Category:HI-Quotes - in India
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- HI/Prabhupada 0001 - एक करोड़ तक फैल जाअो
- HI/Prabhupada 0003 - पुरूष भी स्त्री है
- HI/Prabhupada 0007 - कृष्ण का संरक्षण आएगा
- HI/Prabhupada 0010 - कृष्ण की नकल न करो
- HI/Prabhupada 0011 - मन में कृष्ण की पूजा की जा सकती है
- HI/Prabhupada 0014 - भक्त इतने महान हैं
- HI/Prabhupada 0024 - कृष्ण इतने दयालु है
- HI/Prabhupada 0025 - अगर हम असली चीज देते हैं, तो उसका असर तो होगा ही
- HI/Prabhupada 0031 - मेरे उपदेशो तथा प्रशिक्षण के अनुसार जीवन व्यतीत करो
- HI/Prabhupada 0032 - मुझे जो कुछ भी कहना था, मैने अपनी पुस्तकों में कह दिया है
- HI/Prabhupada 0048 - आर्यन सभ्यता
- HI/Prabhupada 0050 - उनको पता नहीं है की अगला जीवन क्या है
- HI/Prabhupada 0052 - भक्त्त और कर्मी में अंतर
- HI/Prabhupada 0053 - सबसे पहली बात हमें सुनना चाहिए
- HI/Prabhupada 0054 - हर कोई केवल कृष्ण को तकलीफ दे रहा है
- HI/Prabhupada 0055 - श्रवण द्वारा कृष्ण को छूना
- HI/Prabhupada 0056 - बारह अधिकारियों का उल्लेख है शास्त्रों में
- HI/Prabhupada 0057 - हृदय का परिमार्जन
- HI/Prabhupada 0069 - मैं मरने नहीं वाला
- HI/Prabhupada 0074 - आपको पशुओ को क्यों खाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0075 - तुम्हे एक गुरु के पास जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0079 - मेरा कोई श्रेय नहीं है
- HI/Prabhupada 0084 - केवल कृष्ण का भक्त बनो
- HI/Prabhupada 0093 - भगवद् गीता भी कृष्ण है
- HI/Prabhupada 0095 - हमारा काम है शरण लेना
- HI/Prabhupada 0098 - कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित हो
- HI/Prabhupada 0099 - कैसे कृष्ण द्वारा मान्यता प्राप्त हो
- HI/Prabhupada 0101 - हमारा स्वस्थ जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में है
- HI/Prabhupada 0103 - भक्तों के समाज से दूर जाने की कोशिश कभी नहीं करो
- HI/Prabhupada 0105 - यह विज्ञान, परम्परा द्वारा समझा जाता है
- HI/Prabhupada 0106 - लिफ्ट सीधे कृष्ण भक्ति की ओर ले लो
- HI/Prabhupada 0107 - किसी भी भौतिक शरीर को फिर से स्वीकार न करें
- HI/Prabhupada 0108 - छपाई और अनुवाद जारी रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0109 - हम किसी भी आलसी आदमी को अनुमति नहीं देते
- HI/Prabhupada 0113 - जिह्वा को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0117 - मुफ्त होटल और मुफ्त सोने का आवास
- HI/Prabhupada 0125 - समाज इतना प्रदूषित है
- HI/Prabhupada 0126 - यह आंदोलन केवल मेरे आध्यात्मिक गुरु की संतुष्टि के लिए शुरू किया गया था
- HI/Prabhupada 0127 - एक महानसंस्था खो गई सनकी तरीके की वजह से
- HI/Prabhupada 0129 - कृष्ण पर निर्भर करो
- HI/Prabhupada 0130 - कृष्ण इतने सारे अवतार में दिखाई दे रहे हैं
- HI/Prabhupada 0132 - वर्गहीन समाज बेकार समाज है
- HI/Prabhupada 0136 - ज्ञान अाता है परम्परा उत्तराधिकार द्वारा
- HI/Prabhupada 0139 - यह आध्यात्मिक संबंध है
- HI/Prabhupada 0148 - हम भगवान का अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0151 - हमें अाचार्यों से सीखना होगा
- HI/Prabhupada 0157 - जब तक आपका हृदय शुद्ध न हो जाए, आप नहीं समझ सकते कि हरि कौन हैं
- HI/Prabhupada 0159 - लोगों को शिक्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएँ कठिन परिश्रम कैसे करें
- HI/Prabhupada 0160 - कृष्ण विरोध कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0162 - केवल भगवद्गीता का संदेश पहुँचाएँ
- HI/Prabhupada 0163 - धर्म का मतलब है भगवान द्वारा दिए गए संहिता और कानून
- HI/Prabhupada 0164 - वर्णाश्रम धर्म की भी स्थापना करनी चाहिए जिससे पद्धति सरल हो जाये
- HI/Prabhupada 0168 - नम्र और विनम्र बनने की संस्कृति
- HI/Prabhupada 0170 - हमें गोस्वामियों का अनुसरण करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0171 - भूल जाओ अच्छी सरकार लाखों वर्षों के लिए, जब तक...
- HI/Prabhupada 0172 - असली धर्म है कृष्ण को आत्मसमर्पण करना
- HI/Prabhupada 0173 - हम हर व्यक्ति का मित्र बनना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0174 - प्रत्येक जीव भगवान की सन्तान है
- HI/Prabhupada 0178 - कृष्ण द्वारा दिए गए आदेश धर्म हैं
- HI/Prabhupada 0184 - लगाव को भौतिक ध्वनि से आध्यात्मिक ध्वनि मे स्थानांतरित करें
- HI/Prabhupada 0185 - हमें इन हवाई बातचीत से परेशान नहीं होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0192 - पूरे मानव समाज को घोर अंधेरे से निकालने के लिए
- HI/Prabhupada 0197 - तुम्हे भगवद गीता यथार्थ पेश करना होगा
- HI/Prabhupada 0199 - ये बदमाश तथाकथित टिप्पणीकार, वे कृष्ण से बचना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0200 - एक छोटी सी गलती पूरी योजना को खराब कर देगी
- HI/Prabhupada 0211 - हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना
- HI/Prabhupada 0216 - कृष्ण प्रथम श्रेणी के हैं, उनके भक्त भी प्रथम श्रेणी के हैं
- HI/Prabhupada 0219 - मालिक बनने का यह बकवास विचार त्याग दो
- HI/Prabhupada 0221 - मायावादी, उन्हे लगता है कि वे भगवान के साथ एक हो गए हैं
- HI/Prabhupada 0223 - यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0229 - मैं देखना चाहता हूँ कि एक शिष्य नें श्री कृष्ण के तत्वज्ञान को समझा है
- HI/Prabhupada 0312 - मनुष्य तर्कसंगत जानवर है
- HI/Prabhupada 0313 - सभी श्रेय कृष्ण को जाता है
- HI/Prabhupada 0316 - नकल करने की कोशिश मत करो, यह बहुत खतरनाक है
- HI/Prabhupada 0317 - हम कृष्ण को आत्मसमर्पण नहीं कर रहे हैं, यही रोग है
- HI/Prabhupada 0318 - सूर्यप्रकाश में आओ
- HI/Prabhupada 0323 - हंसों के एक समाज का निर्माण कर रहे हैं, कौवों का नहीं
- HI/Prabhupada 0328 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन सब को शामिल करने वाला है
- HI/Prabhupada 0331 - असली खुशी वापस भगवद धाम जाने में है
- HI/Prabhupada 0335 - प्रथम श्रेणी के योगी बननें के लिए शिक्षित
- HI/Prabhupada 0336 - यह कैसे है कि वे भगवान के पीछे पागल हो रहे हैं
- HI/Prabhupada 0339 - भगवान प्रबल हैं, हम उनके अधीन हैं
- HI/Prabhupada 0342 - हम सभी व्यक्तिगत व्यक्ति हैं, और कृष्ण भी व्यक्तिगत व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0343 - हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0344 - श्रीमद भागवतम, केवल भक्ति से संबन्धित है
- HI/Prabhupada 0352 - यह साहित्य पूरी दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा
- HI/Prabhupada 0353 कृष्णके बारेमें लिखो, पढो, बात,चिन्तन करो,पूजा करो, भोजन बनाओ, ग्रहण करो,ये कृष्ण कीर्तन है
- HI/Prabhupada 0359 - हमें परम्परा प्रणाली से इस विज्ञान को जानना चाहिए
- HI/Prabhupada 0360 - हम सीधे कृष्ण के निकट नहीं जाते हैं । हमें कृष्ण के दास से अपनी सेवा शुरू करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0361 - वे मेरे गुरु हैं । मैं उनका गुरु नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0363 - कोई तुम्हारा दोस्त होगा, और कोई तुम्हारा दुश्मन होगा
- HI/Prabhupada 0364 - भगवद धाम जाना, यह इतना आसान नहीं है
- HI/Prabhupada 0367 - वृन्दावन का मतलब है कि कृष्ण केंद्र हैं
- HI/Prabhupada 0368 - तो तुम मूर्खतापूर्वक सोच रहे हो कि तुम अनन्त नहीं हो
- HI/Prabhupada 0369 - ये मेरे शिष्य मेरा अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0408 -उग्र कर्म का मतलब है क्रूर गतिविधियॉ
- HI/Prabhupada 0409 - भगवद गीता में अर्थघटन का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0410 - हमारे दोस्त हैं, वे पहले से ही अनुवाद करने में लगे हैं
- HI/Prabhupada 0412 - कृष्ण चाहते हैं कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रसार होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0445 - यह एक फैशन बन गया है, हर किसी को नारायणा के बराबर करना
- HI/Prabhupada 0446 - तो ऐसा करने की, नारायण से लक्ष्मी को अलग करने की, कोशिश मत करो
- HI/Prabhupada 0447 - सावधान रहो इन अभक्तों से संग न करके जो भगवान के बारे में कल्पना करते हैं
- HI/Prabhupada 0448 - हमें गुरु से, साधु से और शास्त्र से भगवान की शिक्षा लेना चाहिए
- HI/Prabhupada 0449 - भक्ति करके तुम परम भगवान को नियंत्रित कर सकते हो । यही एकमात्र रास्ता है
- HI/Prabhupada 0450 - भक्ति सेवा को क्रियान्वित करने में किसी भी भौतिक इच्छा को मत लाओ
- HI/Prabhupada 0451 हमें भक्त क्या है यह पता नहीं है, उसकी पूजा कैसे करनी चाहिए, तो हम कनिष्ठ अधिकारी रहते है
- HI/Prabhupada 0452 - कृष्ण ब्रह्मा के एक दिन में एक बार इस धरती पर आते हैं
- HI/Prabhupada 0453 - विश्वास करो! कृष्ण के अलावा कोई और अधिक बेहतर अधिकारी नहीं है
- HI/Prabhupada 0454 - तो बहुत ही जोखिम भरा जीवन है ये अगर हम हमारे दिव्य ज्ञान को जागृत नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0455 - तुम अपने बेकार के तर्क को लागु मेत करो उन मामलों में जो तुम्हारी समझ से बाहर है
- HI/Prabhupada 0456 - जीव, जो शरीर को चला रहा है, वह उच्च शक्ति है
- HI/Prabhupada 0457 - केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है
- HI/Prabhupada 0458 - हरे कृष्ण का जप, कृष्ण को अपनी जिहवा से छूना
- HI/Prabhupada 0459 - प्रहलाद महाराज महाजनों में से एक हैं, अधिकृत व्यक्ति
- HI/Prabhupada 0460 - प्रहलाद महाराज साधारण भक्त नहीं हैं , वह नित्य-सिद्ध हैं
- HI/Prabhupada 0461 - मैं गुरु के बिना रह सकता हूँ । यह बकवास है
- HI/Prabhupada 0462 - वैष्णव अपराध एक महान अपराध है
- HI/Prabhupada 0463 - अगर तुम कृष्ण के बारे में सोचने पर अपने मन को प्रशिक्षित करते हो, तो तुम सुरक्षित हो
- HI/Prabhupada 0464 - शास्त्र मवाली वर्ग के लिए नहीं है
- HI/Prabhupada 0465 - वैष्णव शक्तिशाली है, लेकिन फिर भी वह बहुत नम्र और विनम्र है
- HI/Prabhupada 0466 - काला सांप आदमी सांप से कम हानिकारक है
- HI/Prabhupada 0467 - क्योंकि मैंने कृष्ण के कमल चरणों की शरण ली है, मैं सुरक्षित हूँ
- HI/Prabhupada 0468 - बस पूछताछ करो और तैयार रहो कि कैसे श्री कृष्ण की सेवा करनी है
- HI/Prabhupada 0469 - पराजित या विजयी, कृष्ण पर निर्भर रहो
- HI/Prabhupada 0470 - मुक्ति भी एक और धोखाधड़ी है
- HI/Prabhupada 0471 - कृष्ण को प्रसन्न करने का आसान तरीका, बस तुम्हारे दिल की आवश्यकता है
- HI/Prabhupada 0497 - हर कोई न मरने की कोशिश कर रहा है
- HI/Prabhupada 0498 - जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाने खतम
- HI/Prabhupada 0499 - वैष्णव बहुत दयालु है, दयालु, क्योंकि वह दूसरों के लिए महसूस करता है
- HI/Prabhupada 0500 - तुम भौतिक दुनिया में स्थायी रूप से खुश नहीं हो सकते हो
- HI/Prabhupada 0501 - हम चिंता से मुक्त नहीं हो सकते हैं जब तक हम कृष्ण भावनामृत को नहीं अपनाते हैं
- HI/Prabhupada 0502 - बकवास धारणाओं का त्याग करो, कृष्ण भावनामृत की उदारता को लो
- HI/Prabhupada 0503 - गुरु स्वीकारना मतलब निरपेक्ष सत्य के बारे में उनसे पूछताछ करना
- HI/Prabhupada 0504 - हमें श्रीमद भागवतम का सभी दृष्टिकोणों से अध्ययन करना होगा
- HI/Prabhupada 0540 - एक व्यक्ति की पूजा करना सबसे ऊँचे व्यक्तित्व के रूप में, क्रांतिकारी माना जाता है
- HI/Prabhupada 0541 - अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा
- HI/Prabhupada 0542 - गुरु की योग्यता क्या है, कैसे हर कोई गुरु बन सकता है
- HI/Prabhupada 0543 - यह नहीं है कि आपको गुरु बनने का एक विशाल प्रदर्शन करना है
- HI/Prabhupada 0544 - हम विशेष रूप से भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के मिशन पर जोर देते हैं
- HI/Prabhupada 0545 - असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना
- HI/Prabhupada 0546 - जितना संभव हो उतनी किताबें प्रकाशित करो और दुनिया भर में वितरित करने के लिए प्रयास करें
- HI/Prabhupada 0584 - हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं
- HI/Prabhupada 0585 - एक वैष्णव दूसरों को दुखी देखकर दुखी होता है
- HI/Prabhupada 0586 - वास्तव में शरीर की यह स्वीकृति का मतलब नहीं है कि मैं मरता हूँ
- HI/Prabhupada 0587 - संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक भूख में है
- HI/Prabhupada 0588 - जो हम चाहते हैं कृष्ण तुम्हें दे देंगे
- HI/Prabhupada 0589 - हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं
- HI/Prabhupada 0590 - इस शुद्धि का मतलब है कि हमें पता होना चाहिए कि, 'मैं यह शरीर नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं'
- HI/Prabhupada 0591 - मेरा काम इस भौतिक चंगुल से बाहर निकलना है
- HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए
- HI/Prabhupada 0593 - जैसे ही तुम कृष्णभावनामृत में आते हो, तुम प्रसन्न हो जाते हो
- HI/Prabhupada 0594 - आत्मा को हमारे भौतिक उपकरणों से मापना असंभव है
- HI/Prabhupada 0595 - अगर आप विविधता चाहते हैं तो आपको एक ग्रह का आश्रय लेना होगा
- HI/Prabhupada 0596 -आत्मा को टुकड़ों में काटा नहीं जा सकता है
- HI/Prabhupada 0597 - हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए
- HI/Prabhupada 0598 - हम नहीं समझ सकते हैं कि वे कितने महान हैं ! यह हमारी मूर्खता है
- HI/Prabhupada 0599 - कृष्ण भावनामृत इतना आसान नहीं है । जब तक आप अपने आप को आत्मसमर्पित न करे
- HI/Prabhupada 0600 - हम आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं । यह हमारा भौतिक रोग है
- HI/Prabhupada 0605 - वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं
- HI/Prabhupada 0606 - हम भगवद गीता यथारूप का प्रचार कर रहे हैं । यह अंतर है
- HI/Prabhupada 0608 - भक्ति सेवा, हमें उत्साह के साथ, धैर्य के साथ निष्पादित करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0610 - जब तक कोई वर्ण और आश्रम की संस्था को अपनाता नहीं है, वह मनुष्य नहीं है
- HI/Prabhupada 0611 - जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा
- HI/Prabhupada 0614 - हमें बहुत सावधान रहना चाहिए, पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल
- HI/Prabhupada 0617 - कोई नया सूत्र नहीं है । वही व्यास पूजा, वही तत्वज्ञान
- HI/Prabhupada 0618 - आध्यात्मिक गुरु बहुत खुशी महसूस करता है, कि "यह लड़का मुझसे अधिक उन्नत है "
- HI/Prabhupada 0619 - उद्देश्य है आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाना । यही गृहस्थ-आश्रम है
- HI/Prabhupada 0620 - उसके गुण और कर्म के अनुसार वह एक विशेष व्यावसायिक कर्तव्य में लगा हुअा है
- HI/Prabhupada 0706 - असली शरीर भीतर है
- HI/Prabhupada 0707 - जो उत्साहित नहीं हैं, आलसी, सुस्त, वे आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ नहीं सकते हैं
- HI/Prabhupada 0708 - मछली के जीवन और मेरे जीवन के बीच का अंतर
- HI/Prabhupada 0709 - भगवान की परिभाषा
- HI/Prabhupada 0710 - हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं
- HI/Prabhupada 0711 - कृपया आपने जो शुरू किया है, उसे तोड़ें नहीं है बहुत आनंद के साथ उसे जारी रखें
- HI/Prabhupada 0716 - हमें ज्ञान से समझना चाहिए कि कृष्ण हैं क्या
- HI/Prabhupada 0718 - बेटे और चेलों को हमेशा ड़ाटा जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0719 - सन्यास ले रहे हो उसे बहुत अच्छी तरह से निभाओ
- HI/Prabhupada 0723 - रसायन जीवन से आते हैं ; जीवन रसायन से नहीं आता है
- HI/Prabhupada 0724 - भक्ति की परीक्षा
- HI/Prabhupada 0725 - चीजें हमेशा इतनी आसानी से नहीं होंगी । माया बहुत, बहुत बलवान है
- HI/Prabhupada 0727 - मैं कृष्ण के सेवक के सेवक का सेवक हूं
- HI/Prabhupada 0728 - जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं
- HI/Prabhupada 0730 - फिर सिद्धांत बोलिया चित्ते, कृष्ण को समझने में आलसी मत बनो
- HI/Prabhupada 0734 - जो बोल नहीं सकता है, वह एक महान वक्ता बन जाता है
- HI/Prabhupada 0735 - हम इतने मूर्ख हैं कि अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0736 - इन सभी तथाकथित या धोखा देने वाली धार्मिक प्रणालियों को त्याग दो
- HI/Prabhupada 0737 - पहला आध्यात्मिक ज्ञान यह है कि 'मैं यह शरीर नहीं हूं'
- HI/Prabhupada 0738 - कृष्ण और बलराम, चैतन्य नित्यानंद के रूप में, फिर से अवतरित हुए हैं
- HI/Prabhupada 0739 - हमें श्री चैतन्यमहाप्रभु के लिए बहुत सुंदर मंदिर का निर्माण करने का प्रय्त्न करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0740 - हमको शास्त्रों के अध्ययन से समझना होगा
- HI/Prabhupada 0741 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन का उद्देश्य है मानव समाज की मरम्मत
- HI/Prabhupada 0742 - भगवान की अचिन्त्य शक्ति
- HI/Prabhupada 0744 - जैसे ही तुम कृष्ण को देखते हो, तुम्हे शाश्वत जीवन मिलता है
- HI/Prabhupada 0745 - तुम विश्वास करो या नहीं, कृष्ण के शब्द झूठे नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0749 - कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो तुम कृष्ण भावनाभावित हो जाओ
- HI/Prabhupada 0754 - बहुत शिक्षाप्रद है नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष
- HI/Prabhupada 0788 - हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्यों हम दुखी हैं क्योंकि हम इस भौतिक शरीर में हैं
- HI/Prabhupada 0790 - कैसे दूसरों की पत्नी के साथ दोस्ती करनी चाहिए, और कैसे छल से दूसरों का पैसा लिया जाए
- HI/Prabhupada 0797 जो कृष्णकी ओर से, लोगोंको उपदेश दे रहे हैं, कृष्ण भावनामृतको अपनाने के लिए, वे महान सैनिक है
- HI/Prabhupada 0801 - प्रौद्योगिकी एक ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य का व्यापार नहीं है
- HI/Prabhupada 0802 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है कि अधीर धीर हो सकता है
- HI/Prabhupada 0803 - मेरे भगवान, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, यही जीवन की पूर्णता है
- HI/Prabhupada 0804 - हमने अपने गुरु महाराज से सीखा है कि प्रचार, बहुत, बहुत ही महत्वपूर्ण बात है
- HI/Prabhupada 0806 - कृष्ण और उनके प्रतिनिधियों का अनुसरण करना है, तो तुम महाजन बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0807 - ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है। यह सूक्ष्म तरीका है
- HI/Prabhupada 0808 - हम कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं
- HI/Prabhupada 0809 - दानव-तंत्र' का शॉर्टकट 'लोकतंत्र' है
- HI/Prabhupada 0810 - इस भौतिक दुनिया की खतरनाक स्थिति से उत्तेजित मत होना
- HI/Prabhupada 0811 - रूप गोस्वामी का निर्देश है किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो
- HI/Prabhupada 0812 - हम पवित्र नाम का जाप करने के लिए अनिच्छुक हैं
- HI/Prabhupada 0814 - भगवान को कोई कार्य नहीं है । वह आत्मनिर्भर है। न तो उनकी कोई भी आकांक्षा है
- HI/Prabhupada 0820 - गुरु का मतलब है जो भी वे अनुदेश देंगे, हमें किसी भी तर्क के बिना स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 0821 - पंडित का मतलब यह नहीं है कि जिसके पास डिग्री है । पंडित मतलब सम चित्ता
- HI/Prabhupada 0825 - मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें
- HI/Prabhupada 0826 - हमारा आंदोलन है कि उस कड़ी मेहनत को कृष्ण के काम में लगाना
- HI/Prabhupada 0827 - आचार्य का कर्तव्य है शास्त्र की आज्ञा को बताना
- HI/Prabhupada 0828 - जो अपने अधीनस्थ का ख्याल रखता है, वह गुरु है
- HI/Prabhupada 0829 - चार दीवार तुम्हे सुनेंगे । यह पर्याप्त है। निराश मत होना । जप करते रहो
- HI/Prabhupada 0830 - यह वैष्णव तत्त्वज्ञान है । हम दास बनने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0831 - हम असाधु मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकते । हमें साधु मार्ग का अनुसरण करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0832 - शुद्धता धर्मपरायण के साथ ही होती है
- HI/Prabhupada 0833 - तुम कृष्ण, वैष्णव, गुरु और अग्नि के सामने प्रतिज्ञा ले रहे हो, सेवा के लिए ।
- HI/Prabhupada 0834 - भक्ति केवल भगवान के लिए ही है
- HI/Prabhupada 0835 - आधुनिक राजनेता कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्तेकी तरह मेहनत करना चाहते है
- HI/Prabhupada 0836 - हमें मानव जीवन की पूर्णता के लिए कुछ भी बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0839 - जब हम बच्चे हैं और प्रदूषित नहीं हैं, हमें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए भागवत धर्म मे
- HI/Prabhupada 0840 - एक वेश्या थी जिसका वेतन था हीरे के एक लाख टुकड़े
- HI/Prabhupada 0842 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति मार्ग का प्रशिक्षण है, बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं
- HI/Prabhupada 0843 - उनके जीवन की शुरुआत ही बहुत गलत है । वे इस शरीर को आत्मा मान रहे हैं
- HI/Prabhupada 0845 - कुत्ता भी जानता है कि कैसे यौन जीवन के उपयोग करें । फ्रायड के तत्वज्ञान की आवश्यकता नहीं ह
- HI/Prabhupada 0846 - भौतिक दुनिया है छाया, आध्यात्मिक दुनिया का प्रतिबिंब
- HI/Prabhupada 0848 - कोई भी गुरु नहीं बन सकता जब तक वह कृष्ण तत्त्व नहीं जानता हो
- HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0857 - कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में अाते हैं