मतलब है कि कृष्ण केंद्र हैं
- HI/Prabhupada 0408 -उग्र कर्म का मतलब है क्रूर गतिविधियॉ
- HI/Prabhupada 0409 - भगवद गीता में अर्थघटन का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0410 - हमारे दोस्त हैं, वे पहले से ही अनुवाद करने में लगे हैं
- HI/Prabhupada 0411 - उन्होंने एक भव्य ट्रक का निर्माण किया है: "गट,गट,गट,गट,गट"
- HI/Prabhupada 0412 - कृष्ण चाहते हैं कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रसार होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0425 - उन्होने कुछ परिवर्तन किया होगा
- HI/Prabhupada 0433 - हम कहते हैं कि, 'तुम अवैध यौन संबंध न रखो'
- HI/Prabhupada 0434 - धोखेबाज को नहीं सुनो और दूसरों को धोखा देने की कोशिश मत करो
- HI/Prabhupada 0612 - जो जीभ के साथ हरे कृष्ण का जप रहा है, जिह्वाग्रे, वह शानदार है
- HI/Prabhupada 0621 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रहा है प्राधिकारी के प्रति विनम्र बनना
- HI/Prabhupada 0706 - असली शरीर भीतर है
- HI/Prabhupada 0707 - जो उत्साहित नहीं हैं, आलसी, सुस्त, वे आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ नहीं सकते हैं
- HI/Prabhupada 0708 - मछली के जीवन और मेरे जीवन के बीच का अंतर
- HI/Prabhupada 0710 - हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं
- HI/Prabhupada 0717 - मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया
- HI/Prabhupada 0720 - कृष्ण भावनामृत द्वारा तुम अपने कामुक इच्छा को नियंत्रित कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0721 - तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है
- HI/Prabhupada 0722 - आलसी मत बनो । हमेशा संलग्न रहो
- HI/Prabhupada 0726 - सुबह जल्दी उठना चहिए और हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0729 - एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है
- HI/Prabhupada 0731 - भागवत धर्म इस तरह के व्यक्तियों के लिए नहीं है जो जलते हैं
- HI/Prabhupada 0732 - मैं हवा या आकाश की सेवा नहीं कर सकता । मुझे एक व्यक्ति की सेवा करनी है
- HI/Prabhupada 0736 - इन सभी तथाकथित या धोखा देने वाली धार्मिक प्रणालियों को त्याग दो
- HI/Prabhupada 0738 - कृष्ण और बलराम, चैतन्य नित्यानंद के रूप में, फिर से अवतरित हुए हैं
- HI/Prabhupada 0739 - हमें श्री चैतन्यमहाप्रभु के लिए बहुत सुंदर मंदिर का निर्माण करने का प्रय्त्न करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0740 - हमको शास्त्रों के अध्ययन से समझना होगा
- HI/Prabhupada 0742 - भगवान की अचिन्त्य शक्ति
- HI/Prabhupada 0743 - अगर तुम आनंद के अपने कार्यक्रम का निर्माण करते हो तो तुम्हे थप्पड़ मिलेगा
- HI/Prabhupada 0749 - कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो तुम कृष्ण भावनाभावित हो जाओ
- HI/Prabhupada 0757 - वह भगवान को भूल गया है उसकी चेतना को पुनर्जीवित कराओ, यही असली अच्छी चीज़् है
- HI/Prabhupada 0759 - गायों को पता है कि 'ये लोग मुझे मार नहीं डालेंगे ।' वे चिंता में नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0761 - जो भी यहां आता है, पुस्तकों को पढना चाहता है
- HI/Prabhupada 0769 - वैष्णव खुद बहुत खुश रहता है, क्योंकि उसका कृष्ण के साथ सीधा संबंध है
- HI/Prabhupada 0776 - अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है', यह शिक्षा का परिणाम है
- HI/Prabhupada 0778 - मानव समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान ज्ञान है
- HI/Prabhupada 0779 - तुम उस जगह में सुखी नहीं हो सकते जो दुखों के लिए बनी है
- HI/Prabhupada 0781 - योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरणकमलों में मन को स्थिर करना
- HI/Prabhupada 0782 - जप करना छोड़ना नहीं । फिर कृष्ण तुम्हारी रक्षा करेंगे
- HI/Prabhupada 0784 - अगर हम भगवान के लिए काम नहीं करते हैं तो हम माया के चंगुल में रहेंगे
- HI/Prabhupada 0785 - तो तानाशाही अच्छा है, अगर तानाशाह अत्यधिक योग्य है आध्यात्म में ।
- HI/Prabhupada 0786 - यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है
- HI/Prabhupada 0790 - कैसे दूसरों की पत्नी के साथ दोस्ती करनी चाहिए, और कैसे छल से दूसरों का पैसा लिया जाए
- HI/Prabhupada 0813 -वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकलें
- HI/Prabhupada 0815 - तो भगवान साक्षी हैं । वे परिणाम दे रहे हैं
- HI/Prabhupada 0816 - यह शरीर एक मशीन है, लेकिन हम खुद को मशीन मान रहे हैं
- HI/Prabhupada 0817 - केवल यह कहना कि ''मैं ईसाई हूं" "मैं हिंदू हूँ" 'मैं मुसलमान हूँ, कोई लाभ नहीं है
- HI/Prabhupada 0822 - तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से
- HI/Prabhupada 0823 - यह जन्मसिद्ध अधिकार है भारत में, वे स्वत ही कृष्ण भावनाभावित हैं
- HI/Prabhupada 0824 - आध्यात्मिक दुनिया में कोई असहमति नहीं है
- HI/Prabhupada 0833 - तुम कृष्ण, वैष्णव, गुरु और अग्नि के सामने प्रतिज्ञा ले रहे हो, सेवा के लिए ।
- HI/Prabhupada 0839 - जब हम बच्चे हैं और प्रदूषित नहीं हैं, हमें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए भागवत धर्म मे
- HI/Prabhupada 0840 - एक वेश्या थी जिसका वेतन था हीरे के एक लाख टुकड़े
- HI/Prabhupada 0850 - अगर कुछ पैसे मिलें, तो पुस्तकें छापो
- HI/Prabhupada 0851 - चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0852 - आपके हृदय की गहराईओं में, भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0853 - एसा नहीं है कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें है
- HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0858 - हम प्रशिक्षण दे रहे हैं, हम वकालत कर रहे हैं कि अवैध यौन संबंध पाप है
- HI/Prabhupada 0859 - यही पश्चिमी सभ्यता का दोष है। वोक्स पोपुलै, जनता की राय लेना
- HI/Prabhupada 0860 - यह ब्रिटिश सरकार की नीति थी कि हर भारतीय चीज़ की निंदा करना
- HI/Prabhupada 0861 - मेलबोर्न शहर के सभी भूखे पुरुष, यहाँ आओ, तुम भर पेट खाना खाअो
- HI/Prabhupada 0862 - जब तक तुम समाज को नहीं बदलते, तुम समाज कल्याण कैसे कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0863 - तुम मांस खा सकते हो, लेकिन तुम अपने पिता और माता की हत्या करके मांस नहीं खा सकते हो
- HI/Prabhupada 0864 - पूरे मानव समाज को सुखी करने के लिए, यह भगवद भावनामृत आंदोलन फैलना बहुत आवश्यक है
- HI/Prabhupada 0865 - तुम देश को ले रहे हो, लेकिन शास्त्र ग्रहों को लेता है, देश को नहीं
- HI/Prabhupada 0866 - सब कुछ मर जाएगा - पेड़, पौधे, पशु, सब कुछ
- HI/Prabhupada 0867 - हम शाश्वत हैं और हम अपनी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं । यही ज्ञान है
- HI/Prabhupada 0868 - हम जीवन के इस भयानक स्थिति से बच रहे हैं। तुम खुशी से बच रहे हो
- HI/Prabhupada 0869 - जनता व्यस्त मूर्ख है । तो हम आलसी बुद्धिमान पैदा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0870 - यह क्षत्रिय का कर्तव्य है, बचाना, रक्षा करना
- HI/Prabhupada 0871 - राजा प्रथम श्रेणी के ब्राह्मण, साधु, द्वारा नियंत्रित थे
- HI/Prabhupada 0872 - यह जरूरी है कि मानव समाज चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0873 - भक्ति का मतलब है अपने को उपाधियों से शुद्ध करना
- HI/Prabhupada 0874 - जो आध्यात्मिक मंच पर उन्नत हैं, वह प्रसन्नात्मा है । वह खुश है
- HI/Prabhupada 0875 - अपने खुद के भगवान के नाम का जाप करो । कहाँ आपत्ति है - लेकिन भगवान के पवित्र नाम का जाप करो
- HI/Prabhupada 0876 - जब तुम आनंद के आध्यात्मिक महासागर पर आओगे, इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होगी
- HI/Prabhupada 0877 - अगर तुम आदर्श नहीं हो, तो यह केंद्र खोलना बेकार होगा
- HI/Prabhupada 0887 - वेद का मतलब है ज्ञान, और अन्त का मतलब अंतिम चरण, या अंत
- HI/Prabhupada 0888 - हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और भगवान का साक्षात्कार करो
- HI/Prabhupada 0889 - अगर तुम एक सेंट रोज़ जमा करते हो, एक दिन यह एक सौ डॉलर हो सकता है
- HI/Prabhupada 0890 - कितना समय लगता है कृष्णा को आत्मसमर्पण करने के लिए?
- HI/Prabhupada 0891 - कृष्ण नियमित आवर्तन से कई सालों के बाद इस ब्रह्मांड में अवतरित होते हैं
- HI/Prabhupada 0892 - अगर तुम शिक्षा से गिर जाते हो, तो कैसे तुम शाश्वत सेवक रह सकते हो ?
- HI/Prabhupada 0953 - जब आत्मा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो वह नीचे गिर जाता है । यही भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0954 - जब हम इन नीच गुणों पर विजय पाते हैं, तब हम सुखी होते हैं
- HI/Prabhupada 0955 - ज्य़ादातर जीव, वे आध्यात्मिक दुनिया में हैं । केवल कुछ ही नीचे गिरते हैं
- HI/Prabhupada 0956 - कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा : ' स्कूल जाअो ' नहीं । वे कुत्ते हैं
- HI/Prabhupada 0957 - मुहम्मद कहते हैं कि वे भगवान के दास हैं । मसीह कहते हैं कि वे भगवान के पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0958 - अाप गायों को प्यार नहीं करते; आप उन्हें कसाईखाने भेज देते हो
- HI/Prabhupada 0959 - भगवान को भी विवेक है । बुरा तत्व हैं
- HI/Prabhupada 0960 - जो भगवान के अस्तित्व से इनकार करता हैं, वो पागल हैं
- HI/Prabhupada 0962 - हम ठोस तथ्य के रूप में भगवान को मानते हैं
- HI/Prabhupada 1001 - कृष्ण भावनामृत हर किसी के हृदय में सुषुप्त है
- HI/Prabhupada 1002 - यदि मैं भगवान से किसी लाभ के लिये प्रेम करूँ, तो वह व्यापार है; वो प्रेम नहीं है
- HI/Prabhupada 1003 - व्यक्ति भगवान के पास गया है, भगवान आध्यात्मिक है, लेकिन वो भौतिक लाभ मांग रहा है
- HI/Prabhupada 1004 - बिल्लियों और कुत्तों की तरह काम करते रहना और मर जाना । ये बुद्धिमता नहीं है
- HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं
- HI/Prabhupada 1006 - हम जाति व्यवस्था प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1007 - जहाँ तक कृष्ण भावनामृत का संबंध है, हम समान रूप से वितरित करते हैं
- HI/Prabhupada 1008 - मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया 'जाओ और पश्चिमी देशों में इस पंथ का प्रचार करो'
- HI/Prabhupada 1009 - अगर तुम गुरु को भगवान की तरह सम्मान देते हो, तो उन्हे भगवानकी तरह सुविधा भी देनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1010 - तुम लकड़ी, पत्थर देख सकते हो । तुम आत्मा नहीं देख सकते
- HI/Prabhupada 1011 - धर्म क्या है यह तुम्हे भगवान से सीखना होगा । तुम अपने मन से धर्म का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1012 - सुनना और दोहराना, सुनना और दोहराना । आपको निर्माण करने की अावशयक्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 1013 - अगली मृत्यु से पहले हमें अति शीध्र प्रयास करना चाहिए
- HI/Prabhupada 1014 - एक ढोंगी नकली भगवान अपने शिष्य को सिखा रहा था और वह बिजली के झटके महसूस कर रहा था
- HI/Prabhupada 1040 - मानव जीवन का हमारा मिशन दुनिया भर में असफल हो रहा है
- HI/Prabhupada 1041 - केवल लक्षणात्मक उपचार से तुम मनुष्य को स्वस्थ नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1042 - मैं आपके मोरिशियस में देखता हूं, आपके पास अनाज के उत्पादन के लिए पर्याप्त भूमि है
- HI/Prabhupada 1043 - हम कोका कोला नहीं पीते हैं । हम पेप्सी कोला नहीं पीते हैं । हम धूम्रपान नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 1044 - मेरे बचपन में मैं दवाई नहीं लेता था
- HI/Prabhupada 1045 - मैं क्या कहूं ? हर बकवास व्यक्ति कुछ बकवास बात करेगा । मैं इसे कैसे रोक सकता हूं ?
- HI/Prabhupada 1046 - तय करो कि क्या एेसा शरीर पाना है जो कृष्ण के साथ नृत्य करने में, बात करने में सक्षम है
- HI/Prabhupada 1047 - उसने कुछ मिथ्या कर्तव्य को अपनाया है और उसके लिए कडी मेहनत कर रहा है, इसलिए वह एक गधा है
- HI/Prabhupada 1048 - तुम कभी सुखी नहीं रहोगे - पूर्ण शिक्षा - जब तक तुम भगवद धाम वापस नहीं जाते हो
- HI/Prabhupada 1049 - गुरु भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है
- HI/Prabhupada 1050 - 'तुम ऐसा करो और मुझे पैसे दो और तुम सुखी हो जाओगे' - वह गुरु नहीं है
- HI/Prabhupada 1051 - मैने गुरु के शब्दों को अपनाया, जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में
- HI/Prabhupada 1052 - माया के प्रभाव में अाकर हम सोच रहे हैं कि 'यह मेरी संपत्ति है'
- HI/Prabhupada 1053 - क्योंकि तुम्हे समाज को चलाना है, इसका मतलब यह नहीं कि तुम असली बात भूल जाअो
- HI/Prabhupada 1054 - वैज्ञानिक, तत्वज्ञानी, विद्वान - सभी नास्तिक
- HI/Prabhupada 1055 - देखो कि अपना कर्तव्य करते हुए अापने भगवान को प्रसन्न किया है या नहीं
- HI/Prabhupada 1056 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर