Category:HI-Quotes - in USA
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- HI/Prabhupada 0002 - उन्मत्त सभ्यता
- HI/Prabhupada 0004 - आधिकारिक स्रोत की शरण लो
- HI/Prabhupada 0005 - प्रभुपाद की जीवनी तीन मिनटों में
- HI/Prabhupada 0006 - हर कोई भगवान है मूर्खों का स्वर्ग
- HI/Prabhupada 0009 - चोर जो भक्त बना
- HI/Prabhupada 0012 - ज्ञान का स्रोत श्रवण है
- HI/Prabhupada 0013 - आध्यात्मिक कार्य चौबीस घंटे
- HI/Prabhupada 0015 - मैं ये शरीर नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0016 - मैं काम करना चाहता हूँ
- HI/Prabhupada 0017 - परा शक्ति और अपरा शक्ति
- HI/Prabhupada 0018 - गुरु के शब्द सर्वस्व
- HI/Prabhupada 0019 - पहले सुनो और फिर दोहराओ
- HI/Prabhupada 0020 - कृष्ण को समझना इतना सरल नहीं है
- HI/Prabhupada 0021 - ये देश में इतने सारे तलाक क्यों होते है
- HI/Prabhupada 0022 - कृष्ण भूखे नहीं है
- HI/Prabhupada 0023 - मृत्यु से पहले कृष्ण भावनाभावित हो जाअो
- HI/Prabhupada 0027 - उन्हे पता ही नहीं की पुनर्जिवन है
- HI/Prabhupada 0028 - बुद्ध भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0029 - बुद्ध ने राक्षसों को धोखा दिया
- HI/Prabhupada 0030 - कृष्ण सिर्फ आनंद करते है
- HI/Prabhupada 0049 - हम प्रकृति के नियमों से बंधे हैं
- HI/Prabhupada 0051 - यह आंदोलन सबसे बुद्धिमान वर्ग के लिए है
- HI/Prabhupada 0060 - जीवन भौतिक पदार्थ से नहीं आ सकता
- HI/Prabhupada 0061 - यह शरीर त्वचा, हड्डी, रक्त का एक थैला है
- HI/Prabhupada 0062 - चौबीस घंटे कृष्ण को देखें
- HI/Prabhupada 0063 - मुझे एक महान मृदंग वादक होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0064 - सिद्धि का अर्थ है जीवन का सिद्ध होना
- HI/Prabhupada 0065 -कृष्ण भावनाभावित बनने से हर कोई सुखी हो जाएगा
- HI/Prabhupada 0066 - हमें कृष्ण की इच्छाओं से सेहमत होना है
- HI/Prabhupada 0067 - गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे
- HI/Prabhupada 0068 - हर किसी को काम करना पड़ता है
- HI/Prabhupada 0070 - अच्छी तरह से संचालन करो
- HI/Prabhupada 0072 - सेवक का कर्तव्य है शरणागत होना
- HI/Prabhupada 0073 - वैकुण्ठ का अर्थ है चिंता के बिना
- HI/Prabhupada 0076 - सर्वत्र कृष्ण को देखो
- HI/Prabhupada 0077 - आप वैज्ञानिक और दार्शनिक अध्ययन कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0078 - केवल, आस्था के साथ, आप सुनने का प्रयास करें
- HI/Prabhupada 0080 - कृष्ण अपने सखाओं के साथ क्रीडा करने के बहुत शौकीन है
- HI/Prabhupada 0081 - सूर्य लोक में शरीर अग्नि से बने हैं
- HI/Prabhupada 0083 - हरे कृष्ण का जप करो तब सब कुछ आ जाएगा
- HI/Prabhupada 0085 - ज्ञान की संस्कृति का अर्थ है आध्यात्मिक ज्ञान
- HI/Prabhupada 0086 - असमानताएँ क्यों हैं
- HI/Prabhupada 0087 - भौतिक प्रकृति के नियम
- HI/Prabhupada 0088 - हमारे साथ जो छात्र शामिल हुए हैं, वे श्रवणिक अभिग्रहण करते हैं
- HI/Prabhupada 0090 - व्यवस्थित प्रबंधन अन्यथा इस्कॉन कैसे चलेगा
- HI/Prabhupada 0091 -आप यहाँ नग्न खड़े हो जाओ
- HI/Prabhupada 0092 - हमे कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए अपनी इंद्रियों को प्रशिक्षित करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0096 - हमे व्यक्ति भागवत से अध्ययन करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0097 - मैं बस एक डाक चपरासी हूँ
- HI/Prabhupada 0100 - हम सदा कृष्ण के साथ जुड़े हुए हैं
- HI/Prabhupada 0110 - पूर्ववर्ती आचार्य की कठपुतली बन जाओ
- HI/Prabhupada 0111 - अनुदेश का पालन करो, तो फिर तुम कहीं भी सुरक्षित हो
- HI/Prabhupada 0112 - किसी भी बात को परिणाम से माना जाता है
- HI/Prabhupada 0114 - एक सज्जन व्यक्ति जिसका नाम कृष्ण है, वह हर किसी को नियंत्रित कर रहे है
- HI/Prabhupada 0115 - मेरा काम केवल कृष्ण का संदेश देना है
- HI/Prabhupada 0116 - अपना बहुमूल्य जीवन बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0118 - प्रचार का काम बहुत मुश्किल बात नहीं है
- HI/Prabhupada 0119 - आत्मा सदाबहार है
- HI/Prabhupada 0120 - अचिन्त्य रहस्यवादी शक्ति
- HI/Prabhupada 0121 - तो अंततः कृष्ण काम कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0122 - ये दुष्ट, उन्हें लगता है कि, "मैं यह शरीर हूँ"
- HI/Prabhupada 0123 - आत्मसमर्पण के लिए मजबूर, यह विशेष एहसान है
- HI/Prabhupada 0124 - हमें अपने आध्यात्मिक गुरु के शब्दों को अपने जीवन और आत्मा के रूप में लेना चाहिए
- HI/Prabhupada 0128 - मैं कभी नहीं मरूँगा
- HI/Prabhupada 0131 - पिता को समर्पण करना बहुत स्वाभाविक है
- HI/Prabhupada 0133 - मैं एक छात्र चाहता हूँ जो मेरे आदेशों का पालन करे
- HI/Prabhupada 0138 - ईश्वर बहुत दयालु है। तुम जो इच्छा करते हो, वह पूरी करेंगे
- HI/Prabhupada 0140 - एक रास्ता धार्मिक है, एक पथ अधर्मिक है कोई तीसरा रास्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 0141 - माँ दूध देती है, और तुम माँ को मार रहे हो
- HI/Prabhupada 0142 - भौतिक प्रकृति के इस कत्लेआम की प्रक्रिया को रोको
- HI/Prabhupada 0143 - लाखों अरबों ब्रह्मांड हैं
- HI/Prabhupada 0144 - इसे माया कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0145 - हमें कुछ प्रकार की तपस्या को स्वीकार करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0149 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, इसका मतलब है परम पिता का पता लगाना
- HI/Prabhupada 0150 - हमें जप नहीं छोडना चाहिए
- HI/Prabhupada 0153 - साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है
- HI/Prabhupada 0154 - तुम अपने हथियार हमेशा तेज रखना
- HI/Prabhupada 0161 - वैष्णव बनना तथा पीड़ित मानवता के लिए अनुभव करना
- HI/Prabhupada 0165 - शुद्ध कार्यों को भक्ति कहते हैं
- HI/Prabhupada 0166 - तुम बर्फ को गिरने से नहीं रोक सकते
- HI/Prabhupada 0167 - भगवान द्वारा निर्मित नियम दोषरहित हैं
- HI/Prabhupada 0175 -धर्म का मतलब है धीरे धीरे कौवे को हंस में बदलना
- HI/Prabhupada 0176 - कृष्ण तुम्हारे साथ सर्वदा रहेंगे यदि तुम कृष्ण से प्रेम करो
- HI/Prabhupada 0177 - कृष्ण भावनामृत शाश्वत तथ्य है
- HI/Prabhupada 0179 - हमें कृष्ण के लिए काम करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0180 - हरे कृष्ण मंत्र, निस्संक्रामक है
- HI/Prabhupada 0182 - उसी धुली हुई हालत में अपने आप को रखो
- HI/Prabhupada 0183 - श्रीमान उल्लू, कृपया अपनी आँखें खोलो और सूरज को देखो
- HI/Prabhupada 0187 - हमेशा चमकदार रोशनी में रहो
- HI/Prabhupada 0188 - जीवन की सभी समस्याओं का अंतिम समाधान
- HI/Prabhupada 0189 - भक्त को तीनों गुणों से ऊपर रखें
- HI/Prabhupada 0190 - भौतिक जीवन के लिए अनासक्ति बढाओ
- HI/Prabhupada 0191 - कृष्ण को नियंत्रित कर सकते हैं - यही वृन्दावन जीवन है
- HI/Prabhupada 0196 - आध्यात्मिक चीजों की लालसा
- HI/Prabhupada 0201 - तुम्हारी मौत को कैसे रोकें
- HI/Prabhupada 0203 - इस हरे कृष्ण आंदोलन को रोकना मत
- HI/Prabhupada 0204 - मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है
- HI/Prabhupada 0207 - गैर जिम्मेदाराना जीवन मत जिअो
- HI/Prabhupada 0208 - उस व्यक्ति की शरण लेनी चाहिए जो कृष्ण का भक्त है
- HI/Prabhupada 0209 - कैसे घर के लिए वापस जाऍ, भगवद धाम
- HI/Prabhupada 0210 - पूरा भक्ति मार्ग भगवान की दया पर निर्भर करता है
- HI/Prabhupada 0212 - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है
- HI/Prabhupada 0214 - जब तक हम भक्त रहते हैं, हमारा आंदोलन चलता रहेगा
- HI/Prabhupada 0215 - आपको पढ़ना होगा । तो आप समझ पाअोगे
- HI/Prabhupada 0217 - देवहुति का पद एक आदर्श महिला का पद है
- HI/Prabhupada 0222 - इस आंदोलन को अागे बढाना बंद मत करो
- HI/Prabhupada 0225 - निराश मत हो,भ्रमित मत हो
- HI/Prabhupada 0226 - भगवान के नाम का प्रचार, महिमा, गतिविधियॉ, सुंदरता, प्यार
- HI/Prabhupada 0227 - क्यों मर रहे हो। मैं मरना नहीं चाहता
- HI/Prabhupada 0257 - तुम कैसे भगवान के कानूनों का उल्लंघन कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0258 - संवैधानिक रूप से हम सब नौकर हैं
- HI/Prabhupada 0259 - कृष्ण को प्यार करने के उत्कृष्ट मंच पर पुन: स्थापित होना
- HI/Prabhupada 0260 - इंद्रियों के अादेश द्वारा हम पापी गतिविधियों में भाग लेते चले जा रहे हैं हर जीवन में
- HI/Prabhupada 0261 - भगवान और भक्त, वे एक ही स्थिति पर हैं
- HI/Prabhupada 0262 - हमें हमेशा सोचना चाहिए कि हमारी सेवा पूर्ण नहीं है
- HI/Prabhupada 0263 - अगर तुमने इस सूत्र को बहुत अच्छी तरह से अपने हाथ में लिया है, तो तुम प्रचार करते रहोगे
- HI/Prabhupada 0264 - माया भी कृष्ण की सेवा कर रही है, लेकिन कोई धन्यवाद नहीं है
- HI/Prabhupada 0277 - तो कृष्ण भावनामृत का मतलब है हर प्रकार का ज्ञान होना
- HI/Prabhupada 0278 - शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे
- HI/Prabhupada 0279 - वास्तव में हम पैसे की सेवा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0280 - भक्ति सेवा का मतलब है इंद्रियों को शुद्ध करना
- HI/Prabhupada 0281 - मनुष्य पशु है, लेकिन तर्कसंगत जानवर
- HI/Prabhupada 0282 - हमें आचार्यों के नक्शेकदम पर चलना होगा
- HI/Prabhupada 0283 - हमारा कार्यक्रम है प्यार करना
- HI/Prabhupada 0284 - मेरा स्वभाव अधीनस्थ होना है
- HI/Prabhupada 0285 - एक मात्र प्रेम के वस्तु कृष्ण हैं और उनकी भूमि वृन्दावन है
- HI/Prabhupada 0286 - आपके और श्रीकृष्ण के बीच के शुद्ध प्रेम का विकृत प्रतिबिंब
- HI/Prabhupada 0287 - अपनी स्मृति को पुनर्जीवित करो, कृष्ण के लिए तुम्हारा प्यार
- HI/Prabhupada 0288 - जब अाप भगवान की बात करते हैं, तो क्या अाप जानते हैं कि भगवान की परिभाषा क्या है?
- HI/Prabhupada 0289 - जो भी परमेश्वर के राज्य से आता है वे एक ही हैं
- HI/Prabhupada 0290 - जब तुम्हारी वासना पूरी नहीं होती, तो तुम गुस्सा करते हो
- HI/Prabhupada 0291 - मैं अधीनस्थ होना नहीं चाहता, झुकना नहीं चाहता हूँ, यह तुम्हारा रोग है
- HI/Prabhupada 0292 - ज्ञान से परम भगवान का पता लगाना
- HI/Prabhupada 0293 - रस बारह प्रकार के होते हैं, भाव
- HI/Prabhupada 0294 - कृष्ण को आत्मसमर्पण करने के छह अंक हैं
- HI/Prabhupada 0295 - एक जीव अन्य सभी जीव की सभी मांगों की आपूर्ति कर रहा है
- HI/Prabhupada 0296 - हालांकि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया था, उन्होंने अपनी राय कभी नहीं बदली
- HI/Prabhupada 0297 - जो निरपेक्ष सत्य को समझने के लिए जिज्ञासु है उसे एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है
- HI/Prabhupada 0298 - अगर तुम कृष्ण की सेवा करने के लिए उत्सुक हो, यही असली संपत्ति है
- HI/Prabhupada 0299 - एक सन्यासी अपनी पत्नी से नहीं मिल सकता है
- HI/Prabhupada 0300 - मूल व्यक्ति मरा नहीं है
- HI/Prabhupada 0301 - सबसे बुद्धिमान व्यक्ति, वे नाच रहे हैं
- HI/Prabhupada 0302 - लोग आत्मसमर्पण करने के लिए इच्छुक नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0303 - दिव्य । तुम इससे परे हो
- HI/Prabhupada 0304 - माया सर्वोच्च को आच्छादित नहीं कर सकती
- HI/Prabhupada 0305 - हम कहते हैं कि भगवान मर चुके हैं । इसलिए हमें इस भ्रम से हमारी आँखों को बाहर निकालना होगा
- HI/Prabhupada 0306 - हमें हमारे संदिग्ध सवाल पेश करने चाहिए
- HI/Prabhupada 0307 -न केवल अपने मन को कृष्ण के बारे में सोचने पर स्थिर करना है, लेकिन कृष्ण के लिए काम भी करना है
- HI/Prabhupada 0308 - आत्मा का काम है कृष्ण भावनामृत
- HI/Prabhupada 0309 - आध्यात्मिक गुरु शाश्वत है
- HI/Prabhupada 0310 - यीशु वह भगवान के प्रतिनिधि हैं और हरि नाम भगवान है
- HI/Prabhupada 0311 - हम यह कह रहे हैं ध्यान असफल हो जायेगा, इस बात को आप मान लो
- HI/Prabhupada 0314 - शरीर के लिए ज्यादा ध्यान नहीं देना, लेकिन आत्मा के लिए पूरा ध्यान देना
- HI/Prabhupada 0321 - हमेशा मूल बिजलीघर से जुड़े रहना पडेगा
- HI/Prabhupada 0322 - यह शरीर उसके कर्म के अनुसार भगवान द्वारा प्रदान किया जाता है
- HI/Prabhupada 0324 - इतिहास का मतलब है प्रथम श्रेणी के आदमी की गतिविधियों को समझना
- HI/Prabhupada 0325 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन के प्रसार के लिए प्रयास करो और यह तुम्हारी साधना है
- HI/Prabhupada 0326 - भगवान सर्वोच्च मालिक हैं, भगवान परम मित्र है
- HI/Prabhupada 0333 - हर किसी को शिक्षित कर रहे है दिव्य बनने के लिए
- HI/Prabhupada 0334 - जीवन की असली जरूरत आत्मा को सुख प्रदान करना है
- HI/Prabhupada 0337 - इस तथाकथित खुशी और संकट के बारे में परेशान होकर अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0345 - कृष्ण हर किसी के ह्रदय में बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0346 - प्रचार के बिना, तत्वज्ञान की समझ के बिना, तुम अपनी शक्ति को नहीं रख सकते हो
- HI/Prabhupada 0349 - मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा
- HI/Prabhupada 0351 - तुम कुछ लिखो, उद्देश्य होना चाहिए परम की महिमा बस
- HI/Prabhupada 0354 - एक अंधा आदमी अन्य अन्धे अादमियों को मार्ग दिखा रहा है
- HI/Prabhupada 0357 -मैं एक क्रांति शुरू करना चाहता हूँ नास्तिक सभ्यता के खिलाफ
- HI/Prabhupada 0365 - इसे (इस्कॉन) एक मल समाज मत बनाओ । इसे एक शहद समाज बनाओ
- HI/Prabhupada 0366 - आप सभी लोग, गुरू बनें लेकिन बकवास बात न करें
- HI/Prabhupada 0374 - भजहू रे मन का तात्पर्य, भाग 1
- HI/Prabhupada 0376 - भजहू रे मन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0377 - भजहू रे मन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0381 - दशावतार स्तोत्र भाग १
- HI/Prabhupada 0382 - दशावतार स्तोत्र भाग २
- HI/Prabhupada 0383 - गौर पाहु तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0384 - गौरंगा बोलिते होबे तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0385 - गौरंगा बोलिते होबे तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0386 - गौरंगेर दूति पदा तात्पर्य भाग १
- HI/Prabhupada 0387 - गौरंगेर दूति पदा तात्पर्य भाग २
- HI/Prabhupada 0390 - जय राधा माधव तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0392 - नारद मुनि बजाय वीना तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0394 - निताई-पद -कमल तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0395 - परम कोरुणा तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0398 - श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0399 - श्री नाम, गाये गौर मधुर स्वरे तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0401 - श्री श्री शिक्षाष्टकम तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0404 - कृष्ण भावनामृत की इस तलवार को लो, बस विश्वास के साथ तुम सुनने की कोशिश करो
- HI/Prabhupada 0406 - जो कोई भी कृष्ण का विज्ञान जानता है, वह आध्यात्मिक गुरु हो सकता है
- HI/Prabhupada 0407 - हरिदास का जीवन इतिहास यह है कि वह एक मुसलमान परिवार में पैदा हुए
- HI/Prabhupada 0413 - तो जप करके, हम पूर्णता के सर्वोच्च स्तर पर आ सकते हैं
- HI/Prabhupada 0414 - पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, कृष्ण के समीप जाना
- HI/Prabhupada 0415 - छह महीने के भीतर तुम भगवान बन जाओगे, मूर्ख निष्कर्ष
- HI/Prabhupada 0416 - बस, जप नृत्य, और अच्छी मिठाई खाना, कचौरि
- HI/Prabhupada 0417 - इस जीवन और अगले जीवन में खुश रहो
- HI/Prabhupada 0418 - दीक्षा का मतलब है गतिविधियों की शुरुआत
- HI/Prabhupada 0419 - दीक्षा का मतलब है कृष्ण चेतना का तीसरे चरण
- HI/Prabhupada 0420 - मत सोचो कि तुम इस दुनिया की दासी हो
- HI/Prabhupada 0421 - महा मंत्र जप करते हुए जिन दस अपराधों से बचना चाहिए १ से ५
- HI/Prabhupada 0422 - महा मंत्र जप करते हुए जिन दस अपराधों से बचना चाहिए ६ से १०
- HI/Prabhupada 0424 - इस वैदिक संस्कृति का पूरा फायदा उठाना
- HI/Prabhupada 0432 - जब तक तुम पढ़ रहे हो, सूरज तुम्हारा जीवन लेने में असमर्थ है
- HI/Prabhupada 0435 - हम इन सभी सांसारिक समस्याओं से हैरान हैं, जो सभी झूठी हैं
- HI/Prabhupada 0436 - सभी हालतों में हंसमुख हो जाएगा, और वह केवल कृष्ण भावनामृत में दिलचस्पी रखेगा
- HI/Prabhupada 0437 - शंख बहुत शुद्ध और दिव्य माना जाता है
- HI/Prabhupada 0438 - गोबर और उसे जला कर राख करके, दंत मंजन के रूप में प्रयोग किया जाता है
- HI/Prabhupada 0439 - मेरे आध्यात्मिक गुरु ने मुझे एक महान मूर्ख पाया
- HI/Prabhupada 0440 - मायावादी सिद्धांत है कि परम आत्मा अवैयक्तिक है
- HI/Prabhupada 0441 - कृष्ण सर्वोच्च हैं, और हम आंशिक हिस्से हैं
- HI/Prabhupada 0442 ईसाई धर्ममें, वे चर्च में जाते है और भगवान से प्रार्थना करते है, 'हमें हमारी रोज़ीरोटी दो'
- HI/Prabhupada 0443 - उनका घर, सब कुछ है । तो अवैयक्तिकता का कोई सवाल नहीं है
- HI/Prabhupada 0444 - गोपी, वे बद्ध आत्मा नहीं हैं । वे मुक्त आत्मा हैं
- HI/Prabhupada 0472 - इस अंधेरे में मत रहो । बस प्रकाश के राज्य में अपने आप को स्थानांतरण करो
- HI/Prabhupada 0473 - डार्विन नें इस उत्क्रांति के विचार को लिया है पद्म पुराण से
- HI/Prabhupada 0474 - आर्यन का मतलब है जो उन्नत हैं
- HI/Prabhupada 0475 - हम कांप जाते हैं जैसे ही हम सुनते हैं कि हमें परमेश्वर का दास बनना है
- HI/Prabhupada 0476 - तो निर्भरता बुरा नहीं है अगर उचित जगह पर निर्भरता हो तो
- HI/Prabhupada 0477 - हमने धार्मिक संप्रदाय या तत्वज्ञान की विधि का एक नया प्रकार निर्मित नहीं किया है
- HI/Prabhupada 0478 - यहाँ तुम्हारे हृदय के भीतर एक टीवी बॉक्स है
- HI/Prabhupada 0479 - जब तुम अपने वास्तविक स्थिति को समझते हो, फिर तुम्हारी गतिविधियॉ वास्तव में शुरू होती हैं
- HI/Prabhupada 0480 - तो भगवान अवैयक्तिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हम सभी व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0481 - कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं , कृष्ण सुंदर हैं
- HI/Prabhupada 0482 - मन अासक्त होने का वाहन है
- HI/Prabhupada 0483 - कैसे तुम कृष्ण के बारे में सोच सकते हो जब तक तुम कृष्ण के लिए प्रेम का विकास नहीं करते
- HI/Prabhupada 0484 - भाव की परिपक्व हालत प्रेम है
- HI/Prabhupada 0485 - तो कृष्ण द्वारा बनाई गई कोई भी लीला, भक्तों द्वारा समारोहपूर्ण रूप में मनाई जाती है
- HI/Prabhupada 0486 - यहाँ भौतिक दुनिया में शक्ति, यौन जीवन है, और आध्यात्मिक दुनिया में शक्ति प्रेम है
- HI/Prabhupada 0487 - कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह बाइबिल है या कुरान या भगवद गीता । हमें देखना है कि फल क्या है
- HI/Prabhupada 0488 - लड़ाई कहां है, अगर तुम भगवान से प्यार करते हो, तो तुम हर किसी से प्यार करोगे । यही निशानी है
- HI/Prabhupada 0489 - तो सड़क पर जप करके, तुम मिठाइयों का वितरण कर रहे हो
- HI/Prabhupada 0516 - तुम स्वतंत्रता का जीवन प्राप्त कर सकते हो, यह कहानी या उपन्यास नहीं है
- HI/Prabhupada 0517 - सिर्फ धनी परिवार में पैदा होने से, तुम्हे बीमारियों से प्रतिरक्षा नहीं मिलेगी
- HI/Prabhupada 0518 - बद्ध जीवन के चार कार्य का मतलब है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, और रोग
- HI/Prabhupada 0519 - कृष्ण भावनामृत व्यक्ति, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे हैं
- HI/Prabhupada 0520 - हम जप कर रहे हैं, हम सुन रहे हैं, हम नाच रहे हैं, हम आनंद ले रहे हैं । क्यों
- HI/Prabhupada 0521 - मेरी नीति रूप गोस्वामी के पद् चिन्हों को अनुसरण करना है
- HI/Prabhupada 0522 - अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जाप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा
- HI/Prabhupada 0523 - अवतार का मतलब है जो उच्चतर ग्रह से आता है, उच्च ग्रह
- HI/Prabhupada 0524 - अर्जुन कृष्ण के शाश्वत दोस्त हैं । वे भ्रम में नहीं जा सकते
- HI/Prabhupada 0525 - माया इतनी मजबूत है, जैसे ही तुम थोडा सा आश्वस्त होते हो, तुरंत हमला होता है
- HI/Prabhupada 0526 - अगर हम बहुत दृढ़ता से कृष्ण को पकड़ते हैं, माया कुछ नहीं कर सकती है
- HI/Prabhupada 0527 - कृष्ण को अर्पण करने से हमारी हार नहीं होती है । हम केवल फायदे में रहते हैं
- HI/Prabhupada 0547 - मैंने यह सोचा था कि "मैं सबसे पहले बहुत अमीर आदमी बनूँगा, फिर मैं प्रचार करूँगा
- HI/Prabhupada 0548 - अगर तुम हरि के लिए सब कुछ त्यागने के स्तर पर अाते हो
- HI/Prabhupada 0549 - योग प्रणाली का मतलब कि तुम्हे इन्द्रियों को नियंत्रित करना है
- HI/Prabhupada 0550 - इस भ्रम के पीछे मत भागो
- HI/Prabhupada 0551 - हमारे छात्र इतने सारे कामों में व्यस्त हैं
- HI/Prabhupada 0552 - जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति को कैसे रोकें, मैं जहर पी रहा हूँ
- HI/Prabhupada 0553 - तुम्हे हिमालय जाने की आवश्यकता नहीं है । तुम बस, लॉस एंजिल्स शहर में रहो
- HI/Prabhupada 0554 - इस मायिका दुनिया के प्रशांत महासागर के बीच में हैं
- HI/Prabhupada 0555 - आध्यात्मिक समझ के मामले में सोना
- HI/Prabhupada 0556 - आत्म साक्षात्कार की पहली समझ है, कि आत्मा शाश्वत है
- HI/Prabhupada 0557 - हमें बहुत दृढ़ता से हरिदास ठाकुर की तरह कृष्ण भावनामृत में डटे रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0558 - हमारी स्थिति तटस्थ है । किसी भी समय, हम नीचे गिर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0559 - वे मूर्खतावश सोचते हैं कि बस "मैं हर चीज़ का राजा हूँ "
- HI/Prabhupada 0560 - जब तक कोई नैतिक चारित्र्य को स्वीकार नहीं करता है, हम दीक्षा नहीं देते हैं
- HI/Prabhupada 0561 - देवता का मतलब है लगभग भगवान । उनमें सब धर्मी गुण मिलेंगे
- HI/Prabhupada 0562 - मेरा प्रमाण वैदिक साहित्य हैं
- HI/Prabhupada 0563 - कुत्ते को एक बुरा नाम दो और उसे लटकाअो
- HI/Prabhupada 0564 - मैं कहता हूँ "भगवान के अादेश का पालन करें ।" यही मेरा मिशन है
- HI/Prabhupada 0565 - उन्हें मैं प्रशिक्षण दे रहा हूँ कि कैसे इंद्रियों को नियंत्रित करना है
- HI/Prabhupada 0566 - अगर अमेरिकी लोगों के नेता, वे आते हैं और वे समझने की कोशिश करते हैं
- HI/Prabhupada 0567 - मैं दुनिया को यह संस्कृति देना चाहता हूँ
- HI/Prabhupada 0568 - हम सिर्फ अापके दान पर निर्भर कर रहे हैं । आप चाहें, तो आप दान कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0569 - "स्वामीजी, मुझे दिक्षा दो ।" मैं तुरंत कहता हूँ "आपको इन चार सिद्धांतों का पालन करना होगा"
- HI/Prabhupada 0570 - पति और पत्नी के बीच गलतफहमी हो तो भी तलाक का सवाल ही नहीं था
- HI/Prabhupada 0571 - हमें परिवार के जीवन में नहीं रहना चाहिए । यही वैदिक संस्कृति है
- HI/Prabhupada 0572 - क्यों आप कहते हैं "ओह, मैं अपनी चर्च में अापको बात करने की अनुमति नहीं दे सकता ।"
- HI/Prabhupada 0573 - मैं किसी भी भगवद भावनाभावित व्यक्ति के साथ बात करने के लिए तैयार हूँ
- HI/Prabhupada 0601 - चैत्य गुरु का मतलब है जो भीतर से विवेक और ज्ञान देता है
- HI/Prabhupada 0602 -पिता परिवार के नेता हैं
- HI/Prabhupada 0603 - यह मृदंग घर घर में जाएगा
- HI/Prabhupada 0604 - अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे
- HI/Prabhupada 0607 - हमारे समाज में, तुम सभी गुरुभाई, गुरुबहिन हो
- HI/Prabhupada 0609 - तुम कई हो जो हरे कृष्ण का जाप कर रहे हो । यही मेरी सफलता है
- HI/Prabhupada 0613 - हमें विशेष ख्याल रखना होगा छह चीज़ो का
- HI/Prabhupada 0621 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रहा है प्राधिकारी के प्रति विनम्र बनना
- HI/Prabhupada 0622 - जो कृष्ण भावनामृत में लगे हुए हैं, उनके साथ अपना संग करो
- HI/Prabhupada 0623 - आत्मा, एक शरीर से दूसरे में देहांतरित होता है
- HI/Prabhupada 0624 - भगवान भी शाश्वत हैं, और हम भी शाश्वत हैं
- HI/Prabhupada 0625 - जीवन की आवश्यकताऍ परम शाश्वत, परमेश्वर द्वारा आपूर्ति की जा रही है
- HI/Prabhupada 0626 - अगर तुम तथ्यात्मक बातें जानना चाहते हो, तो तुम्हे आचार्य के पास जाना होगा
- HI/Prabhupada 0627 - ताज़गी के बिना, हम इस उदात्त विषय वस्तु को नहीं समझ सकते हैं
- HI/Prabhupada 0628 - हम ऐसी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, "शायद ।" नहीं । हम जो तथ्य है वह स्वीकार करते हैं
- HI/Prabhupada 0629 - हम अलग अलग वस्त्र में भगवान के विभिन्न पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0641 - एक भक्त की कोई मांग नहीं होती है
- HI/Prabhupada 0642 - यह कृष्ण भावनामृत का अभ्यास है भौतिक शरीर को आध्यात्मिक शरीर में बदलना
- HI/Prabhupada 0643 - जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है
- HI/Prabhupada 0644 - सब कुछ है कृष्ण भावनामृत में
- HI/Prabhupada 0645 - जिसने यह आत्मसाक्षातकार कर लिया है, वह हर जगह वृन्दावन में है
- HI/Prabhupada 0646 - योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो
- HI/Prabhupada 0647 - योग का मतलब है परम के साथ संबंध
- HI/Prabhupada 0648 - स्वभाव से हम जीव हैं, हमें कुछ करना ही होगा
- HI/Prabhupada 0649 -मन चालक है । शरीर रथ या गाडी है
- HI/Prabhupada 0650 - कृष्ण भावनामृत के पूर्ण योग से इस उलझन से बहार निकलो
- HI/Prabhupada 0651 - पूरी योग प्रणाली का मतलब है मन को हमारा दोस्त बनाना
- HI/Prabhupada 0652 - यह पद्म पुराण सत्व गुण में रहने वाले व्यक्तियों के लिए है
- HI/Prabhupada 0653 - अगर मेरे पिता एक रूप नहीं है, तो मुझे यह रूप कहाँ से प्राप्त हुआ
- HI/Prabhupada 0654 - तुम अपने प्रयास से भगवान को नहीं देख सकते हो क्योंकि तुम्हारी इन्द्रियॉ अपूर्ण हैं
- HI/Prabhupada 0655 - धर्म का उद्देश्य है भगवान को समझना । और भगवान से प्रेम करना सीखना
- HI/Prabhupada 0656 - जो लोग भक्त हैं, वे किसी से नफरत नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0657 - मंदिर इस युग के लिए एक मात्र एकांत जगह है
- HI/Prabhupada 0658 - श्रीमद भागवतम सर्वोच्च ज्ञानयोग है और भक्ति योग है, संयुक्त
- HI/Prabhupada 0659 - बस विष्णु के बारे में सुनना और कीर्तन करना
- HI/Prabhupada 0660 - केवल यौन जीवन को नियंत्रित करके तुम एक बहुत शक्तिशाली आदमी बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0661 - कोई भी इन लड़कों की तुलना में बेहतर ध्यानी नहीं है
- HI/Prabhupada 0662 - वे चिंता से भरे हुए हैं क्योंकि उन्होंने अस्थायी को ग्रहण किया है
- HI/Prabhupada 0663 - कृष्ण के साथ अपना खोया संबंध पुनःस्थापित करो । यही योगाभ्यास है
- HI/Prabhupada 0664 - शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता
- HI/Prabhupada 0665 - कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है
- HI/Prabhupada 0666 अगर सूर्य तुम्हारे कमरे में प्रवेश कर सकता है, क्या कृष्ण तुम्हारे में प्रवेश नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 0667 - पूरी अचेतना अायी है इस शरीर के कारण
- HI/Prabhupada 0668 - एक महीने में कम से कम दो अनिवार्य उपवास
- HI/Prabhupada 0669 - मन को केंद्रित करने का मतलब है कृष्ण में अपने मन को दृढ करना
- HI/Prabhupada 0670 - कृष्ण में अपने मन को दृढ करते हो, फिर भौतिक हिलना नहीं रहता
- HI/Prabhupada 0671 - आनंद का मतलब है दो, कृष्ण और तुम
- HI/Prabhupada 0672 - जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता की गारंटी है
- HI/Prabhupada 0673 - एक चिड़िया सागर को सूखने की कोशिश कर रही है
- HI/Prabhupada 0674 - इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि अपने शरीर को चुस्त रखने के लिए कितना खाना आवश्यक है
- HI/Prabhupada 0675 - एक भक्त दया का सागर है । वह दया वितरित करना चाहता है
- HI/Prabhupada 0676 - मन द्वारा नियंत्रित किए जाने का मतलब है इंद्रियों के द्वारा नियंत्रित होना
- HI/Prabhupada 0677 - गोस्वामी एक वंशानुगत शीर्षक नहीं है । यह एक योग्यता है
- HI/Prabhupada 0678 - कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है
- HI/Prabhupada 0679 - कृष्ण भावनामृत में कुछ भी किया गया, जानकरी में या अन्जाने में, उसका प्रभाव होगा ही
- HI/Prabhupada 0680 - हम सोच रहे हैं कि हम इस भूमि पर बैठे हैं, लेकिन वास्तव में हम कृष्ण पर बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0681 - अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो तुम विश्व से प्रेम करते हो
- HI/Prabhupada 0682 - भगवान मेरे अाज्ञापालक नही हैं
- HI/Prabhupada 0683 - योगी जो विष्णु रूप में समाधि में है, और एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति में, कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 0684 - योगपद्धतिकी महत्वपूर्ण परीक्षा है अगर तुम विष्णुके रूप पर अपने मनको केंद्रित कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0685 - भक्ति योग पद्धति त्वरित परिणाम, इसी जीवन में आत्म साक्षात्कार और मुक्ति
- HI/Prabhupada 0686 - झंझावात को रोक पाना कठिन होता है और उच्छृंखल मन को रोक पाना तो और भी कठिन है
- HI/Prabhupada 0687 - शून्य में अपने मन को केंद्रित करना, यह बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0688 - माया पर धावा बोलना
- HI/Prabhupada 0689 - अगर तुम दिव्य संग करते हो, तो तुम्हारी चेतना दिव्य है
- HI/Prabhupada 0690 - भगवान शुद्ध हैं, और उनका धाम भी शुद्ध है
- HI/Prabhupada 0691 - जो हमारे समाज में दिक्षा लेना चाहता है, हम चार सिद्धांत रखते हैं
- HI/Prabhupada 0692 - भक्ति योग, योग सिद्धांतों का सर्वोच्च मंच है
- HI/Prabhupada 0693 - जब हम सेवा की बात करते हैं, कोई मकसद नहीं है । सेवा प्रेम है
- HI/Prabhupada 0694 - सेवा भाव में फिर से जाना होगा । यह एकदम सही इलाज है
- HI/Prabhupada 0695 - सस्ते में वे भगवान का चयन करते हैं । भगवान इतने सस्ते हो गए हैं 'मैं भगवान हूँ, तुम भगवान हो'
- HI/Prabhupada 0696 - भक्ति योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है
- HI/Prabhupada 0697 - आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, बस । यही मांग की जानी चाहिए
- HI/Prabhupada 0698 - इन्द्रियों की सेवा करने की बजाय, कृपया तुम राधा कृष्ण की सेवा करो, तो तुम खुश रहोगे
- HI/Prabhupada 0699 - प्रेमी भक्त, श्री कृष्ण से प्रेम करना चाहता है, अपने मूल रूप में
- HI/Prabhupada 0700 - सेवा मतलब तीन चीज़ें स्वामी, सेवक और सेवा
- HI/Prabhupada 0701 -अगर तुम स्नेह रखते हो आध्यात्मिक गुरु के लिए, इस जीवन में अपने कार्य को खत्म करना होगा
- HI/Prabhupada 0702 - मैं आत्मा हूँ, शाश्वत हूँ। अब मैं पदार्थों से दूषित हूँ, इसलिए मैं भुगत रहा हूँ
- HI/Prabhupada 0703 - अगर तुम श्री कृष्ण में अपने मन को स्थित करते हो तो यह समाधि है
- HI/Prabhupada 0704 - हरे कृष्ण मंत्र जपो और सुनने के लिए इस उपकरण (तुम्हारे कान) का उपयोग करो
- HI/Prabhupada 0705 - हम भगवद गीता में पाऍगे, भगवान का यह सबसे उत्कृष्ट विज्ञान
- HI/Prabhupada 0712 - कृष्ण नें अादेश दिया " तुम पश्चिमी देशों में जाओ । उन्हें सिखाओ "
- HI/Prabhupada 0713 - व्यस्त मूर्ख खतरनाक है
- HI/Prabhupada 0714 - कोई भी लाभ क्यों न हो, मैं बोलूँगा कृष्ण के लिए
- HI/Prabhupada 0715 - आप भगवान का प्रेमी बन जाओ । यह प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 0720 - कृष्ण भावनामृत द्वारा तुम अपने कामुक इच्छा को नियंत्रित कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0721 - तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है
- HI/Prabhupada 0726 - सुबह जल्दी उठना चहिए और हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0733 - समय बहुत कीमती है, अगर तुम लाखों सोने के सिक्के का भुगतान करो, एक पल भी वापस नहीं ला सकते
- HI/Prabhupada 0743 - अगर तुम आनंद के अपने कार्यक्रम का निर्माण करते हो तो तुम्हे थप्पड़ मिलेगा
- HI/Prabhupada 0746 - हम एक ऐसी पीढ़ी चाहते हैं जो कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर सकें
- HI/Prabhupada 0747 - द्रौपदी ने प्रार्थना की 'कृष्ण, अगर आप चाहो, आप बचा सकते हो'
- HI/Prabhupada 0748 - भगवान भक्त को संतुष्ट करना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0751 - हमे भोजन बस अच्छी तरह से अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए लेना चाहिए
- HI/Prabhupada 0752 - जुदाई से कृष्ण को महसूस किया जा सकता है
- HI/Prabhupada 0753 - बड़े, बड़े आदमी उन्हें एक किताबों का समूह लेने दो और पढने दो
- HI/Prabhupada 0755 - समुद्र पीड़ित
- HI/Prabhupada 0756 - आधुनिक शिक्षा में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं है
- HI/Prabhupada 0758 - उस व्यक्ति की सेवा करो जिसने कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है
- HI/Prabhupada 0760 - यौन जीवन इस आंदोलन में मना नहीं है, लेकिन पाखंड मना है
- HI/Prabhupada 0761 - जो भी यहां आता है, पुस्तकों को पढना चाहता है
- HI/Prabhupada 0762 - बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें । आपका यह जीवन सुरक्षित् है, आपका अगला जीवन सुरक्षित् है
- HI/Prabhupada 0763 - हर कोई गुरु बन जाएगा जब वह विशेषज्ञ शिष्य होगा, लेकिन यह अपरिपक्व प्रयास क्यों
- HI/Prabhupada 0764 - मजदूरों को लगा कि, 'यीशु मसीहा मजदूरों में से कोई एक होगा'
- HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा
- HI/Prabhupada 0769 - वैष्णव खुद बहुत खुश रहता है, क्योंकि उसका कृष्ण के साथ सीधा संबंध है
- HI/Prabhupada 0771 - एक भक्त, भौतिक आनंद और दिव्य आनंद में एक साथ समान रूप से रुचि नहीं रख सकता है
- HI/Prabhupada 0772 - वैदिक सभ्यता की पूरी योजना है लोगों को मुक्ति देना
- HI/Prabhupada 0773 - हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0775 - कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है परिवारिक लगाव
- HI/Prabhupada 0776 - अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है', यह शिक्षा का परिणाम है
- HI/Prabhupada 0777 - जितना अधिक तुम अपनी चेतना को विकसित करते हो, उतना अधिक तुम स्वतंत्रता के प्रेमी बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0778 - मानव समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान ज्ञान है
- HI/Prabhupada 0779 - तुम उस जगह में सुखी नहीं हो सकते जो दुखों के लिए बनी है
- HI/Prabhupada 0780 - हम निरपेक्ष सत्य के ज्ञान की एक झलक पा सकते हैं
- HI/Prabhupada 0781 - योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरणकमलों में मन को स्थिर करना
- HI/Prabhupada 0782 - जप करना छोड़ना नहीं । फिर कृष्ण तुम्हारी रक्षा करेंगे
- HI/Prabhupada 0784 - अगर हम भगवान के लिए काम नहीं करते हैं तो हम माया के चंगुल में रहेंगे
- HI/Prabhupada 0785 - तो तानाशाही अच्छा है, अगर तानाशाह अत्यधिक योग्य है आध्यात्म में ।
- HI/Prabhupada 0786 - यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है
- HI/Prabhupada 0792 - कृष्ण का हर किसी के मित्र हुए बिना, कोई एक पल भी रह नहीं सकता है
- HI/Prabhupada 0795 - आधुनिक दुनिया वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता वश सक्रिय हैं, रजस तमस में
- HI/Prabhupada 0796 - मत सोचो कि मैं बोल रहा हूँ । मैं बस साधन हूँ । असली वक्ता भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0818 - सत्व गुण के मंच पर, तुम सर्वोत्तम को समझ सकते हो
- HI/Prabhupada 0837 - हम तब तक शक्तिशाली रहते हैं जब तक कृष्ण हमें रखते हैं
- HI/Prabhupada 0838 - सब कुछ शून्य हो जाएगा जब भगवान नहीं रहते
- HI/Prabhupada 0841 - आध्यात्मिक द्रष्टि से, अविर्भाव और तीरोभाव के बीच कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 0844 - केवल राजा को प्रसन्न करके, तुम भगवान को प्रसन्न कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0847 - कलियुग का यह वर्णन श्रीमद भागवतम में दिया गया है
- HI/Prabhupada 0849 - हम भगवान को देखना चाहते हैं, लेकिन हम स्वीकार नहीं करते हैैं कि हम योग्य नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0850 - अगर कुछ पैसे मिलें, तो पुस्तकें छापो
- HI/Prabhupada 0851 - चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0852 - आपके हृदय की गहराईओं में, भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0853 - एसा नहीं है कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें है
- HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0868 - हम जीवन के इस भयानक स्थिति से बच रहे हैं। तुम खुशी से बच रहे हो
- HI/Prabhupada 0869 - जनता व्यस्त मूर्ख है । तो हम आलसी बुद्धिमान पैदा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0878 - भारत में वैदिक सभ्यता का पतन
- HI/Prabhupada 0879 - विनम्रता भक्ति सेवा में बहुत अच्छी है
- HI/Prabhupada 0880 - कृष्ण भावनामृत को कृष्ण को परेशान करने के लिए अपनाया है, या तुम वास्तव में गंभीर हो
- HI/Prabhupada 0881 - यद्यपि भगवान अदृश्य हैं, अब वे दिखाई देने के लिए अवतरित हुए हैं, कृष्ण
- HI/Prabhupada 0882 - कृष्ण बहुत उत्सुक हैं हमें परम धाम ले जाने के लिए, पर हम ज़िद्दी हैं
- HI/Prabhupada 0883 - अपनी आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0884 - हम बैठे हैं और कृष्ण के बारे में पृच्छा कर रहे हैं । यही जीवन है
- HI/Prabhupada 0885 - आध्यात्मिक आनंद समाप्त नहीं होता । यह बढ़ता है
- HI/Prabhupada 0886 - व्यक्ति भागवत या पुस्तक भागवत, तुम सेवा करो । फिर तुम स्थिर रहोगे
- HI/Prabhupada 0893 - यह हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम नहीं करना चाहता
- HI/Prabhupada 0894 - कर्तव्य करना ही है । थोड़ी पीड़ा हो तो भी। यही तपस्या कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0895 - एक भक्त खतरनाक स्थितिको आपत्तिजनक स्थितिके रूपमें कभी नहीं लेता है । वह स्वागत करता है
- HI/Prabhupada 0896 - जब हम किताब बेचते हैं, यह कृष्ण भावनामृत है
- HI/Prabhupada 0897 - अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो, यह तुम्हारा लाभ है
- HI/Prabhupada 0898 - क्योंकि मैं एक भक्त बन गया हूँ, कोई खतरा नहीं होगा, कोई दुख नहीं होगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0899 - भगवान मतलब बिना प्रतिस्पर्धा के : एक । भगवान एक हैं । कोई भी उनसे महान नहीं है
- HI/Prabhupada 0900 - जब इन्द्रियों को इन्द्रिय संतुष्टि के लिए उपयोग किया जाता है, यह माया है
- HI/Prabhupada 0901 - अगर मैं ईर्ष्या नहीं करता हूँ, तो मैं आध्यात्मिक दुनिया में हूँ । कोई भी जांच कर सकता है
- HI/Prabhupada 0902 - कमी है कृष्ण भावनामृत की तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तब सब कुछ पर्याप्त है
- HI/Prabhupada 0903 - जैसे ही नशा खत्म होगा, तुम्हारे सभी नशीले स्वप्न भी खत्म हो जाते हैं
- HI/Prabhupada 0904 - तुमने भगवान की संपत्ति चुराई है
- HI/Prabhupada 0905 - असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है
- HI/Prabhupada 0906 - तुम्हारे पास शून्य है । कृष्ण को रखो । तुम दस बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0907 - आध्यात्मिक दुनिया में, तथाकथित अनैतिकता भी अच्छी है
- HI/Prabhupada 0908 - मैं सुखी होने की कोशिश कर सकता हूँ, अगर कृष्ण मंजूरी नहीं देते हैं, मैं कभी सुखी नहीं हूँगा
- HI/Prabhupada 0909 - मुझे मजबूर किया गया इस स्थिति में आने के लिए मेरे गुरु महाराज के आदेश का पालन करने के लिए
- HI/Prabhupada 0910 - हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम कृष्ण द्वारा शाषित रहे । यही सफल जीवन है
- HI/Prabhupada 0911 - अगर तुम भगवान में विश्वास करते हो, तो तुम सभी जीवों पर समान तरह से कृपालु और दयालु होंगे
- HI/Prabhupada 0912 - जो बुद्धिमत्ता में उन्नत हैं, वो भगवान को भीतर और बाहर देख सकते हैं
- HI/Prabhupada 0913 - कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान, और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं
- HI/Prabhupada 0914 - पदार्थ कृष्ण की एक शक्ति है, और अात्मा एक और शक्ति
- HI/Prabhupada 0915 - साधु मेरा ह्दय है, और मैं भी साधु का ह्दय हूँ
- HI/Prabhupada 0916 - कृष्ण को आपके अच्छे कपड़े या अच्छा फूल या अच्छे भोजन की आवश्यकता नहीं है
- HI/Prabhupada 0917 - सारा संसार इन्द्रियों की सेवा कर रहा है, इन्द्रियों का सेवक
- HI/Prabhupada 0918 - कृष्ण का शत्रु बनना बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनो
- HI/Prabhupada 0919 - कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं
- HI/Prabhupada 0920 - क्योंकि जीवन शक्ति, आत्मा है, पूरा शरीर काम कर रहा है
- HI/Prabhupada 0921 - क्या तुम श्रीमान निक्सन का संग करने पर बहुत गर्व महसूस नहीं करोगे ?
- HI/Prabhupada 0922 - हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो
- HI/Prabhupada 0923 - इन चार स्तम्भों को तोड़ो । तो पापी जीवन की छत गिर जाएगी
- HI/Prabhupada 0924 - केवल नकारात्मक्ता का कोई अर्थ नहीं है। कुछ सकारात्मक होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0925 - कामदेव हर किसी को मोहित करते है । और कृष्ण कामदेव को मोहित करते हैं
- HI/Prabhupada 0926 - ऐसी कोई कारोबार नहीं । यह जऱूरी है । कृष्ण उस तरह का प्रेम चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0927 - कैसे तुम कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है
- HI/Prabhupada 0928 - केवल कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम को बढ़ाअो । यही जीवन की पूर्णता है
- HI/Prabhupada 0929 - स्नान करना, यह भी अादत नहीं है । शायद एक हफ्ते में एक बार
- HI/Prabhupada 0930 - तुम इस भौतिक स्थिति से बाहर निकलो । तब वास्तविक जीवन है, अनन्त जीवन
- HI/Prabhupada 0931 - अगर कोई अजन्मा है तो वह कैसे मर सकता है ? मृत्यु का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0932 - कृष्ण जन्म नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ मूर्खों को एेसा दिखाई देता है
- HI/Prabhupada 0933 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को पशु जीवन में पतन होने से बचाने की कोशिश करता है
- HI/Prabhupada 0934 - आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है
- HI/Prabhupada 0935 - जीवन की वास्तविक आवश्यकता आत्मा के आराम की आपूर्ति है
- HI/Prabhupada 0936 - केवल वादा; 'भविष्य में ।' 'लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?'
- HI/Prabhupada 0937 - कौआ हंस के पास नहीं जाएगा । हंस कौए के पास नहीं जाएगा
- HI/Prabhupada 0938 - यीशु मसीह, कोई गलती नहीं है । केवल एक मात्र गलती थी वह भगवान के बारे मे प्रचार कर रहे थे
- HI/Prabhupada 0939 - कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो
- HI/Prabhupada 0940 - आध्यात्मिक दुनिया मतलब कोई काम नहीं । बस आनंद, हर्ष
- HI/Prabhupada 0941 - हमारे छात्रों में से कुछ, वे सोचते हैं कि 'क्यों मैं इस मिशन के लिए काम करूँ?
- HI/Prabhupada 0942 - हमने कृष्ण को भूलकर अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है
- HI/Prabhupada 0943 - कुछ भी मेरा नहीं है । इशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ कृष्ण का है
- HI/Prabhupada 0944 - केवल आवश्यकता यह है कि हम कृष्ण की व्यवस्था का लाभ लें
- HI/Prabhupada 0945 - भागवत-धर्म का मतलब है भक्त और भगवान के बीच का संबंध
- HI/Prabhupada 0946 - हम इस तथाकथित भ्रामक सुख के लिए एक शरीर से दूसरे में प्रवेश करते हैं
- HI/Prabhupada 0947 - हमें बहुत स्वतंत्रता मिली है, लेकिन अभी हम इस शरीर से बद्ध हैं
- HI/Prabhupada 0948 - यह युग कलि कहलता है, यह बहुत अच्छा समय नहीं है । केवल असहमति और लड़ाई
- HI/Prabhupada 0949 - हम शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम हमारे दांतों का अध्ययन नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0950 - हमारा पड़ोसी भूखा मर सकता है, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं है
- HI/Prabhupada 0951 - आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत परिपक्व फल है
- HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है
- HI/Prabhupada 0953 - जब आत्मा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो वह नीचे गिर जाता है । यही भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0954 - जब हम इन नीच गुणों पर विजय पाते हैं, तब हम सुखी होते हैं
- HI/Prabhupada 0955 - ज्य़ादातर जीव, वे आध्यात्मिक दुनिया में हैं । केवल कुछ ही नीचे गिरते हैं
- HI/Prabhupada 0956 - कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा : ' स्कूल जाअो ' नहीं । वे कुत्ते हैं
- HI/Prabhupada 0957 - मुहम्मद कहते हैं कि वे भगवान के दास हैं । मसीह कहते हैं कि वे भगवान के पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0958 - अाप गायों को प्यार नहीं करते; आप उन्हें कसाईखाने भेज देते हो
- HI/Prabhupada 0959 - भगवान को भी विवेक है । बुरा तत्व हैं
- HI/Prabhupada 0960 - जो भगवान के अस्तित्व से इनकार करता हैं, वो पागल हैं
- HI/Prabhupada 0961 - हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं
- HI/Prabhupada 0962 - हम ठोस तथ्य के रूप में भगवान को मानते हैं
- HI/Prabhupada 0963 - केवल कृष्ण का एक भक्त जो उनसे घनिष्टता के संबंध रखता है भगवद गीता को समझ सकता है
- HI/Prabhupada 0964 - जब कृष्ण इस ग्रह पर विद्यमान थे, वे गोलोक वृन्दावन में अनुपस्थित थे । नहीं
- HI/Prabhupada 0965 - हमें उस व्यक्ति की शरण लेना है जिसका जीवन कृष्ण को समर्पित है
- HI/Prabhupada 0966 - हम भगवान के दर्शन कर सकते हैं जब आंखें रंगीं हो भक्ति के काजल से
- HI/Prabhupada 0967 - कृष्ण को, भगवान को, समझने के लिए हमें अपनी इन्द्रियों को शुद्ध करना होगा
- HI/Prabhupada 0968 - पश्चिमी तत्वज्ञान सुखवाद का है, खाअो, पियो, ऐश करो
- HI/Prabhupada 0969 - अगर तुम अपनी जीभ को भगवान की सेवा में लगाते हो, वे खुद को तुम्हे प्रकट करेंगे
- HI/Prabhupada 0970 - जीभ को हमेशा भगवान की महिमा करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0971 - तो जब तक तुम जीवन की शारीरिक अवधारणा में हो, तुम जानवर से बेहतर नहीं हो
- HI/Prabhupada 0972 - समझने की कोशिश करो 'किस तरह का शरीर मुझे अगला मिलेगा?
- HI/Prabhupada 0973 - अगर वह सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह निश्चित रूप से भगवद धाम वापस जाता है
- HI/Prabhupada 0974 - हमारी महानता बहुत, बहुत छोटी है, अत्यल्प । भगवान बहुत महान हैं
- HI/Prabhupada 0975 - हम छोटे भगवान हैं । सूक्ष्म, नमूने के भगवान
- HI/Prabhupada 0976 - जनसंख्या के अधिक होने का कोई सवाल नहीं है । यह एक गलत सिद्धांत है
- HI/Prabhupada 0977 - यह भौतिक शारीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है
- HI/Prabhupada 0978 - अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे
- HI/Prabhupada 0979 - भारत की हालत बहुत ही अराजक है
- HI/Prabhupada 0980 - हम भौतिक समृद्धि से सुखी नहीं हो सकते, यह एक तथ्य है
- HI/Prabhupada 0981 - पहेले हर ब्राह्मण ये दो विज्ञान सीखते थे, आयुर्वेद और ज्योतिर वेद
- HI/Prabhupada 0982 - जैसे ही हमें एक गाडी मिलती है, कितनी भी खराब क्यों न हो, हमें लगता है कि यह बहुत अच्छा है
- HI/Prabhupada 0983 - भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0984 - हिंदुओं का एक भगवान है और ईसाइयों का दूसरा भगवान है । नहीं । भगवान दो नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0985 - मनुष्य जीवन विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है
- HI/Prabhupada 0986 - कोई भी भगवान से ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकता
- HI/Prabhupada 0987 - यह मत सोचो कि भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम कभी भूखे नहीं रहोगे
- HI/Prabhupada 0988 - श्रीमद-भागवतम में तथाकथित भावुक धर्मनिष्ठा नहीं है
- HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग
- HI/Prabhupada 0990 - प्रेम का मतलब यह नहीं 'मैं खुद को प्यार करता हूँ' और प्रेम पर ध्यान करता हूं । नहीं
- HI/Prabhupada 0991 - जुगल प्रीति : राधा और कृष्ण के बीच का प्रेम
- HI/Prabhupada 0992 - अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है
- HI/Prabhupada 0993 - यह व्यवस्था करो कि वह भूखा नहीं रहा है । यह आध्यात्मिक साम्यवाद है
- HI/Prabhupada 0994 - भगवान और हमारे बीच क्या अंतर है?
- HI/Prabhupada 0995 - कृष्ण भावनामृत अंदोलन क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है
- HI/Prabhupada 0996 - मैंने तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियों को रिश्वत नहीं दी थी मेरा अनुसरण करने के लिए
- HI/Prabhupada 0997 - कृष्ण का कार्य हर किसी के लिए है । इसलिए हम हर किसी का स्वागत करते हैं
- HI/Prabhupada 0998 - एक साधु का कार्य है सभी जीवों का कल्याण
- HI/Prabhupada 0999 - अात्मवित मतलब वो व्यक्ति जो आत्मा को जानता है
- HI/Prabhupada 1000 - माया हमेशा मौके की तलाश में है, छिद्र, कैसे तुम पर फिर से कब्जा करें
- HI/Prabhupada 1001 - कृष्ण भावनामृत हर किसी के हृदय में सुषुप्त है
- HI/Prabhupada 1002 - यदि मैं भगवान से किसी लाभ के लिये प्रेम करूँ, तो वह व्यापार है; वो प्रेम नहीं है
- HI/Prabhupada 1003 - व्यक्ति भगवान के पास गया है, भगवान आध्यात्मिक है, लेकिन वो भौतिक लाभ मांग रहा है
- HI/Prabhupada 1004 - बिल्लियों और कुत्तों की तरह काम करते रहना और मर जाना । ये बुद्धिमता नहीं है
- HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं
- HI/Prabhupada 1006 - हम जाति व्यवस्था प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1007 - जहाँ तक कृष्ण भावनामृत का संबंध है, हम समान रूप से वितरित करते हैं
- HI/Prabhupada 1008 - मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया 'जाओ और पश्चिमी देशों में इस पंथ का प्रचार करो'
- HI/Prabhupada 1009 - अगर तुम गुरु को भगवान की तरह सम्मान देते हो, तो उन्हे भगवानकी तरह सुविधा भी देनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1010 - तुम लकड़ी, पत्थर देख सकते हो । तुम आत्मा नहीं देख सकते
- HI/Prabhupada 1011 - धर्म क्या है यह तुम्हे भगवान से सीखना होगा । तुम अपने मन से धर्म का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1012 - सुनना और दोहराना, सुनना और दोहराना । आपको निर्माण करने की अावशयक्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 1013 - अगली मृत्यु से पहले हमें अति शीध्र प्रयास करना चाहिए
- HI/Prabhupada 1014 - एक ढोंगी नकली भगवान अपने शिष्य को सिखा रहा था और वह बिजली के झटके महसूस कर रहा था
- HI/Prabhupada 1015 - जब तक पदार्थ के पीछे अात्मा नहीं होती है, कुछ भी निर्माण नहीं किया जा सकता है
- HI/Prabhupada 1016 - भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत
- HI/Prabhupada 1017 - ब्रह्मा मूल सृजनकर्ता नहीं हैं । मूल सृजनकर्ता कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1018 - शुरुआत में हमें लक्ष्मी नारायण के स्तर में राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1019 - अगर तुम कृष्ण के लिए कुछ सेवा करते हो, तो कृष्ण तुम्हे सौ गुना पुरस्कृत करेंगे
- HI/Prabhupada 1020 - हृदय प्रेम के लिए ही है, परन्तु आप क्यों इतने कठोर हृदय के हो ?
- HI/Prabhupada 1021 - अगर बद्ध जीव से कोई सहानुभूति करता है, तो वह एक वैष्णव है
- HI/Prabhupada 1022 - पहली बात हमें यह सीखना है कि प्रेम कैसे करना है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 1023 - अगर भगवान सर्व शक्तिशाली हैं, तुम क्यों उनकी शक्ति को घटाते हो, कि वे अवतरित नहीं हो सकते ?
- HI/Prabhupada 1024 - अगर तुम इन दो सिद्धांतों का पालन करते हो, कृष्ण तुम्हारी पकड़ में होंगे
- HI/Prabhupada 1025 - कृष्ण केवल प्रतीक्षा कर रहे हैं 'कब यह धूर्त मेरी तरफ अपना चेहरा मोडेगा ?'
- HI/Prabhupada 1026 - अगर हम समझ जाते हैं कि कृष्ण भोक्ता हैं, हम नहीं - यही आध्यात्मिक दुनिया है
- HI/Prabhupada 1027 - मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और समाज मेरे सैनिक हैं । अगर मैं मुसीबत मे हूँ, वे मेरी मदद करेंगे
- HI/Prabhupada 1028 - ये सभी नेता, वे स्थिति को बिगाड़ रहे हैं
- HI/Prabhupada 1046 - तय करो कि क्या एेसा शरीर पाना है जो कृष्ण के साथ नृत्य करने में, बात करने में सक्षम है
- HI/Prabhupada 1047 - उसने कुछ मिथ्या कर्तव्य को अपनाया है और उसके लिए कडी मेहनत कर रहा है, इसलिए वह एक गधा है
- HI/Prabhupada 1048 - तुम कभी सुखी नहीं रहोगे - पूर्ण शिक्षा - जब तक तुम भगवद धाम वापस नहीं जाते हो
- HI/Prabhupada 1049 - गुरु भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है
- HI/Prabhupada 1050 - 'तुम ऐसा करो और मुझे पैसे दो और तुम सुखी हो जाओगे' - वह गुरु नहीं है
- HI/Prabhupada 1051 - मैने गुरु के शब्दों को अपनाया, जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में
- HI/Prabhupada 1057 - भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार
- HI/Prabhupada 1058 - भगवद गीता के वक्ता भगवान श्री कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1059 - प्रत्येक व्यक्ति का भगवान के साथ विशिष्ट संबंध है
- HI/Prabhupada 1060 - जब तक कोई भगवद गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है...
- HI/Prabhupada 1061 - इस भगवद गीता की विषयवस्तु में पाँच मूल सत्यों का ज्ञान निहित है
- HI/Prabhupada 1062 - हमारी वृत्ति भौतिक प्रकृति को नियंत्रित करने की है
- HI/Prabhupada 1063 - हमें सभी प्रकार के कर्मफल से मुक्ति दो
- HI/Prabhupada 1064 - भगवान हरेक जीव के हृदय में वास करते हैं
- HI/Prabhupada 1065 - व्यक्ति को सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि वो यह शरीर नहीं है
- HI/Prabhupada 1066 - अल्पज्ञानी लोग परम सत्य को निराकार मानते हैं
- HI/Prabhupada 1067 - हमें भगवद गीता को किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी के बग़ैर, बिना घटाए स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 1068 - विभिन्न प्रकार के गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म हैं
- HI/Prabhupada 1069 - रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं
- HI/Prabhupada 1070 - सेवा करना जीव का शाश्वत धर्म है
- HI/Prabhupada 1071 - अगर हम भगवान का संग करते हैं, उनका सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं
- HI/Prabhupada 1072 - भौतिक जगत को छोड़ना और नित्य धाम में अनन्दमय जीवन पाना
- HI/Prabhupada 1073 - जब तक हम भौतिक प्रकृति पर प्रभुत्व जताने की प्रवृत्ति को नहीं त्यागते
- HI/Prabhupada 1074 - इस संसार में जितने भी दुख का हम अनुभव करते हैं - ये सब शरीर से उत्पन्न है
- HI/Prabhupada 1075 - इस जीवन के कर्मो से हम अगले जीवन की तैयारी कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1076 - मृत्यु के समय हम या तो इस संसार में रह सकते हैं या आध्यात्मिक जगत जा सकते हैं
- HI/Prabhupada 1077 - भगवान पूर्ण हैं, उनके नाम और उनमे कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 1078 - मन तथा बुद्धि को चौबीस घंटे भगवान के विचार में लीन करना
- HI/Prabhupada 1079 - भगवद गीता एक दिव्य साहित्य है जिसको हमें ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए
- HI/Prabhupada 1080 - भगवद गीता में संक्षेप रुप से बताया है - एक ईश्वर कृष्ण हैं, वे सांप्रदायिक ईश्वर नहीं हैं