1080 Hindi Pages with Videos: Difference between revisions
Visnu Murti (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[Category:Hindi Language|0]] | [[Category:Hindi Language|0]] | ||
[[Category:Indian Languages]] | |||
[[Category:Asian Languages]] | [[Category:Asian Languages]] | ||
[[Category:Languages with Total Pages]] | [[Category:Languages with Total Pages]] | ||
{{1080userinfo}} | |||
*Welcome to our [https://www.youtube.com/channel/UCFFGbh1ksX8Z9VG-0FItzrw '''Hindi YouTube Channel'''] where you can see many videos of Srila Prabhupada speaking with hardcoded Hindi subtitles. |
Latest revision as of 09:18, 18 January 2019
- More than 750 devotees have already translated, as subtitles in YouTube, over 39,000 texts from Śrīla Prabhupāda's lectures and conversations. These translated texts are now becoming available as Vanipedia pages.
- Each page is accompanied by an audio clip, a video clip with subtitles, a link to the original Vaniquotes page in English and a link to the original Vanisource page in English.
- Here is the full list of the 1080 original Vaniquotes pages in English which are the source for all the translations.
- Below you can see, at a glance, how many of these translated texts are now available as Vanipedia pages in your language.
- If you want to help translate some of the 1080 original Vanipedia pages in English in your language, or help to create more pages, or if you see some ways to improve the existing translations, then please contact visnu.murti.vani@ gmail.com
- Here you can read about the translation project, see all the participating languages and get some information to start serving.
- Welcome to our Hindi YouTube Channel where you can see many videos of Srila Prabhupada speaking with hardcoded Hindi subtitles.
Subcategories
This category has only the following subcategory.
H
Pages in category "1080 Hindi Pages with Videos"
The following 1,081 pages are in this category, out of 1,081 total.
H
- HI/Prabhupada 0001 - एक करोड़ तक फैल जाअो
- HI/Prabhupada 0002 - उन्मत्त सभ्यता
- HI/Prabhupada 0003 - पुरूष भी स्त्री है
- HI/Prabhupada 0004 - आधिकारिक स्रोत की शरण लो
- HI/Prabhupada 0005 - प्रभुपाद की जीवनी तीन मिनटों में
- HI/Prabhupada 0006 - हर कोई भगवान है मूर्खों का स्वर्ग
- HI/Prabhupada 0007 - कृष्ण का संरक्षण आएगा
- HI/Prabhupada 0008 - कृष्ण दावा करते है की 'मैं हर किसी का पिता हूँ'
- HI/Prabhupada 0009 - चोर जो भक्त बना
- HI/Prabhupada 0010 - कृष्ण की नकल न करो
- HI/Prabhupada 0011 - मन में कृष्ण की पूजा की जा सकती है
- HI/Prabhupada 0012 - ज्ञान का स्रोत श्रवण है
- HI/Prabhupada 0013 - आध्यात्मिक कार्य चौबीस घंटे
- HI/Prabhupada 0014 - भक्त इतने महान हैं
- HI/Prabhupada 0015 - मैं ये शरीर नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0016 - मैं काम करना चाहता हूँ
- HI/Prabhupada 0017 - परा शक्ति और अपरा शक्ति
- HI/Prabhupada 0018 - गुरु के शब्द सर्वस्व
- HI/Prabhupada 0019 - पहले सुनो और फिर दोहराओ
- HI/Prabhupada 0020 - कृष्ण को समझना इतना सरल नहीं है
- HI/Prabhupada 0021 - ये देश में इतने सारे तलाक क्यों होते है
- HI/Prabhupada 0022 - कृष्ण भूखे नहीं है
- HI/Prabhupada 0023 - मृत्यु से पहले कृष्ण भावनाभावित हो जाअो
- HI/Prabhupada 0024 - कृष्ण इतने दयालु है
- HI/Prabhupada 0025 - अगर हम असली चीज देते हैं, तो उसका असर तो होगा ही
- HI/Prabhupada 0026 - अापको सबसे पहले स्थानांतरित किया जाएगा उस ब्रह्मांड में जहाँ कृष्ण मौजूद हैं
- HI/Prabhupada 0027 - उन्हे पता ही नहीं की पुनर्जिवन है
- HI/Prabhupada 0028 - बुद्ध भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0029 - बुद्ध ने राक्षसों को धोखा दिया
- HI/Prabhupada 0030 - कृष्ण सिर्फ आनंद करते है
- HI/Prabhupada 0031 - मेरे उपदेशो तथा प्रशिक्षण के अनुसार जीवन व्यतीत करो
- HI/Prabhupada 0032 - मुझे जो कुछ भी कहना था, मैने अपनी पुस्तकों में कह दिया है
- HI/Prabhupada 0033 - महाप्रभु का नाम पतीत-पावन है, वे सब बुरे पुरुषों का उद्धार कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0034 - हर कोई अधिकारियों से ज्ञान प्राप्त करता है
- HI/Prabhupada 0035 - ये शरीर में दो जीव है
- HI/Prabhupada 0036 - जीवन का लक्ष्य है हमारे स्वाभाविक स्थिति को समझना
- HI/Prabhupada 0037 - जो कृष्ण को जानता है, वह गुरू है
- HI/Prabhupada 0038 - ज्ञान वेदों से उत्पन्न होता है
- HI/Prabhupada 0039 - आधुनिक नेता कठपुतली के समान है
- HI/Prabhupada 0040 - यहाँ एक परम पुरुष हैं
- HI/Prabhupada 0041 - वर्तमान जीवन अशुभता से भरा है
- HI/Prabhupada 0042 - इस दीक्षा को बहुत गंभीरता से लो
- HI/Prabhupada 0043 - भगवद् गीता मुख्य सिद्धांत है
- HI/Prabhupada 0044 - सेवा का अर्थ है तुम गुरु के आदेश का अनुसरण करो
- HI/Prabhupada 0045 - ज्ञान का प्रयोजन ज्ञेयम है
- HI/Prabhupada 0046 - आप जानवर मत बनिये - सामना कीजिए
- HI/Prabhupada 0047 - कृष्ण परब्रह्म हैं
- HI/Prabhupada 0048 - आर्यन सभ्यता
- HI/Prabhupada 0049 - हम प्रकृति के नियमों से बंधे हैं
- HI/Prabhupada 0050 - उनको पता नहीं है की अगला जीवन क्या है
- HI/Prabhupada 0051 - यह आंदोलन सबसे बुद्धिमान वर्ग के लिए है
- HI/Prabhupada 0052 - भक्त्त और कर्मी में अंतर
- HI/Prabhupada 0053 - सबसे पहली बात हमें सुनना चाहिए
- HI/Prabhupada 0054 - हर कोई केवल कृष्ण को तकलीफ दे रहा है
- HI/Prabhupada 0055 - श्रवण द्वारा कृष्ण को छूना
- HI/Prabhupada 0056 - बारह अधिकारियों का उल्लेख है शास्त्रों में
- HI/Prabhupada 0057 - हृदय का परिमार्जन
- HI/Prabhupada 0058 - आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है शाश्वत जीवन
- HI/Prabhupada 0059 - अपने वास्तविक कर्तव्य को मत भूलो
- HI/Prabhupada 0060 - जीवन भौतिक पदार्थ से नहीं आ सकता
- HI/Prabhupada 0061 - यह शरीर त्वचा, हड्डी, रक्त का एक थैला है
- HI/Prabhupada 0062 - चौबीस घंटे कृष्ण को देखें
- HI/Prabhupada 0063 - मुझे एक महान मृदंग वादक होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0064 - सिद्धि का अर्थ है जीवन का सिद्ध होना
- HI/Prabhupada 0065 -कृष्ण भावनाभावित बनने से हर कोई सुखी हो जाएगा
- HI/Prabhupada 0066 - हमें कृष्ण की इच्छाओं से सेहमत होना है
- HI/Prabhupada 0067 - गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे
- HI/Prabhupada 0068 - हर किसी को काम करना पड़ता है
- HI/Prabhupada 0069 - मैं मरने नहीं वाला
- HI/Prabhupada 0070 - अच्छी तरह से संचालन करो
- HI/Prabhupada 0071 - भगवान के लापरवाह बेकार पुत्र
- HI/Prabhupada 0072 - सेवक का कर्तव्य है शरणागत होना
- HI/Prabhupada 0073 - वैकुण्ठ का अर्थ है चिंता के बिना
- HI/Prabhupada 0074 - आपको पशुओ को क्यों खाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0075 - तुम्हे एक गुरु के पास जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0076 - सर्वत्र कृष्ण को देखो
- HI/Prabhupada 0077 - आप वैज्ञानिक और दार्शनिक अध्ययन कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0078 - केवल, आस्था के साथ, आप सुनने का प्रयास करें
- HI/Prabhupada 0079 - मेरा कोई श्रेय नहीं है
- HI/Prabhupada 0080 - कृष्ण अपने सखाओं के साथ क्रीडा करने के बहुत शौकीन है
- HI/Prabhupada 0081 - सूर्य लोक में शरीर अग्नि से बने हैं
- HI/Prabhupada 0082 - कृष्ण सर्वत्र हैं
- HI/Prabhupada 0083 - हरे कृष्ण का जप करो तब सब कुछ आ जाएगा
- HI/Prabhupada 0084 - केवल कृष्ण का भक्त बनो
- HI/Prabhupada 0085 - ज्ञान की संस्कृति का अर्थ है आध्यात्मिक ज्ञान
- HI/Prabhupada 0086 - असमानताएँ क्यों हैं
- HI/Prabhupada 0087 - भौतिक प्रकृति के नियम
- HI/Prabhupada 0088 - हमारे साथ जो छात्र शामिल हुए हैं, वे श्रवणिक अभिग्रहण करते हैं
- HI/Prabhupada 0089 - कृष्ण का तेज सर्वस्व का स्रोत है
- HI/Prabhupada 0090 - व्यवस्थित प्रबंधन अन्यथा इस्कॉन कैसे चलेगा
- HI/Prabhupada 0091 -आप यहाँ नग्न खड़े हो जाओ
- HI/Prabhupada 0092 - हमे कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए अपनी इंद्रियों को प्रशिक्षित करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0093 - भगवद् गीता भी कृष्ण है
- HI/Prabhupada 0094 - हमारा कार्य कृष्ण के शब्दों को दोहराना है
- HI/Prabhupada 0095 - हमारा काम है शरण लेना
- HI/Prabhupada 0096 - हमे व्यक्ति भागवत से अध्ययन करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0097 - मैं बस एक डाक चपरासी हूँ
- HI/Prabhupada 0098 - कृष्ण की सुंदरता से आकर्षित हो
- HI/Prabhupada 0099 - कैसे कृष्ण द्वारा मान्यता प्राप्त हो
- HI/Prabhupada 0100 - हम सदा कृष्ण के साथ जुड़े हुए हैं
- HI/Prabhupada 0101 - हमारा स्वस्थ जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में है
- HI/Prabhupada 0102 - मन की गति
- HI/Prabhupada 0103 - भक्तों के समाज से दूर जाने की कोशिश कभी नहीं करो
- HI/Prabhupada 0104 - जन्म और मृत्यु के चक्र को रोको
- HI/Prabhupada 0105 - यह विज्ञान, परम्परा द्वारा समझा जाता है
- HI/Prabhupada 0106 - लिफ्ट सीधे कृष्ण भक्ति की ओर ले लो
- HI/Prabhupada 0107 - किसी भी भौतिक शरीर को फिर से स्वीकार न करें
- HI/Prabhupada 0108 - छपाई और अनुवाद जारी रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0109 - हम किसी भी आलसी आदमी को अनुमति नहीं देते
- HI/Prabhupada 0110 - पूर्ववर्ती आचार्य की कठपुतली बन जाओ
- HI/Prabhupada 0111 - अनुदेश का पालन करो, तो फिर तुम कहीं भी सुरक्षित हो
- HI/Prabhupada 0112 - किसी भी बात को परिणाम से माना जाता है
- HI/Prabhupada 0113 - जिह्वा को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0114 - एक सज्जन व्यक्ति जिसका नाम कृष्ण है, वह हर किसी को नियंत्रित कर रहे है
- HI/Prabhupada 0115 - मेरा काम केवल कृष्ण का संदेश देना है
- HI/Prabhupada 0116 - अपना बहुमूल्य जीवन बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0117 - मुफ्त होटल और मुफ्त सोने का आवास
- HI/Prabhupada 0118 - प्रचार का काम बहुत मुश्किल बात नहीं है
- HI/Prabhupada 0119 - आत्मा सदाबहार है
- HI/Prabhupada 0120 - अचिन्त्य रहस्यवादी शक्ति
- HI/Prabhupada 0121 - तो अंततः कृष्ण काम कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0122 - ये दुष्ट, उन्हें लगता है कि, "मैं यह शरीर हूँ"
- HI/Prabhupada 0123 - आत्मसमर्पण के लिए मजबूर, यह विशेष एहसान है
- HI/Prabhupada 0124 - हमें अपने आध्यात्मिक गुरु के शब्दों को अपने जीवन और आत्मा के रूप में लेना चाहिए
- HI/Prabhupada 0125 - समाज इतना प्रदूषित है
- HI/Prabhupada 0126 - यह आंदोलन केवल मेरे आध्यात्मिक गुरु की संतुष्टि के लिए शुरू किया गया था
- HI/Prabhupada 0127 - एक महानसंस्था खो गई सनकी तरीके की वजह से
- HI/Prabhupada 0128 - मैं कभी नहीं मरूँगा
- HI/Prabhupada 0129 - कृष्ण पर निर्भर करो
- HI/Prabhupada 0130 - कृष्ण इतने सारे अवतार में दिखाई दे रहे हैं
- HI/Prabhupada 0131 - पिता को समर्पण करना बहुत स्वाभाविक है
- HI/Prabhupada 0132 - वर्गहीन समाज बेकार समाज है
- HI/Prabhupada 0133 - मैं एक छात्र चाहता हूँ जो मेरे आदेशों का पालन करे
- HI/Prabhupada 0134 - तुम मारोगे नहीं, और तुम मार रहे हो
- HI/Prabhupada 0135 - वेदों की उम्र तुम गिन नहीं सकते
- HI/Prabhupada 0136 - ज्ञान अाता है परम्परा उत्तराधिकार द्वारा
- HI/Prabhupada 0137 - जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान क्या है
- HI/Prabhupada 0138 - ईश्वर बहुत दयालु है। तुम जो इच्छा करते हो, वह पूरी करेंगे
- HI/Prabhupada 0139 - यह आध्यात्मिक संबंध है
- HI/Prabhupada 0140 - एक रास्ता धार्मिक है, एक पथ अधर्मिक है कोई तीसरा रास्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 0141 - माँ दूध देती है, और तुम माँ को मार रहे हो
- HI/Prabhupada 0142 - भौतिक प्रकृति के इस कत्लेआम की प्रक्रिया को रोको
- HI/Prabhupada 0143 - लाखों अरबों ब्रह्मांड हैं
- HI/Prabhupada 0144 - इसे माया कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0145 - हमें कुछ प्रकार की तपस्या को स्वीकार करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0146 - अगर मेरी अनुपस्थिति में यह रिकॉर्ड चलाया जाता है , यह एकदम वही आवाज़ दोहराएगा
- HI/Prabhupada 0147 - साधारण चावल सर्वोच्च चावल नहीं कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0148 - हम भगवान का अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0149 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, इसका मतलब है परम पिता का पता लगाना
- HI/Prabhupada 0150 - हमें जप नहीं छोडना चाहिए
- HI/Prabhupada 0151 - हमें अाचार्यों से सीखना होगा
- HI/Prabhupada 0152 - एक पापी मनुष्य श्री कृष्ण के प्रति जागरूक नहीं बन सकता है
- HI/Prabhupada 0153 - साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है
- HI/Prabhupada 0154 - तुम अपने हथियार हमेशा तेज रखना
- HI/Prabhupada 0155 - सभी ईश्वर बनने का प्रयत्न कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0156 - मैं आपको वो सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ, जिसे आप भूल चुके हैं
- HI/Prabhupada 0157 - जब तक आपका हृदय शुद्ध न हो जाए, आप नहीं समझ सकते कि हरि कौन हैं
- HI/Prabhupada 0158 - माँ की हत्या करने वाली सभ्यता
- HI/Prabhupada 0159 - लोगों को शिक्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएँ कठिन परिश्रम कैसे करें
- HI/Prabhupada 0160 - कृष्ण विरोध कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0161 - वैष्णव बनना तथा पीड़ित मानवता के लिए अनुभव करना
- HI/Prabhupada 0162 - केवल भगवद्गीता का संदेश पहुँचाएँ
- HI/Prabhupada 0163 - धर्म का मतलब है भगवान द्वारा दिए गए संहिता और कानून
- HI/Prabhupada 0164 - वर्णाश्रम धर्म की भी स्थापना करनी चाहिए जिससे पद्धति सरल हो जाये
- HI/Prabhupada 0165 - शुद्ध कार्यों को भक्ति कहते हैं
- HI/Prabhupada 0166 - तुम बर्फ को गिरने से नहीं रोक सकते
- HI/Prabhupada 0167 - भगवान द्वारा निर्मित नियम दोषरहित हैं
- HI/Prabhupada 0168 - नम्र और विनम्र बनने की संस्कृति
- HI/Prabhupada 0169 - कृष्ण को देखने के लिए कठिनाई कहां है
- HI/Prabhupada 0170 - हमें गोस्वामियों का अनुसरण करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0171 - भूल जाओ अच्छी सरकार लाखों वर्षों के लिए, जब तक...
- HI/Prabhupada 0172 - असली धर्म है कृष्ण को आत्मसमर्पण करना
- HI/Prabhupada 0173 - हम हर व्यक्ति का मित्र बनना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0174 - प्रत्येक जीव भगवान की सन्तान है
- HI/Prabhupada 0175 -धर्म का मतलब है धीरे धीरे कौवे को हंस में बदलना
- HI/Prabhupada 0176 - कृष्ण तुम्हारे साथ सर्वदा रहेंगे यदि तुम कृष्ण से प्रेम करो
- HI/Prabhupada 0177 - कृष्ण भावनामृत शाश्वत तथ्य है
- HI/Prabhupada 0178 - कृष्ण द्वारा दिए गए आदेश धर्म हैं
- HI/Prabhupada 0179 - हमें कृष्ण के लिए काम करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0180 - हरे कृष्ण मंत्र, निस्संक्रामक है
- HI/Prabhupada 0181 - मैं भगवान के साथ परिचित संबंध जोडूँगा
- HI/Prabhupada 0182 - उसी धुली हुई हालत में अपने आप को रखो
- HI/Prabhupada 0183 - श्रीमान उल्लू, कृपया अपनी आँखें खोलो और सूरज को देखो
- HI/Prabhupada 0184 - लगाव को भौतिक ध्वनि से आध्यात्मिक ध्वनि मे स्थानांतरित करें
- HI/Prabhupada 0185 - हमें इन हवाई बातचीत से परेशान नहीं होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0186 - भगवान भगवान है । जैसे सोना सोना है
- HI/Prabhupada 0187 - हमेशा चमकदार रोशनी में रहो
- HI/Prabhupada 0188 - जीवन की सभी समस्याओं का अंतिम समाधान
- HI/Prabhupada 0189 - भक्त को तीनों गुणों से ऊपर रखें
- HI/Prabhupada 0190 - भौतिक जीवन के लिए अनासक्ति बढाओ
- HI/Prabhupada 0191 - कृष्ण को नियंत्रित कर सकते हैं - यही वृन्दावन जीवन है
- HI/Prabhupada 0192 - पूरे मानव समाज को घोर अंधेरे से निकालने के लिए
- HI/Prabhupada 0193 - हमारा यह पूरा समाज इन किताबों को सुन रहा है
- HI/Prabhupada 0194 - यहाँ प्रथम श्रेणी के पुरुष है
- HI/Prabhupada 0195 - शरीर में मजबूत, मन में मजबूत, दृढ़ संकल्प में मजबूत
- HI/Prabhupada 0196 - आध्यात्मिक चीजों की लालसा
- HI/Prabhupada 0197 - तुम्हे भगवद गीता यथार्थ पेश करना होगा
- HI/Prabhupada 0198 - इन बुरी आदतों को छोडना होगा और इन मोतियों पर हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना होगा
- HI/Prabhupada 0199 - ये बदमाश तथाकथित टिप्पणीकार, वे कृष्ण से बचना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0200 - एक छोटी सी गलती पूरी योजना को खराब कर देगी
- HI/Prabhupada 0201 - तुम्हारी मौत को कैसे रोकें
- HI/Prabhupada 0202 - एक उपदेशक से बेहतर कौन प्यार कर सकता है
- HI/Prabhupada 0203 - इस हरे कृष्ण आंदोलन को रोकना मत
- HI/Prabhupada 0204 - मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है
- HI/Prabhupada 0205 - मैंने उम्मीद कभी नहीं किया, "यह लोग स्वीकार करेंगे"
- HI/Prabhupada 0206 - वैदिक समाज में पैसे का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0207 - गैर जिम्मेदाराना जीवन मत जिअो
- HI/Prabhupada 0208 - उस व्यक्ति की शरण लेनी चाहिए जो कृष्ण का भक्त है
- HI/Prabhupada 0209 - कैसे घर के लिए वापस जाऍ, भगवद धाम
- HI/Prabhupada 0210 - पूरा भक्ति मार्ग भगवान की दया पर निर्भर करता है
- HI/Prabhupada 0211 - हमारा मिशन है श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा की स्थापना करना
- HI/Prabhupada 0212 - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है
- HI/Prabhupada 0213 - मौत को बंद करो तब मैं तुम्हारा रहस्यवाद देखूँगा
- HI/Prabhupada 0214 - जब तक हम भक्त रहते हैं, हमारा आंदोलन चलता रहेगा
- HI/Prabhupada 0215 - आपको पढ़ना होगा । तो आप समझ पाअोगे
- HI/Prabhupada 0216 - कृष्ण प्रथम श्रेणी के हैं, उनके भक्त भी प्रथम श्रेणी के हैं
- HI/Prabhupada 0217 - देवहुति का पद एक आदर्श महिला का पद है
- HI/Prabhupada 0218 - गुरु आंखें खोलता है
- HI/Prabhupada 0219 - मालिक बनने का यह बकवास विचार त्याग दो
- HI/Prabhupada 0220 - हर जीव भगवान का अभिन्न अंग है
- HI/Prabhupada 0221 - मायावादी, उन्हे लगता है कि वे भगवान के साथ एक हो गए हैं
- HI/Prabhupada 0222 - इस आंदोलन को अागे बढाना बंद मत करो
- HI/Prabhupada 0223 - यह संस्था पूरे मानव समाज को शिक्षित करने के लिए होनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0224 - बड़े मकान का निर्माण, एक दोषपूर्ण नींव पर
- HI/Prabhupada 0225 - निराश मत हो,भ्रमित मत हो
- HI/Prabhupada 0226 - भगवान के नाम का प्रचार, महिमा, गतिविधियॉ, सुंदरता, प्यार
- HI/Prabhupada 0227 - क्यों मर रहे हो। मैं मरना नहीं चाहता
- HI/Prabhupada 0228 - अमर होने का रास्ता समझो
- HI/Prabhupada 0229 - मैं देखना चाहता हूँ कि एक शिष्य नें श्री कृष्ण के तत्वज्ञान को समझा है
- HI/Prabhupada 0230 - वैदिक सभ्यता के अनुसार, समाज के चार विभाजन हैं
- HI/Prabhupada 0231 - भगवान का मतलब है जो पूरे ब्रह्मांड के मालिक हैं
- HI/Prabhupada 0232 - तो भगवान से जलने वाले दुश्मन भी हैं । वे राक्षस कहे जाते हैं
- HI/Prabhupada 0233 - हमें गुरु और कृष्ण की दया के माध्यम से कृष्ण भावनामृत मिलती है
- HI/Prabhupada 0234 - एक भक्त बनना सबसे बड़ी योग्यता है
- HI/Prabhupada 0235 - अयोग्य गुरू का मतलब है जो शिष्य का मार्गदर्शन कैसे करना है यह नहीं जानता है
- HI/Prabhupada 0236 - एक ब्राह्मण, एक सन्यासी,भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं
- HI/Prabhupada 0237 - हम कृष्ण के साथ संपर्क में आ जाते हैं उनका नाम जप कर, हरे कृष्ण
- HI/Prabhupada 0238 - भगवान अच्छे हैं, वे सर्व अच्छे हैं
- HI/Prabhupada 0239 - कृष्ण को समझने के लिए, हमें विशेष इंद्रियों की आवश्यकता है
- HI/Prabhupada 0240 - कोई अधिक बेहतर पूजा नहीं है गोपियों की तुलना में
- HI/Prabhupada 0241 - इन्द्रियॉ सर्पों की तरह हैं
- HI/Prabhupada 0242 - सभ्यता की मूल प्रक्रिया को हमारा वापस जाना बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0243 - एक शिष्य गुरु के पास ज्ञान के लिए आता है
- HI/Prabhupada 0244 - हमारा तत्वज्ञान है कि सब कुछ भगवान के अंतर्गत आता है
- HI/Prabhupada 0245 - हर कोई अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा है
- HI/Prabhupada 0246 - कृष्ण का भक्त जो बन जाता है , सभी अच्छे गुण उनके शरीर में प्रकट होते हैं
- HI/Prabhupada 0247 - असली धर्म का मतलब है भगवान से प्यार करना
- HI/Prabhupada 0248 - कृष्ण की १६१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए
- HI/Prabhupada 0249 - सवाल उठाया गया था कि , क्यों युद्ध होता है
- HI/Prabhupada 0250 - श्री कृष्ण के लिए कार्य करो, भगवान के लिए काम करो, अपने निजी हित के लिए नहीं
- HI/Prabhupada 0251 - गोपियॉ कृष्ण की शाश्वत संगी हैं
- HI/Prabhupada 0252 - हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं
- HI/Prabhupada 0253 - असली खुशी भगवद गीता में वर्णित है
- HI/Prabhupada 0254 - वैदिक ज्ञान गुरु समझाता है
- HI/Prabhupada 0255 - भगवान की सरकार में इतने सारे निर्देशक होने चाहिए, वे देवता कहे जाते हैं
- HI/Prabhupada 0256 - इस कलियुग में कृष्ण उनके नाम के रूप में आए हैं, हरे कृष्ण
- HI/Prabhupada 0257 - तुम कैसे भगवान के कानूनों का उल्लंघन कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0258 - संवैधानिक रूप से हम सब नौकर हैं
- HI/Prabhupada 0259 - कृष्ण को प्यार करने के उत्कृष्ट मंच पर पुन: स्थापित होना
- HI/Prabhupada 0260 - इंद्रियों के अादेश द्वारा हम पापी गतिविधियों में भाग लेते चले जा रहे हैं हर जीवन में
- HI/Prabhupada 0261 - भगवान और भक्त, वे एक ही स्थिति पर हैं
- HI/Prabhupada 0262 - हमें हमेशा सोचना चाहिए कि हमारी सेवा पूर्ण नहीं है
- HI/Prabhupada 0263 - अगर तुमने इस सूत्र को बहुत अच्छी तरह से अपने हाथ में लिया है, तो तुम प्रचार करते रहोगे
- HI/Prabhupada 0264 - माया भी कृष्ण की सेवा कर रही है, लेकिन कोई धन्यवाद नहीं है
- HI/Prabhupada 0265 - भक्ति का मतलब है ऋषिकेश, इंद्रियों के मालिक, की सेवा करना
- HI/Prabhupada 0266 - कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी हैं
- HI/Prabhupada 0267 - श्री कृष्ण क्या हैं व्यासदेव नें वर्णित किया है
- HI/Prabhupada 0268 - कृष्ण का शुद्ध भक्त बने बिना कोई भी कृष्ण को नहीं समझ सकता है
- HI/Prabhupada 0269 - बदमाश अर्थघटन द्वारा भगवद् गीता नहीं समझ सकते हो
- HI/Prabhupada 0270 - तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी प्राकृतिक प्रवृत्तियॉ है
- HI/Prabhupada 0271 - कृष्ण का नाम अच्युत है
- HI/Prabhupada 0272 - भक्ति दिव्य है
- HI/Prabhupada 0273 - आर्य का मतलब है जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत है
- HI/Prabhupada 0274 - वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं
- HI/Prabhupada 0275 - धर्म का मतलब है कर्तव्य
- HI/Prabhupada 0276 - गुरु का कार्य है कृष्ण देना, न कि भौतिक सामग्री देना
- HI/Prabhupada 0277 - तो कृष्ण भावनामृत का मतलब है हर प्रकार का ज्ञान होना
- HI/Prabhupada 0278 - शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे
- HI/Prabhupada 0279 - वास्तव में हम पैसे की सेवा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0280 - भक्ति सेवा का मतलब है इंद्रियों को शुद्ध करना
- HI/Prabhupada 0281 - मनुष्य पशु है, लेकिन तर्कसंगत जानवर
- HI/Prabhupada 0282 - हमें आचार्यों के नक्शेकदम पर चलना होगा
- HI/Prabhupada 0283 - हमारा कार्यक्रम है प्यार करना
- HI/Prabhupada 0284 - मेरा स्वभाव अधीनस्थ होना है
- HI/Prabhupada 0285 - एक मात्र प्रेम के वस्तु कृष्ण हैं और उनकी भूमि वृन्दावन है
- HI/Prabhupada 0286 - आपके और श्रीकृष्ण के बीच के शुद्ध प्रेम का विकृत प्रतिबिंब
- HI/Prabhupada 0287 - अपनी स्मृति को पुनर्जीवित करो, कृष्ण के लिए तुम्हारा प्यार
- HI/Prabhupada 0288 - जब अाप भगवान की बात करते हैं, तो क्या अाप जानते हैं कि भगवान की परिभाषा क्या है?
- HI/Prabhupada 0289 - जो भी परमेश्वर के राज्य से आता है वे एक ही हैं
- HI/Prabhupada 0290 - जब तुम्हारी वासना पूरी नहीं होती, तो तुम गुस्सा करते हो
- HI/Prabhupada 0291 - मैं अधीनस्थ होना नहीं चाहता, झुकना नहीं चाहता हूँ, यह तुम्हारा रोग है
- HI/Prabhupada 0292 - ज्ञान से परम भगवान का पता लगाना
- HI/Prabhupada 0293 - रस बारह प्रकार के होते हैं, भाव
- HI/Prabhupada 0294 - कृष्ण को आत्मसमर्पण करने के छह अंक हैं
- HI/Prabhupada 0295 - एक जीव अन्य सभी जीव की सभी मांगों की आपूर्ति कर रहा है
- HI/Prabhupada 0296 - हालांकि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया था, उन्होंने अपनी राय कभी नहीं बदली
- HI/Prabhupada 0297 - जो निरपेक्ष सत्य को समझने के लिए जिज्ञासु है उसे एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है
- HI/Prabhupada 0298 - अगर तुम कृष्ण की सेवा करने के लिए उत्सुक हो, यही असली संपत्ति है
- HI/Prabhupada 0299 - एक सन्यासी अपनी पत्नी से नहीं मिल सकता है
- HI/Prabhupada 0300 - मूल व्यक्ति मरा नहीं है
- HI/Prabhupada 0301 - सबसे बुद्धिमान व्यक्ति, वे नाच रहे हैं
- HI/Prabhupada 0302 - लोग आत्मसमर्पण करने के लिए इच्छुक नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0303 - दिव्य । तुम इससे परे हो
- HI/Prabhupada 0304 - माया सर्वोच्च को आच्छादित नहीं कर सकती
- HI/Prabhupada 0305 - हम कहते हैं कि भगवान मर चुके हैं । इसलिए हमें इस भ्रम से हमारी आँखों को बाहर निकालना होगा
- HI/Prabhupada 0306 - हमें हमारे संदिग्ध सवाल पेश करने चाहिए
- HI/Prabhupada 0307 -न केवल अपने मन को कृष्ण के बारे में सोचने पर स्थिर करना है, लेकिन कृष्ण के लिए काम भी करना है
- HI/Prabhupada 0308 - आत्मा का काम है कृष्ण भावनामृत
- HI/Prabhupada 0309 - आध्यात्मिक गुरु शाश्वत है
- HI/Prabhupada 0310 - यीशु वह भगवान के प्रतिनिधि हैं और हरि नाम भगवान है
- HI/Prabhupada 0311 - हम यह कह रहे हैं ध्यान असफल हो जायेगा, इस बात को आप मान लो
- HI/Prabhupada 0312 - मनुष्य तर्कसंगत जानवर है
- HI/Prabhupada 0313 - सभी श्रेय कृष्ण को जाता है
- HI/Prabhupada 0314 - शरीर के लिए ज्यादा ध्यान नहीं देना, लेकिन आत्मा के लिए पूरा ध्यान देना
- HI/Prabhupada 0315 - हम बहुत जिद्दी हैं, हम बार बार कृष्ण को भूलने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0316 - नकल करने की कोशिश मत करो, यह बहुत खतरनाक है
- HI/Prabhupada 0317 - हम कृष्ण को आत्मसमर्पण नहीं कर रहे हैं, यही रोग है
- HI/Prabhupada 0318 - सूर्यप्रकाश में आओ
- HI/Prabhupada 0319 भगवानको स्वीकार करो, भगवानके सेवकके रूपमें अपनी स्थितिको स्वीकार करो और भगवानकी सेवा करो
- HI/Prabhupada 0320 - हम कोशिश कर रहे हैं कि लोग भाग्यवान बनें
- HI/Prabhupada 0321 - हमेशा मूल बिजलीघर से जुड़े रहना पडेगा
- HI/Prabhupada 0322 - यह शरीर उसके कर्म के अनुसार भगवान द्वारा प्रदान किया जाता है
- HI/Prabhupada 0323 - हंसों के एक समाज का निर्माण कर रहे हैं, कौवों का नहीं
- HI/Prabhupada 0324 - इतिहास का मतलब है प्रथम श्रेणी के आदमी की गतिविधियों को समझना
- HI/Prabhupada 0325 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन के प्रसार के लिए प्रयास करो और यह तुम्हारी साधना है
- HI/Prabhupada 0326 - भगवान सर्वोच्च मालिक हैं, भगवान परम मित्र है
- HI/Prabhupada 0327 - जीव, इस शरीर, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर, के भीतर है
- HI/Prabhupada 0328 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन सब को शामिल करने वाला है
- HI/Prabhupada 0329 - एक गाय को मारो या एक सब्जी को मारो, पापी प्रतिक्रिया तो होगी
- HI/Prabhupada 0330 - हर किसी को व्यक्तिगत रूप से खुद का ख्याल रखना होगा
- HI/Prabhupada 0331 - असली खुशी वापस भगवद धाम जाने में है
- HI/Prabhupada 0332 - पूरी दुनिया में बहुत ही शांतिपूर्ण स्थिति हो सकती है
- HI/Prabhupada 0333 - हर किसी को शिक्षित कर रहे है दिव्य बनने के लिए
- HI/Prabhupada 0334 - जीवन की असली जरूरत आत्मा को सुख प्रदान करना है
- HI/Prabhupada 0335 - प्रथम श्रेणी के योगी बननें के लिए शिक्षित
- HI/Prabhupada 0336 - यह कैसे है कि वे भगवान के पीछे पागल हो रहे हैं
- HI/Prabhupada 0337 - इस तथाकथित खुशी और संकट के बारे में परेशान होकर अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0338 - इस लोकतंत्र का मूल्य क्या है, सभी मूर्ख और दुष्ट
- HI/Prabhupada 0339 - भगवान प्रबल हैं, हम उनके अधीन हैं
- HI/Prabhupada 0340 - तुम मौत के लिए नहीं बने हो, लेकिन प्रकृति तुम्हे मजबूर कर रही है
- HI/Prabhupada 0341 - जो बुद्धिमान है , वह इस प्रक्रिया को लेगा
- HI/Prabhupada 0342 - हम सभी व्यक्तिगत व्यक्ति हैं, और कृष्ण भी व्यक्तिगत व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0343 - हम मूढों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0344 - श्रीमद भागवतम, केवल भक्ति से संबन्धित है
- HI/Prabhupada 0345 - कृष्ण हर किसी के ह्रदय में बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0346 - प्रचार के बिना, तत्वज्ञान की समझ के बिना, तुम अपनी शक्ति को नहीं रख सकते हो
- HI/Prabhupada 0347 - पहले तुम जन्म लो जहॉ कृष्ण अब मौजूद हैं
- HI/Prabhupada 0348 - अगर पचास साल हम केवल हरे कृष्ण मंत्र का जाप करते हैं, वह पूर्ण होगा यकीनन
- HI/Prabhupada 0349 - मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा
- HI/Prabhupada 0350 - हम कोशिश कर रहे हैं लोगों को योग्य बनाने के लिए ताकि वे कृष्ण को देख सकें
- HI/Prabhupada 0351 - तुम कुछ लिखो, उद्देश्य होना चाहिए परम की महिमा बस
- HI/Prabhupada 0352 - यह साहित्य पूरी दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा
- HI/Prabhupada 0353 कृष्णके बारेमें लिखो, पढो, बात,चिन्तन करो,पूजा करो, भोजन बनाओ, ग्रहण करो,ये कृष्ण कीर्तन है
- HI/Prabhupada 0354 - एक अंधा आदमी अन्य अन्धे अादमियों को मार्ग दिखा रहा है
- HI/Prabhupada 0355 - मैं कुछ क्रांतिकारी बोल रहा हूँ
- HI/Prabhupada 0356 - हम सनकी तरीके से काम नहीं कर रहे हैं। हम शास्त्र से आधिकारिक संस्करण ले रहे हैं
- HI/Prabhupada 0357 -मैं एक क्रांति शुरू करना चाहता हूँ नास्तिक सभ्यता के खिलाफ
- HI/Prabhupada 0358 - इस जीवन में ही हम एक समाधान निकालेंगे । और नहीं । अब अौर अाना नहीं होगा
- HI/Prabhupada 0359 - हमें परम्परा प्रणाली से इस विज्ञान को जानना चाहिए
- HI/Prabhupada 0360 - हम सीधे कृष्ण के निकट नहीं जाते हैं । हमें कृष्ण के दास से अपनी सेवा शुरू करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0361 - वे मेरे गुरु हैं । मैं उनका गुरु नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0362 - जैसे हमारे बारह जीबीसी हैं, इसी प्रकार श्री कृष्ण के जीबीसी हैं
- HI/Prabhupada 0363 - कोई तुम्हारा दोस्त होगा, और कोई तुम्हारा दुश्मन होगा
- HI/Prabhupada 0364 - भगवद धाम जाना, यह इतना आसान नहीं है
- HI/Prabhupada 0365 - इसे (इस्कॉन) एक मल समाज मत बनाओ । इसे एक शहद समाज बनाओ
- HI/Prabhupada 0366 - आप सभी लोग, गुरू बनें लेकिन बकवास बात न करें
- HI/Prabhupada 0367 - वृन्दावन का मतलब है कि कृष्ण केंद्र हैं
- HI/Prabhupada 0368 - तो तुम मूर्खतापूर्वक सोच रहे हो कि तुम अनन्त नहीं हो
- HI/Prabhupada 0369 - ये मेरे शिष्य मेरा अभिन्न अंग हैं
- HI/Prabhupada 0370 - जहॉ तक मेरा संबंध है, मैं कोई भी श्रेय नहीं लेता
- HI/Prabhupada 0371 - अामार जीवन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0372 - अनादि कर्म फले का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0373 - भजहू रे मन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0374 - भजहू रे मन का तात्पर्य, भाग 1
- HI/Prabhupada 0375 - भजहू रे मन का तात्पर्य, भाग 2
- HI/Prabhupada 0376 - भजहू रे मन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0377 - भजहू रे मन का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0378 - भुलिया तोमारे का तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0379 - दशावतार स्तोत्र भाग १
- HI/Prabhupada 0380 - दशावतार स्तोत्र भाग २
- HI/Prabhupada 0381 - दशावतार स्तोत्र भाग १
- HI/Prabhupada 0382 - दशावतार स्तोत्र भाग २
- HI/Prabhupada 0383 - गौर पाहु तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0384 - गौरंगा बोलिते होबे तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0385 - गौरंगा बोलिते होबे तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0386 - गौरंगेर दूति पदा तात्पर्य भाग १
- HI/Prabhupada 0387 - गौरंगेर दूति पदा तात्पर्य भाग २
- HI/Prabhupada 0388 - हरे कृष्ण तात्पर्य रिकॉड ऐल्बम से
- HI/Prabhupada 0389 - हरि हरि बिफले तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0390 - जय राधा माधव तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0391 - मानस देहो गेहो तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0392 - नारद मुनि बजाय वीना तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0393 - निताई गुना मणि अामार तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0394 - निताई-पद -कमल तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0395 - परम कोरुणा तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0396 - राजा कुलशेखर की प्रार्थना
- HI/Prabhupada 0397 - राधा कृष्ण बोल तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0398 - श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0399 - श्री नाम, गाये गौर मधुर स्वरे तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0400 - श्री श्री शिक्षाष्टकम तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0401 - श्री श्री शिक्षाष्टकम तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0402 - विभावरी शेष तात्पर्य भाग १
- HI/Prabhupada 0403 - विभावरी शेष तात्पर्य भाग २
- HI/Prabhupada 0404 - कृष्ण भावनामृत की इस तलवार को लो, बस विश्वास के साथ तुम सुनने की कोशिश करो
- HI/Prabhupada 0405 - राक्षस समझ नहीं सकते हैं कि भगवान एक व्यक्ति हैं । यह आसुरी है
- HI/Prabhupada 0406 - जो कोई भी कृष्ण का विज्ञान जानता है, वह आध्यात्मिक गुरु हो सकता है
- HI/Prabhupada 0407 - हरिदास का जीवन इतिहास यह है कि वह एक मुसलमान परिवार में पैदा हुए
- HI/Prabhupada 0408 -उग्र कर्म का मतलब है क्रूर गतिविधियॉ
- HI/Prabhupada 0409 - भगवद गीता में अर्थघटन का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0410 - हमारे दोस्त हैं, वे पहले से ही अनुवाद करने में लगे हैं
- HI/Prabhupada 0411 - उन्होंने एक भव्य ट्रक का निर्माण किया है: "गट,गट,गट,गट,गट"
- HI/Prabhupada 0412 - कृष्ण चाहते हैं कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रसार होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0413 - तो जप करके, हम पूर्णता के सर्वोच्च स्तर पर आ सकते हैं
- HI/Prabhupada 0414 - पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, कृष्ण के समीप जाना
- HI/Prabhupada 0415 - छह महीने के भीतर तुम भगवान बन जाओगे, मूर्ख निष्कर्ष
- HI/Prabhupada 0416 - बस, जप नृत्य, और अच्छी मिठाई खाना, कचौरि
- HI/Prabhupada 0417 - इस जीवन और अगले जीवन में खुश रहो
- HI/Prabhupada 0418 - दीक्षा का मतलब है गतिविधियों की शुरुआत
- HI/Prabhupada 0419 - दीक्षा का मतलब है कृष्ण चेतना का तीसरे चरण
- HI/Prabhupada 0420 - मत सोचो कि तुम इस दुनिया की दासी हो
- HI/Prabhupada 0421 - महा मंत्र जप करते हुए जिन दस अपराधों से बचना चाहिए १ से ५
- HI/Prabhupada 0422 - महा मंत्र जप करते हुए जिन दस अपराधों से बचना चाहिए ६ से १०
- HI/Prabhupada 0423 - मैं तुम्हारे लिए बहुत कठिन परिश्रम कर रहा हूँ, लेकिन तुम इसका लाभ नहीं लेते हो
- HI/Prabhupada 0424 - इस वैदिक संस्कृति का पूरा फायदा उठाना
- HI/Prabhupada 0425 - उन्होने कुछ परिवर्तन किया होगा
- HI/Prabhupada 0426 - जो विद्वान व्यक्ति है, वह न तो जीवित के लिए न ही मरे हुए व्यक्ति के लिए विलाप करता है
- HI/Prabhupada 0427 - आत्मा, स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर से अलग हैं
- HI/Prabhupada 0428 - इंसान का विशेषाधिकार है यह समझना कि मैं क्या हूँ
- HI/Prabhupada 0429 - कृष्ण भगवान का नाम है । कृष्ण का मतलब है पूर्ण आकर्षक
- HI/Prabhupada 0430 - चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि भगवान का हर नाम भगवान की तरह ही शक्तिशाली है
- HI/Prabhupada 0431 - भगवान वास्तव में सभी जीव के सही दोस्त हैं
- HI/Prabhupada 0432 - जब तक तुम पढ़ रहे हो, सूरज तुम्हारा जीवन लेने में असमर्थ है
- HI/Prabhupada 0433 - हम कहते हैं कि, 'तुम अवैध यौन संबंध न रखो'
- HI/Prabhupada 0434 - धोखेबाज को नहीं सुनो और दूसरों को धोखा देने की कोशिश मत करो
- HI/Prabhupada 0435 - हम इन सभी सांसारिक समस्याओं से हैरान हैं, जो सभी झूठी हैं
- HI/Prabhupada 0436 - सभी हालतों में हंसमुख हो जाएगा, और वह केवल कृष्ण भावनामृत में दिलचस्पी रखेगा
- HI/Prabhupada 0437 - शंख बहुत शुद्ध और दिव्य माना जाता है
- HI/Prabhupada 0438 - गोबर और उसे जला कर राख करके, दंत मंजन के रूप में प्रयोग किया जाता है
- HI/Prabhupada 0439 - मेरे आध्यात्मिक गुरु ने मुझे एक महान मूर्ख पाया
- HI/Prabhupada 0440 - मायावादी सिद्धांत है कि परम आत्मा अवैयक्तिक है
- HI/Prabhupada 0441 - कृष्ण सर्वोच्च हैं, और हम आंशिक हिस्से हैं
- HI/Prabhupada 0442 ईसाई धर्ममें, वे चर्च में जाते है और भगवान से प्रार्थना करते है, 'हमें हमारी रोज़ीरोटी दो'
- HI/Prabhupada 0443 - उनका घर, सब कुछ है । तो अवैयक्तिकता का कोई सवाल नहीं है
- HI/Prabhupada 0444 - गोपी, वे बद्ध आत्मा नहीं हैं । वे मुक्त आत्मा हैं
- HI/Prabhupada 0445 - यह एक फैशन बन गया है, हर किसी को नारायणा के बराबर करना
- HI/Prabhupada 0446 - तो ऐसा करने की, नारायण से लक्ष्मी को अलग करने की, कोशिश मत करो
- HI/Prabhupada 0447 - सावधान रहो इन अभक्तों से संग न करके जो भगवान के बारे में कल्पना करते हैं
- HI/Prabhupada 0448 - हमें गुरु से, साधु से और शास्त्र से भगवान की शिक्षा लेना चाहिए
- HI/Prabhupada 0449 - भक्ति करके तुम परम भगवान को नियंत्रित कर सकते हो । यही एकमात्र रास्ता है
- HI/Prabhupada 0450 - भक्ति सेवा को क्रियान्वित करने में किसी भी भौतिक इच्छा को मत लाओ
- HI/Prabhupada 0451 हमें भक्त क्या है यह पता नहीं है, उसकी पूजा कैसे करनी चाहिए, तो हम कनिष्ठ अधिकारी रहते है
- HI/Prabhupada 0452 - कृष्ण ब्रह्मा के एक दिन में एक बार इस धरती पर आते हैं
- HI/Prabhupada 0453 - विश्वास करो! कृष्ण के अलावा कोई और अधिक बेहतर अधिकारी नहीं है
- HI/Prabhupada 0454 - तो बहुत ही जोखिम भरा जीवन है ये अगर हम हमारे दिव्य ज्ञान को जागृत नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0455 - तुम अपने बेकार के तर्क को लागु मेत करो उन मामलों में जो तुम्हारी समझ से बाहर है
- HI/Prabhupada 0456 - जीव, जो शरीर को चला रहा है, वह उच्च शक्ति है
- HI/Prabhupada 0457 - केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है
- HI/Prabhupada 0458 - हरे कृष्ण का जप, कृष्ण को अपनी जिहवा से छूना
- HI/Prabhupada 0459 - प्रहलाद महाराज महाजनों में से एक हैं, अधिकृत व्यक्ति
- HI/Prabhupada 0460 - प्रहलाद महाराज साधारण भक्त नहीं हैं , वह नित्य-सिद्ध हैं
- HI/Prabhupada 0461 - मैं गुरु के बिना रह सकता हूँ । यह बकवास है
- HI/Prabhupada 0462 - वैष्णव अपराध एक महान अपराध है
- HI/Prabhupada 0463 - अगर तुम कृष्ण के बारे में सोचने पर अपने मन को प्रशिक्षित करते हो, तो तुम सुरक्षित हो
- HI/Prabhupada 0464 - शास्त्र मवाली वर्ग के लिए नहीं है
- HI/Prabhupada 0465 - वैष्णव शक्तिशाली है, लेकिन फिर भी वह बहुत नम्र और विनम्र है
- HI/Prabhupada 0466 - काला सांप आदमी सांप से कम हानिकारक है
- HI/Prabhupada 0467 - क्योंकि मैंने कृष्ण के कमल चरणों की शरण ली है, मैं सुरक्षित हूँ
- HI/Prabhupada 0468 - बस पूछताछ करो और तैयार रहो कि कैसे श्री कृष्ण की सेवा करनी है
- HI/Prabhupada 0469 - पराजित या विजयी, कृष्ण पर निर्भर रहो
- HI/Prabhupada 0470 - मुक्ति भी एक और धोखाधड़ी है
- HI/Prabhupada 0471 - कृष्ण को प्रसन्न करने का आसान तरीका, बस तुम्हारे दिल की आवश्यकता है
- HI/Prabhupada 0472 - इस अंधेरे में मत रहो । बस प्रकाश के राज्य में अपने आप को स्थानांतरण करो
- HI/Prabhupada 0473 - डार्विन नें इस उत्क्रांति के विचार को लिया है पद्म पुराण से
- HI/Prabhupada 0474 - आर्यन का मतलब है जो उन्नत हैं
- HI/Prabhupada 0475 - हम कांप जाते हैं जैसे ही हम सुनते हैं कि हमें परमेश्वर का दास बनना है
- HI/Prabhupada 0476 - तो निर्भरता बुरा नहीं है अगर उचित जगह पर निर्भरता हो तो
- HI/Prabhupada 0477 - हमने धार्मिक संप्रदाय या तत्वज्ञान की विधि का एक नया प्रकार निर्मित नहीं किया है
- HI/Prabhupada 0478 - यहाँ तुम्हारे हृदय के भीतर एक टीवी बॉक्स है
- HI/Prabhupada 0479 - जब तुम अपने वास्तविक स्थिति को समझते हो, फिर तुम्हारी गतिविधियॉ वास्तव में शुरू होती हैं
- HI/Prabhupada 0480 - तो भगवान अवैयक्तिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हम सभी व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0481 - कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं , कृष्ण सुंदर हैं
- HI/Prabhupada 0482 - मन अासक्त होने का वाहन है
- HI/Prabhupada 0483 - कैसे तुम कृष्ण के बारे में सोच सकते हो जब तक तुम कृष्ण के लिए प्रेम का विकास नहीं करते
- HI/Prabhupada 0484 - भाव की परिपक्व हालत प्रेम है
- HI/Prabhupada 0485 - तो कृष्ण द्वारा बनाई गई कोई भी लीला, भक्तों द्वारा समारोहपूर्ण रूप में मनाई जाती है
- HI/Prabhupada 0486 - यहाँ भौतिक दुनिया में शक्ति, यौन जीवन है, और आध्यात्मिक दुनिया में शक्ति प्रेम है
- HI/Prabhupada 0487 - कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह बाइबिल है या कुरान या भगवद गीता । हमें देखना है कि फल क्या है
- HI/Prabhupada 0488 - लड़ाई कहां है, अगर तुम भगवान से प्यार करते हो, तो तुम हर किसी से प्यार करोगे । यही निशानी है
- HI/Prabhupada 0489 - तो सड़क पर जप करके, तुम मिठाइयों का वितरण कर रहे हो
- HI/Prabhupada 0490 - कई महीनों के लिए माँ के गर्भ में एक वायु रोधक हालत में
- HI/Prabhupada 0491 - मेरी मर्जी के खिलाफ कई पीडाऍ हैं, कई पीडाऍ
- HI/Prabhupada 0492 - बुद्ध तत्वज्ञान है कि तुम इस शरीर को उद्ध्वस्त करो, निर्वाण
- HI/Prabhupada 0493 - जब यह स्थूल शरीर आराम कर रहा है, सूक्ष्म शरीर काम कर रहा है
- HI/Prabhupada 0494 - नेपोलियन नें मजबूत निर्मित मेहराब का निर्माण किया, लेकिन वह कहाँ गया, कोई नहीं जानता
- HI/Prabhupada 0495 - मुझे अपनी आँखें बंद करने दो । मैं खतरे से बाहर हूँ
- HI/Prabhupada 0496 - श्रुति का मतलब है परम से सुनना
- HI/Prabhupada 0497 - हर कोई न मरने की कोशिश कर रहा है
- HI/Prabhupada 0498 - जैसे ही मैं इस शरीर को त्याग देता हूँ, मेरे सारे गगनचुंबी इमारत, व्यापार, कारखाने खतम
- HI/Prabhupada 0499 - वैष्णव बहुत दयालु है, दयालु, क्योंकि वह दूसरों के लिए महसूस करता है
- HI/Prabhupada 0500 - तुम भौतिक दुनिया में स्थायी रूप से खुश नहीं हो सकते हो
- HI/Prabhupada 0501 - हम चिंता से मुक्त नहीं हो सकते हैं जब तक हम कृष्ण भावनामृत को नहीं अपनाते हैं
- HI/Prabhupada 0502 - बकवास धारणाओं का त्याग करो, कृष्ण भावनामृत की उदारता को लो
- HI/Prabhupada 0503 - गुरु स्वीकारना मतलब निरपेक्ष सत्य के बारे में उनसे पूछताछ करना
- HI/Prabhupada 0504 - हमें श्रीमद भागवतम का सभी दृष्टिकोणों से अध्ययन करना होगा
- HI/Prabhupada 0505 - तुम इस शरीर को नहीं बचा सकते । यह संभव नहीं है
- HI/Prabhupada 0506 - तुम्हारी आँखें शास्त्र होनी चाहिए । यह जड़ आँखें नहीं
- HI/Prabhupada 0507 - अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0508 - जो पशु हत्यारे हैं, उनका मस्तिष्क पत्थर के रूप में सुस्त है
- HI/Prabhupada 0509 - ये लोग कहते हैं कि जानवरों की कोई आत्मा नहीं है
- HI/Prabhupada 0510 - आधुनिक सभ्यता, उन्हे आत्मा का ज्ञान नहीं है
- HI/Prabhupada 0511 - वास्तविक भुखमरी आत्मा की है । आत्मा को आध्यात्मिक भोजन नहीं मिल रहा है
- HI/Prabhupada 0512 - जो भौतिक प्रकृति के समक्ष आत्मसमर्पण करता है, उसे भुगतना पड़ता है
- HI/Prabhupada 0513 - कई अन्य शरीर हैं, ८४,००,००० अलग प्रकार के शरीर
- HI/Prabhupada 0514 - इधर, खुशी का मतलब है दर्द का थोड़ा अभाव
- HI/Prabhupada 0515 - तुम खुश नहीं हो सकते हो, श्रीमान, जब तक तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है
- HI/Prabhupada 0516 - तुम स्वतंत्रता का जीवन प्राप्त कर सकते हो, यह कहानी या उपन्यास नहीं है
- HI/Prabhupada 0517 - सिर्फ धनी परिवार में पैदा होने से, तुम्हे बीमारियों से प्रतिरक्षा नहीं मिलेगी
- HI/Prabhupada 0518 - बद्ध जीवन के चार कार्य का मतलब है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, और रोग
- HI/Prabhupada 0519 - कृष्ण भावनामृत व्यक्ति, वे किसी छायाचित्र के पीछै नहीं पडे हैं
- HI/Prabhupada 0520 - हम जप कर रहे हैं, हम सुन रहे हैं, हम नाच रहे हैं, हम आनंद ले रहे हैं । क्यों
- HI/Prabhupada 0521 - मेरी नीति रूप गोस्वामी के पद् चिन्हों को अनुसरण करना है
- HI/Prabhupada 0522 - अगर तुम ईमानदारी से इस मंत्र का जाप करते हो, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा
- HI/Prabhupada 0523 - अवतार का मतलब है जो उच्चतर ग्रह से आता है, उच्च ग्रह
- HI/Prabhupada 0524 - अर्जुन कृष्ण के शाश्वत दोस्त हैं । वे भ्रम में नहीं जा सकते
- HI/Prabhupada 0525 - माया इतनी मजबूत है, जैसे ही तुम थोडा सा आश्वस्त होते हो, तुरंत हमला होता है
- HI/Prabhupada 0526 - अगर हम बहुत दृढ़ता से कृष्ण को पकड़ते हैं, माया कुछ नहीं कर सकती है
- HI/Prabhupada 0527 - कृष्ण को अर्पण करने से हमारी हार नहीं होती है । हम केवल फायदे में रहते हैं
- HI/Prabhupada 0528 - राधारानी कृष्ण की आनन्द शक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0529 - राधा और कृष्ण के प्रेम के मामले, साधारण नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0530 - हम इस संकट से बाहर अा सकते हैं जब हम विष्णु का अाश्रय लेते हैं
- HI/Prabhupada 0531 - हम वैदिक साहित्य से समझते हैं, कृष्ण की शक्तियों की कई किस्में हैं
- HI/Prabhupada 0532 - कृष्ण के आनंद लेने में कुछ भौतिक नहीं है
- HI/Prabhupada 0533 - राधारानी हैं हरि प्रिया, कृष्ण की बहुत प्रिय हैं
- HI/Prabhupada 0534 - कृत्रिम रूप से कृष्ण को देखने की कोशिश मत करो
- HI/Prabhupada 0535 - हम जीव, हम कभी नहीं मरते हैं, कभी जन्म नहीं लेते हैं
- HI/Prabhupada 0536 - वेदों का अध्ययन करने का क्या फायदा है अगर तुम कृष्ण को समझ नहीं सके
- HI/Prabhupada 0537 - कृष्ण सबसे गरीब आदमी के लिए भी पूजा के लिए उपलब्ध हैं
- HI/Prabhupada 0538 - कानून का मतलब है राज्य द्वारा दिए गए वचन । तुम घर पर कानून नहीं बना सकते
- HI/Prabhupada 0539 - इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को समझने की कोशिश करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 0540 - एक व्यक्ति की पूजा करना सबसे ऊँचे व्यक्तित्व के रूप में, क्रांतिकारी माना जाता है
- HI/Prabhupada 0541 - अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा
- HI/Prabhupada 0542 - गुरु की योग्यता क्या है, कैसे हर कोई गुरु बन सकता है
- HI/Prabhupada 0543 - यह नहीं है कि आपको गुरु बनने का एक विशाल प्रदर्शन करना है
- HI/Prabhupada 0544 - हम विशेष रूप से भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के मिशन पर जोर देते हैं
- HI/Prabhupada 0545 - असली कल्याण कार्य है आत्मा के हित को देखना
- HI/Prabhupada 0546 - जितना संभव हो उतनी किताबें प्रकाशित करो और दुनिया भर में वितरित करने के लिए प्रयास करें
- HI/Prabhupada 0547 - मैंने यह सोचा था कि "मैं सबसे पहले बहुत अमीर आदमी बनूँगा, फिर मैं प्रचार करूँगा
- HI/Prabhupada 0548 - अगर तुम हरि के लिए सब कुछ त्यागने के स्तर पर अाते हो
- HI/Prabhupada 0549 - योग प्रणाली का मतलब कि तुम्हे इन्द्रियों को नियंत्रित करना है
- HI/Prabhupada 0550 - इस भ्रम के पीछे मत भागो
- HI/Prabhupada 0551 - हमारे छात्र इतने सारे कामों में व्यस्त हैं
- HI/Prabhupada 0552 - जन्म और मृत्यु की इस पुनरावृत्ति को कैसे रोकें, मैं जहर पी रहा हूँ
- HI/Prabhupada 0553 - तुम्हे हिमालय जाने की आवश्यकता नहीं है । तुम बस, लॉस एंजिल्स शहर में रहो
- HI/Prabhupada 0554 - इस मायिका दुनिया के प्रशांत महासागर के बीच में हैं
- HI/Prabhupada 0555 - आध्यात्मिक समझ के मामले में सोना
- HI/Prabhupada 0556 - आत्म साक्षात्कार की पहली समझ है, कि आत्मा शाश्वत है
- HI/Prabhupada 0557 - हमें बहुत दृढ़ता से हरिदास ठाकुर की तरह कृष्ण भावनामृत में डटे रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0558 - हमारी स्थिति तटस्थ है । किसी भी समय, हम नीचे गिर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0559 - वे मूर्खतावश सोचते हैं कि बस "मैं हर चीज़ का राजा हूँ "
- HI/Prabhupada 0560 - जब तक कोई नैतिक चारित्र्य को स्वीकार नहीं करता है, हम दीक्षा नहीं देते हैं
- HI/Prabhupada 0561 - देवता का मतलब है लगभग भगवान । उनमें सब धर्मी गुण मिलेंगे
- HI/Prabhupada 0562 - मेरा प्रमाण वैदिक साहित्य हैं
- HI/Prabhupada 0563 - कुत्ते को एक बुरा नाम दो और उसे लटकाअो
- HI/Prabhupada 0564 - मैं कहता हूँ "भगवान के अादेश का पालन करें ।" यही मेरा मिशन है
- HI/Prabhupada 0565 - उन्हें मैं प्रशिक्षण दे रहा हूँ कि कैसे इंद्रियों को नियंत्रित करना है
- HI/Prabhupada 0566 - अगर अमेरिकी लोगों के नेता, वे आते हैं और वे समझने की कोशिश करते हैं
- HI/Prabhupada 0567 - मैं दुनिया को यह संस्कृति देना चाहता हूँ
- HI/Prabhupada 0568 - हम सिर्फ अापके दान पर निर्भर कर रहे हैं । आप चाहें, तो आप दान कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0569 - "स्वामीजी, मुझे दिक्षा दो ।" मैं तुरंत कहता हूँ "आपको इन चार सिद्धांतों का पालन करना होगा"
- HI/Prabhupada 0570 - पति और पत्नी के बीच गलतफहमी हो तो भी तलाक का सवाल ही नहीं था
- HI/Prabhupada 0571 - हमें परिवार के जीवन में नहीं रहना चाहिए । यही वैदिक संस्कृति है
- HI/Prabhupada 0572 - क्यों आप कहते हैं "ओह, मैं अपनी चर्च में अापको बात करने की अनुमति नहीं दे सकता ।"
- HI/Prabhupada 0573 - मैं किसी भी भगवद भावनाभावित व्यक्ति के साथ बात करने के लिए तैयार हूँ
- HI/Prabhupada 0574 - तुम मंजूरी के बिना किसी को नहीं मार सकते हो
- HI/Prabhupada 0575 - उन्हे अंधेरे में और अज्ञानता में रखा जाता है
- HI/Prabhupada 0576 - प्रक्रिया यह होनी चाहिए कि कैसे इन सभी प्रवृत्तियों को शून्य करें
- HI/Prabhupada 0577 - तथाकथित तत्वज्ञानी, वैज्ञानिक, सभी, इसलिए दुष्ट, मूर्ख । उन्हें अस्वीकार करो
- HI/Prabhupada 0578 - वही बोलो जो कृष्ण कहते हैं
- HI/Prabhupada 0579 - आत्मा उसके शरीर को बदल रही है जैसे हम अपने वस्र को बदलते हैं
- HI/Prabhupada 0580 - हम भगवान की मंजूरी के बिना हमारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0581 - अगर तुम कृष्ण की सेवा में अपने आप को संलग्न करते हो, तुम्हे नया प्रोत्साहन मिलेगा
- HI/Prabhupada 0582 - कृष्ण ह्दय में बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0583 - सब कुछ भगवद गीता में है
- HI/Prabhupada 0584 - हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं
- HI/Prabhupada 0585 - एक वैष्णव दूसरों को दुखी देखकर दुखी होता है
- HI/Prabhupada 0586 - वास्तव में शरीर की यह स्वीकृति का मतलब नहीं है कि मैं मरता हूँ
- HI/Prabhupada 0587 - संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक भूख में है
- HI/Prabhupada 0588 - जो हम चाहते हैं कृष्ण तुम्हें दे देंगे
- HI/Prabhupada 0589 - हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं
- HI/Prabhupada 0590 - इस शुद्धि का मतलब है कि हमें पता होना चाहिए कि, 'मैं यह शरीर नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं'
- HI/Prabhupada 0591 - मेरा काम इस भौतिक चंगुल से बाहर निकलना है
- HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए
- HI/Prabhupada 0593 - जैसे ही तुम कृष्णभावनामृत में आते हो, तुम प्रसन्न हो जाते हो
- HI/Prabhupada 0594 - आत्मा को हमारे भौतिक उपकरणों से मापना असंभव है
- HI/Prabhupada 0595 - अगर आप विविधता चाहते हैं तो आपको एक ग्रह का आश्रय लेना होगा
- HI/Prabhupada 0596 -आत्मा को टुकड़ों में काटा नहीं जा सकता है
- HI/Prabhupada 0597 - हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए
- HI/Prabhupada 0598 - हम नहीं समझ सकते हैं कि वे कितने महान हैं ! यह हमारी मूर्खता है
- HI/Prabhupada 0599 - कृष्ण भावनामृत इतना आसान नहीं है । जब तक आप अपने आप को आत्मसमर्पित न करे
- HI/Prabhupada 0600 - हम आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं । यह हमारा भौतिक रोग है
- HI/Prabhupada 0601 - चैत्य गुरु का मतलब है जो भीतर से विवेक और ज्ञान देता है
- HI/Prabhupada 0602 -पिता परिवार के नेता हैं
- HI/Prabhupada 0603 - यह मृदंग घर घर में जाएगा
- HI/Prabhupada 0604 - अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे
- HI/Prabhupada 0605 - वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं
- HI/Prabhupada 0606 - हम भगवद गीता यथारूप का प्रचार कर रहे हैं । यह अंतर है
- HI/Prabhupada 0607 - हमारे समाज में, तुम सभी गुरुभाई, गुरुबहिन हो
- HI/Prabhupada 0608 - भक्ति सेवा, हमें उत्साह के साथ, धैर्य के साथ निष्पादित करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0609 - तुम कई हो जो हरे कृष्ण का जाप कर रहे हो । यही मेरी सफलता है
- HI/Prabhupada 0610 - जब तक कोई वर्ण और आश्रम की संस्था को अपनाता नहीं है, वह मनुष्य नहीं है
- HI/Prabhupada 0611 - जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा
- HI/Prabhupada 0612 - जो जीभ के साथ हरे कृष्ण का जप रहा है, जिह्वाग्रे, वह शानदार है
- HI/Prabhupada 0613 - हमें विशेष ख्याल रखना होगा छह चीज़ो का
- HI/Prabhupada 0614 - हमें बहुत सावधान रहना चाहिए, पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल
- HI/Prabhupada 0615 - प्रेम और उत्साह के साथ कृष्ण के लिए काम करते हो, यही तुम्हारा कृष्ण भावनाभावित जीवन है
- HI/Prabhupada 0616 - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, यह प्राकृतिक विभाजन है
- HI/Prabhupada 0617 - कोई नया सूत्र नहीं है । वही व्यास पूजा, वही तत्वज्ञान
- HI/Prabhupada 0618 - आध्यात्मिक गुरु बहुत खुशी महसूस करता है, कि "यह लड़का मुझसे अधिक उन्नत है "
- HI/Prabhupada 0619 - उद्देश्य है आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाना । यही गृहस्थ-आश्रम है
- HI/Prabhupada 0620 - उसके गुण और कर्म के अनुसार वह एक विशेष व्यावसायिक कर्तव्य में लगा हुअा है
- HI/Prabhupada 0621 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रहा है प्राधिकारी के प्रति विनम्र बनना
- HI/Prabhupada 0622 - जो कृष्ण भावनामृत में लगे हुए हैं, उनके साथ अपना संग करो
- HI/Prabhupada 0623 - आत्मा, एक शरीर से दूसरे में देहांतरित होता है
- HI/Prabhupada 0624 - भगवान भी शाश्वत हैं, और हम भी शाश्वत हैं
- HI/Prabhupada 0625 - जीवन की आवश्यकताऍ परम शाश्वत, परमेश्वर द्वारा आपूर्ति की जा रही है
- HI/Prabhupada 0626 - अगर तुम तथ्यात्मक बातें जानना चाहते हो, तो तुम्हे आचार्य के पास जाना होगा
- HI/Prabhupada 0627 - ताज़गी के बिना, हम इस उदात्त विषय वस्तु को नहीं समझ सकते हैं
- HI/Prabhupada 0628 - हम ऐसी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, "शायद ।" नहीं । हम जो तथ्य है वह स्वीकार करते हैं
- HI/Prabhupada 0629 - हम अलग अलग वस्त्र में भगवान के विभिन्न पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0630 - शोक का कोई कारण नहीं है, क्योंकी आत्मा रहेगी
- HI/Prabhupada 0631 - मैं शाश्वत हूँ, शरीर शाश्वत नहीं है । यह तथ्य है
- HI/Prabhupada 0632 -जब एहसास होता है कि मैं यह शरीर नहीं हूं , तो तुरंत प्रकृति के तीनों गुणों से परे हो जाता हूँ
- HI/Prabhupada 0633 - हम कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं
- HI/Prabhupada 0634 - कृष्ण माया शक्ति से कभी प्रभावित नहीं होते हैं
- HI/Prabhupada 0635 - आत्मा हर शरीर में है, यहां तक कि चींटी के भीतर भी
- HI/Prabhupada 0636 - जो पंडित हैं, वे भेद नहीं करते हैं कि उनकी आत्मा नहीं है । हर किसी की आत्मा है
- HI/Prabhupada 0637 - कृष्ण की उपस्थिति के बिना कुछ भी मौजूद नहीं हो सकता है
- HI/Prabhupada 0638 - यह प्रथम श्रेणी का योगी है, जो हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन करता है
- HI/Prabhupada 0639 - व्यक्तिगत अात्मा हर शरीर में है और परमात्मा, परमात्मा असली मालिक हैं
- HI/Prabhupada 0640 - तुम्हे खुद को भगवान घोषित करने वाले बदमाश मिल सकते हैं, उसके चेहरे पर लात मारो
- HI/Prabhupada 0641 - एक भक्त की कोई मांग नहीं होती है
- HI/Prabhupada 0642 - यह कृष्ण भावनामृत का अभ्यास है भौतिक शरीर को आध्यात्मिक शरीर में बदलना
- HI/Prabhupada 0643 - जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है
- HI/Prabhupada 0644 - सब कुछ है कृष्ण भावनामृत में
- HI/Prabhupada 0645 - जिसने यह आत्मसाक्षातकार कर लिया है, वह हर जगह वृन्दावन में है
- HI/Prabhupada 0646 - योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो
- HI/Prabhupada 0647 - योग का मतलब है परम के साथ संबंध
- HI/Prabhupada 0648 - स्वभाव से हम जीव हैं, हमें कुछ करना ही होगा
- HI/Prabhupada 0649 -मन चालक है । शरीर रथ या गाडी है
- HI/Prabhupada 0650 - कृष्ण भावनामृत के पूर्ण योग से इस उलझन से बहार निकलो
- HI/Prabhupada 0651 - पूरी योग प्रणाली का मतलब है मन को हमारा दोस्त बनाना
- HI/Prabhupada 0652 - यह पद्म पुराण सत्व गुण में रहने वाले व्यक्तियों के लिए है
- HI/Prabhupada 0653 - अगर मेरे पिता एक रूप नहीं है, तो मुझे यह रूप कहाँ से प्राप्त हुआ
- HI/Prabhupada 0654 - तुम अपने प्रयास से भगवान को नहीं देख सकते हो क्योंकि तुम्हारी इन्द्रियॉ अपूर्ण हैं
- HI/Prabhupada 0655 - धर्म का उद्देश्य है भगवान को समझना । और भगवान से प्रेम करना सीखना
- HI/Prabhupada 0656 - जो लोग भक्त हैं, वे किसी से नफरत नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0657 - मंदिर इस युग के लिए एक मात्र एकांत जगह है
- HI/Prabhupada 0658 - श्रीमद भागवतम सर्वोच्च ज्ञानयोग है और भक्ति योग है, संयुक्त
- HI/Prabhupada 0659 - बस विष्णु के बारे में सुनना और कीर्तन करना
- HI/Prabhupada 0660 - केवल यौन जीवन को नियंत्रित करके तुम एक बहुत शक्तिशाली आदमी बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0661 - कोई भी इन लड़कों की तुलना में बेहतर ध्यानी नहीं है
- HI/Prabhupada 0662 - वे चिंता से भरे हुए हैं क्योंकि उन्होंने अस्थायी को ग्रहण किया है
- HI/Prabhupada 0663 - कृष्ण के साथ अपना खोया संबंध पुनःस्थापित करो । यही योगाभ्यास है
- HI/Prabhupada 0664 - शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता
- HI/Prabhupada 0665 - कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है
- HI/Prabhupada 0666 अगर सूर्य तुम्हारे कमरे में प्रवेश कर सकता है, क्या कृष्ण तुम्हारे में प्रवेश नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 0667 - पूरी अचेतना अायी है इस शरीर के कारण
- HI/Prabhupada 0668 - एक महीने में कम से कम दो अनिवार्य उपवास
- HI/Prabhupada 0669 - मन को केंद्रित करने का मतलब है कृष्ण में अपने मन को दृढ करना
- HI/Prabhupada 0670 - कृष्ण में अपने मन को दृढ करते हो, फिर भौतिक हिलना नहीं रहता
- HI/Prabhupada 0671 - आनंद का मतलब है दो, कृष्ण और तुम
- HI/Prabhupada 0672 - जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता की गारंटी है
- HI/Prabhupada 0673 - एक चिड़िया सागर को सूखने की कोशिश कर रही है
- HI/Prabhupada 0674 - इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि अपने शरीर को चुस्त रखने के लिए कितना खाना आवश्यक है
- HI/Prabhupada 0675 - एक भक्त दया का सागर है । वह दया वितरित करना चाहता है
- HI/Prabhupada 0676 - मन द्वारा नियंत्रित किए जाने का मतलब है इंद्रियों के द्वारा नियंत्रित होना
- HI/Prabhupada 0677 - गोस्वामी एक वंशानुगत शीर्षक नहीं है । यह एक योग्यता है
- HI/Prabhupada 0678 - कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है
- HI/Prabhupada 0679 - कृष्ण भावनामृत में कुछ भी किया गया, जानकरी में या अन्जाने में, उसका प्रभाव होगा ही
- HI/Prabhupada 0680 - हम सोच रहे हैं कि हम इस भूमि पर बैठे हैं, लेकिन वास्तव में हम कृष्ण पर बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0681 - अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो तुम विश्व से प्रेम करते हो
- HI/Prabhupada 0682 - भगवान मेरे अाज्ञापालक नही हैं
- HI/Prabhupada 0683 - योगी जो विष्णु रूप में समाधि में है, और एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति में, कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 0684 - योगपद्धतिकी महत्वपूर्ण परीक्षा है अगर तुम विष्णुके रूप पर अपने मनको केंद्रित कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0685 - भक्ति योग पद्धति त्वरित परिणाम, इसी जीवन में आत्म साक्षात्कार और मुक्ति
- HI/Prabhupada 0686 - झंझावात को रोक पाना कठिन होता है और उच्छृंखल मन को रोक पाना तो और भी कठिन है
- HI/Prabhupada 0687 - शून्य में अपने मन को केंद्रित करना, यह बहुत मुश्किल है
- HI/Prabhupada 0688 - माया पर धावा बोलना
- HI/Prabhupada 0689 - अगर तुम दिव्य संग करते हो, तो तुम्हारी चेतना दिव्य है
- HI/Prabhupada 0690 - भगवान शुद्ध हैं, और उनका धाम भी शुद्ध है
- HI/Prabhupada 0691 - जो हमारे समाज में दिक्षा लेना चाहता है, हम चार सिद्धांत रखते हैं
- HI/Prabhupada 0692 - भक्ति योग, योग सिद्धांतों का सर्वोच्च मंच है
- HI/Prabhupada 0693 - जब हम सेवा की बात करते हैं, कोई मकसद नहीं है । सेवा प्रेम है
- HI/Prabhupada 0694 - सेवा भाव में फिर से जाना होगा । यह एकदम सही इलाज है
- HI/Prabhupada 0695 - सस्ते में वे भगवान का चयन करते हैं । भगवान इतने सस्ते हो गए हैं 'मैं भगवान हूँ, तुम भगवान हो'
- HI/Prabhupada 0696 - भक्ति योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है
- HI/Prabhupada 0697 - आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, बस । यही मांग की जानी चाहिए
- HI/Prabhupada 0698 - इन्द्रियों की सेवा करने की बजाय, कृपया तुम राधा कृष्ण की सेवा करो, तो तुम खुश रहोगे
- HI/Prabhupada 0699 - प्रेमी भक्त, श्री कृष्ण से प्रेम करना चाहता है, अपने मूल रूप में
- HI/Prabhupada 0700 - सेवा मतलब तीन चीज़ें स्वामी, सेवक और सेवा
- HI/Prabhupada 0701 -अगर तुम स्नेह रखते हो आध्यात्मिक गुरु के लिए, इस जीवन में अपने कार्य को खत्म करना होगा
- HI/Prabhupada 0702 - मैं आत्मा हूँ, शाश्वत हूँ। अब मैं पदार्थों से दूषित हूँ, इसलिए मैं भुगत रहा हूँ
- HI/Prabhupada 0703 - अगर तुम श्री कृष्ण में अपने मन को स्थित करते हो तो यह समाधि है
- HI/Prabhupada 0704 - हरे कृष्ण मंत्र जपो और सुनने के लिए इस उपकरण (तुम्हारे कान) का उपयोग करो
- HI/Prabhupada 0705 - हम भगवद गीता में पाऍगे, भगवान का यह सबसे उत्कृष्ट विज्ञान
- HI/Prabhupada 0706 - असली शरीर भीतर है
- HI/Prabhupada 0707 - जो उत्साहित नहीं हैं, आलसी, सुस्त, वे आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ नहीं सकते हैं
- HI/Prabhupada 0708 - मछली के जीवन और मेरे जीवन के बीच का अंतर
- HI/Prabhupada 0709 - भगवान की परिभाषा
- HI/Prabhupada 0710 - हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं
- HI/Prabhupada 0711 - कृपया आपने जो शुरू किया है, उसे तोड़ें नहीं है बहुत आनंद के साथ उसे जारी रखें
- HI/Prabhupada 0712 - कृष्ण नें अादेश दिया " तुम पश्चिमी देशों में जाओ । उन्हें सिखाओ "
- HI/Prabhupada 0713 - व्यस्त मूर्ख खतरनाक है
- HI/Prabhupada 0714 - कोई भी लाभ क्यों न हो, मैं बोलूँगा कृष्ण के लिए
- HI/Prabhupada 0715 - आप भगवान का प्रेमी बन जाओ । यह प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 0716 - हमें ज्ञान से समझना चाहिए कि कृष्ण हैं क्या
- HI/Prabhupada 0717 - मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया
- HI/Prabhupada 0718 - बेटे और चेलों को हमेशा ड़ाटा जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0719 - सन्यास ले रहे हो उसे बहुत अच्छी तरह से निभाओ
- HI/Prabhupada 0720 - कृष्ण भावनामृत द्वारा तुम अपने कामुक इच्छा को नियंत्रित कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0721 - तुम ईश्वर के बारे में कल्पना नहीं कर सकते हो । यह मूर्खता है
- HI/Prabhupada 0722 - आलसी मत बनो । हमेशा संलग्न रहो
- HI/Prabhupada 0723 - रसायन जीवन से आते हैं ; जीवन रसायन से नहीं आता है
- HI/Prabhupada 0724 - भक्ति की परीक्षा
- HI/Prabhupada 0725 - चीजें हमेशा इतनी आसानी से नहीं होंगी । माया बहुत, बहुत बलवान है
- HI/Prabhupada 0726 - सुबह जल्दी उठना चहिए और हरे कृष्ण मंत्र का जाप करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0727 - मैं कृष्ण के सेवक के सेवक का सेवक हूं
- HI/Prabhupada 0728 - जो राधा-कृष्ण लीला को भौतिक समझते हैं, वे पथभ्रष्ट हैं
- HI/Prabhupada 0729 - एक सन्यासी छोटा सा अपराध करता है, उसे एक हजार गुना बढ़ाया जाता है
- HI/Prabhupada 0730 - फिर सिद्धांत बोलिया चित्ते, कृष्ण को समझने में आलसी मत बनो
- HI/Prabhupada 0731 - भागवत धर्म इस तरह के व्यक्तियों के लिए नहीं है जो जलते हैं
- HI/Prabhupada 0732 - मैं हवा या आकाश की सेवा नहीं कर सकता । मुझे एक व्यक्ति की सेवा करनी है
- HI/Prabhupada 0733 - समय बहुत कीमती है, अगर तुम लाखों सोने के सिक्के का भुगतान करो, एक पल भी वापस नहीं ला सकते
- HI/Prabhupada 0734 - जो बोल नहीं सकता है, वह एक महान वक्ता बन जाता है
- HI/Prabhupada 0735 - हम इतने मूर्ख हैं कि अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0736 - इन सभी तथाकथित या धोखा देने वाली धार्मिक प्रणालियों को त्याग दो
- HI/Prabhupada 0737 - पहला आध्यात्मिक ज्ञान यह है कि 'मैं यह शरीर नहीं हूं'
- HI/Prabhupada 0738 - कृष्ण और बलराम, चैतन्य नित्यानंद के रूप में, फिर से अवतरित हुए हैं
- HI/Prabhupada 0739 - हमें श्री चैतन्यमहाप्रभु के लिए बहुत सुंदर मंदिर का निर्माण करने का प्रय्त्न करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0740 - हमको शास्त्रों के अध्ययन से समझना होगा
- HI/Prabhupada 0741 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन का उद्देश्य है मानव समाज की मरम्मत
- HI/Prabhupada 0742 - भगवान की अचिन्त्य शक्ति
- HI/Prabhupada 0743 - अगर तुम आनंद के अपने कार्यक्रम का निर्माण करते हो तो तुम्हे थप्पड़ मिलेगा
- HI/Prabhupada 0744 - जैसे ही तुम कृष्ण को देखते हो, तुम्हे शाश्वत जीवन मिलता है
- HI/Prabhupada 0745 - तुम विश्वास करो या नहीं, कृष्ण के शब्द झूठे नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0746 - हम एक ऐसी पीढ़ी चाहते हैं जो कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर सकें
- HI/Prabhupada 0747 - द्रौपदी ने प्रार्थना की 'कृष्ण, अगर आप चाहो, आप बचा सकते हो'
- HI/Prabhupada 0748 - भगवान भक्त को संतुष्ट करना चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0749 - कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो तुम कृष्ण भावनाभावित हो जाओ
- HI/Prabhupada 0750 - क्यों माँ इतनी सम्मानीय है
- HI/Prabhupada 0751 - हमे भोजन बस अच्छी तरह से अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए लेना चाहिए
- HI/Prabhupada 0752 - जुदाई से कृष्ण को महसूस किया जा सकता है
- HI/Prabhupada 0753 - बड़े, बड़े आदमी उन्हें एक किताबों का समूह लेने दो और पढने दो
- HI/Prabhupada 0754 - बहुत शिक्षाप्रद है नास्तिक और आस्तिक के बीच एक संघर्ष
- HI/Prabhupada 0755 - समुद्र पीड़ित
- HI/Prabhupada 0756 - आधुनिक शिक्षा में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं है
- HI/Prabhupada 0757 - वह भगवान को भूल गया है उसकी चेतना को पुनर्जीवित कराओ, यही असली अच्छी चीज़् है
- HI/Prabhupada 0758 - उस व्यक्ति की सेवा करो जिसने कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है
- HI/Prabhupada 0759 - गायों को पता है कि 'ये लोग मुझे मार नहीं डालेंगे ।' वे चिंता में नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0760 - यौन जीवन इस आंदोलन में मना नहीं है, लेकिन पाखंड मना है
- HI/Prabhupada 0761 - जो भी यहां आता है, पुस्तकों को पढना चाहता है
- HI/Prabhupada 0762 - बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें । आपका यह जीवन सुरक्षित् है, आपका अगला जीवन सुरक्षित् है
- HI/Prabhupada 0763 - हर कोई गुरु बन जाएगा जब वह विशेषज्ञ शिष्य होगा, लेकिन यह अपरिपक्व प्रयास क्यों
- HI/Prabhupada 0764 - मजदूरों को लगा कि, 'यीशु मसीहा मजदूरों में से कोई एक होगा'
- HI/Prabhupada 0765 - तुम्हें पूरी तरह सचेत होना होगा कि, 'सब कुछ कृष्ण का है और अपना कुछ भी नहीं'
- HI/Prabhupada 0766 - किसी भी स्थिति में, बस श्रीमद भागवत पढ़ कर, आप खुश रहेंगें
- HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा
- HI/Prabhupada 0768 - मुक्ति अर्थात् पुनः भौतिक शरीर प्राप्त करने की जरूरत न होना । इसी को मुक्ति कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0769 - वैष्णव खुद बहुत खुश रहता है, क्योंकि उसका कृष्ण के साथ सीधा संबंध है
- HI/Prabhupada 0770 - मैं आत्मा से प्यार करता हूँ । आत्म तत्व वित । और क्यों मुझे आत्मा से प्यार है
- HI/Prabhupada 0771 - एक भक्त, भौतिक आनंद और दिव्य आनंद में एक साथ समान रूप से रुचि नहीं रख सकता है
- HI/Prabhupada 0772 - वैदिक सभ्यता की पूरी योजना है लोगों को मुक्ति देना
- HI/Prabhupada 0773 - हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0774 - हम आध्यात्मिक उन्नति के हमारे अपने तरीके का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 0775 - कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है परिवारिक लगाव
- HI/Prabhupada 0776 - अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है', यह शिक्षा का परिणाम है
- HI/Prabhupada 0777 - जितना अधिक तुम अपनी चेतना को विकसित करते हो, उतना अधिक तुम स्वतंत्रता के प्रेमी बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0778 - मानव समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान ज्ञान है
- HI/Prabhupada 0779 - तुम उस जगह में सुखी नहीं हो सकते जो दुखों के लिए बनी है
- HI/Prabhupada 0780 - हम निरपेक्ष सत्य के ज्ञान की एक झलक पा सकते हैं
- HI/Prabhupada 0781 - योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरणकमलों में मन को स्थिर करना
- HI/Prabhupada 0782 - जप करना छोड़ना नहीं । फिर कृष्ण तुम्हारी रक्षा करेंगे
- HI/Prabhupada 0783 - इस भौतिक दुनिया में हम भोग करने की भावना से आए हैं। इसलिए हम पतीत हैं
- HI/Prabhupada 0784 - अगर हम भगवान के लिए काम नहीं करते हैं तो हम माया के चंगुल में रहेंगे
- HI/Prabhupada 0785 - तो तानाशाही अच्छा है, अगर तानाशाह अत्यधिक योग्य है आध्यात्म में ।
- HI/Prabhupada 0786 - यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है
- HI/Prabhupada 0787 - लोग गलत समझते हैं, कि भगवद गीता साधारण युद्ध है, हिंसा
- HI/Prabhupada 0788 - हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्यों हम दुखी हैं क्योंकि हम इस भौतिक शरीर में हैं
- HI/Prabhupada 0789 - कर्मक्षेत्र, क्षेत्र का मालिक और क्षेत्र का पर्यवेक्षक
- HI/Prabhupada 0790 - कैसे दूसरों की पत्नी के साथ दोस्ती करनी चाहिए, और कैसे छल से दूसरों का पैसा लिया जाए
- HI/Prabhupada 0791 - हम प्रभु को संतुष्ट कर सकते हैं केवल प्रेम और भक्ति सेवा द्वारा
- HI/Prabhupada 0792 - कृष्ण का हर किसी के मित्र हुए बिना, कोई एक पल भी रह नहीं सकता है
- HI/Prabhupada 0793 - शिक्षा में कोई अंतर नहीं है । इसलिए गुरु एक है
- HI/Prabhupada 0794 - धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0795 - आधुनिक दुनिया वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता वश सक्रिय हैं, रजस तमस में
- HI/Prabhupada 0796 - मत सोचो कि मैं बोल रहा हूँ । मैं बस साधन हूँ । असली वक्ता भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0797 जो कृष्णकी ओर से, लोगोंको उपदेश दे रहे हैं, कृष्ण भावनामृतको अपनाने के लिए, वे महान सैनिक है
- HI/Prabhupada 0798 - तुम नर्तकी हो। अब तुम्हे नृत्य करना होगा । तुम शर्मा नहीं सकती
- HI/Prabhupada 0799 - पूरी स्वतंत्रता शाश्वत, आनंदित और ज्ञान से पूर्ण
- HI/Prabhupada 0800 - कार्ल मार्क्स । वह सोच रहा है कि मजदूर, कर्मचारी, उनकी इन्द्रियॉ कैसे संतुष्ट हों
- HI/Prabhupada 0801 - प्रौद्योगिकी एक ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य का व्यापार नहीं है
- HI/Prabhupada 0802 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है कि अधीर धीर हो सकता है
- HI/Prabhupada 0803 - मेरे भगवान, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, यही जीवन की पूर्णता है
- HI/Prabhupada 0804 - हमने अपने गुरु महाराज से सीखा है कि प्रचार, बहुत, बहुत ही महत्वपूर्ण बात है
- HI/Prabhupada 0805 - कृष्ण भावनाभावित में वे जानते हैं कि बंधन क्या है और मुक्ति क्या है
- HI/Prabhupada 0806 - कृष्ण और उनके प्रतिनिधियों का अनुसरण करना है, तो तुम महाजन बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0807 - ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है। यह सूक्ष्म तरीका है
- HI/Prabhupada 0808 - हम कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं
- HI/Prabhupada 0809 - दानव-तंत्र' का शॉर्टकट 'लोकतंत्र' है
- HI/Prabhupada 0810 - इस भौतिक दुनिया की खतरनाक स्थिति से उत्तेजित मत होना
- HI/Prabhupada 0811 - रूप गोस्वामी का निर्देश है किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो
- HI/Prabhupada 0812 - हम पवित्र नाम का जाप करने के लिए अनिच्छुक हैं
- HI/Prabhupada 0813 -वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकलें
- HI/Prabhupada 0814 - भगवान को कोई कार्य नहीं है । वह आत्मनिर्भर है। न तो उनकी कोई भी आकांक्षा है
- HI/Prabhupada 0815 - तो भगवान साक्षी हैं । वे परिणाम दे रहे हैं
- HI/Prabhupada 0816 - यह शरीर एक मशीन है, लेकिन हम खुद को मशीन मान रहे हैं
- HI/Prabhupada 0817 - केवल यह कहना कि ''मैं ईसाई हूं" "मैं हिंदू हूँ" 'मैं मुसलमान हूँ, कोई लाभ नहीं है
- HI/Prabhupada 0818 - सत्व गुण के मंच पर, तुम सर्वोत्तम को समझ सकते हो
- HI/Prabhupada 0819 - आश्रम का मतलब है आध्यात्मिक विकास
- HI/Prabhupada 0820 - गुरु का मतलब है जो भी वे अनुदेश देंगे, हमें किसी भी तर्क के बिना स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 0821 - पंडित का मतलब यह नहीं है कि जिसके पास डिग्री है । पंडित मतलब सम चित्ता
- HI/Prabhupada 0822 - तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से
- HI/Prabhupada 0823 - यह जन्मसिद्ध अधिकार है भारत में, वे स्वत ही कृष्ण भावनाभावित हैं
- HI/Prabhupada 0824 - आध्यात्मिक दुनिया में कोई असहमति नहीं है
- HI/Prabhupada 0825 - मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें
- HI/Prabhupada 0826 - हमारा आंदोलन है कि उस कड़ी मेहनत को कृष्ण के काम में लगाना
- HI/Prabhupada 0827 - आचार्य का कर्तव्य है शास्त्र की आज्ञा को बताना
- HI/Prabhupada 0828 - जो अपने अधीनस्थ का ख्याल रखता है, वह गुरु है
- HI/Prabhupada 0829 - चार दीवार तुम्हे सुनेंगे । यह पर्याप्त है। निराश मत होना । जप करते रहो
- HI/Prabhupada 0830 - यह वैष्णव तत्त्वज्ञान है । हम दास बनने की कोशिश कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0831 - हम असाधु मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकते । हमें साधु मार्ग का अनुसरण करना चाहिए
- HI/Prabhupada 0832 - शुद्धता धर्मपरायण के साथ ही होती है
- HI/Prabhupada 0833 - तुम कृष्ण, वैष्णव, गुरु और अग्नि के सामने प्रतिज्ञा ले रहे हो, सेवा के लिए ।
- HI/Prabhupada 0834 - भक्ति केवल भगवान के लिए ही है
- HI/Prabhupada 0835 - आधुनिक राजनेता कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्तेकी तरह मेहनत करना चाहते है
- HI/Prabhupada 0836 - हमें मानव जीवन की पूर्णता के लिए कुछ भी बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0837 - हम तब तक शक्तिशाली रहते हैं जब तक कृष्ण हमें रखते हैं
- HI/Prabhupada 0838 - सब कुछ शून्य हो जाएगा जब भगवान नहीं रहते
- HI/Prabhupada 0839 - जब हम बच्चे हैं और प्रदूषित नहीं हैं, हमें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए भागवत धर्म मे
- HI/Prabhupada 0840 - एक वेश्या थी जिसका वेतन था हीरे के एक लाख टुकड़े
- HI/Prabhupada 0841 - आध्यात्मिक द्रष्टि से, अविर्भाव और तीरोभाव के बीच कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 0842 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन, निवृत्ति मार्ग का प्रशिक्षण है, बुनियादी सिद्धांत, कई मनाई हैं
- HI/Prabhupada 0843 - उनके जीवन की शुरुआत ही बहुत गलत है । वे इस शरीर को आत्मा मान रहे हैं
- HI/Prabhupada 0844 - केवल राजा को प्रसन्न करके, तुम भगवान को प्रसन्न कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0845 - कुत्ता भी जानता है कि कैसे यौन जीवन के उपयोग करें । फ्रायड के तत्वज्ञान की आवश्यकता नहीं ह
- HI/Prabhupada 0846 - भौतिक दुनिया है छाया, आध्यात्मिक दुनिया का प्रतिबिंब
- HI/Prabhupada 0847 - कलियुग का यह वर्णन श्रीमद भागवतम में दिया गया है
- HI/Prabhupada 0848 - कोई भी गुरु नहीं बन सकता जब तक वह कृष्ण तत्त्व नहीं जानता हो
- HI/Prabhupada 0849 - हम भगवान को देखना चाहते हैं, लेकिन हम स्वीकार नहीं करते हैैं कि हम योग्य नहीं हैं
- HI/Prabhupada 0850 - अगर कुछ पैसे मिलें, तो पुस्तकें छापो
- HI/Prabhupada 0851 - चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0852 - आपके हृदय की गहराईओं में, भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0853 - एसा नहीं है कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें है
- HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0856 - अात्मा भी व्यक्ति है जितने के भगवान व्यक्ति हैं
- HI/Prabhupada 0857 - कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में अाते हैं
- HI/Prabhupada 0858 - हम प्रशिक्षण दे रहे हैं, हम वकालत कर रहे हैं कि अवैध यौन संबंध पाप है
- HI/Prabhupada 0859 - यही पश्चिमी सभ्यता का दोष है। वोक्स पोपुलै, जनता की राय लेना
- HI/Prabhupada 0860 - यह ब्रिटिश सरकार की नीति थी कि हर भारतीय चीज़ की निंदा करना
- HI/Prabhupada 0861 - मेलबोर्न शहर के सभी भूखे पुरुष, यहाँ आओ, तुम भर पेट खाना खाअो
- HI/Prabhupada 0862 - जब तक तुम समाज को नहीं बदलते, तुम समाज कल्याण कैसे कर सकते हो
- HI/Prabhupada 0863 - तुम मांस खा सकते हो, लेकिन तुम अपने पिता और माता की हत्या करके मांस नहीं खा सकते हो
- HI/Prabhupada 0864 - पूरे मानव समाज को सुखी करने के लिए, यह भगवद भावनामृत आंदोलन फैलना बहुत आवश्यक है
- HI/Prabhupada 0865 - तुम देश को ले रहे हो, लेकिन शास्त्र ग्रहों को लेता है, देश को नहीं
- HI/Prabhupada 0866 - सब कुछ मर जाएगा - पेड़, पौधे, पशु, सब कुछ
- HI/Prabhupada 0867 - हम शाश्वत हैं और हम अपनी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं । यही ज्ञान है
- HI/Prabhupada 0868 - हम जीवन के इस भयानक स्थिति से बच रहे हैं। तुम खुशी से बच रहे हो
- HI/Prabhupada 0869 - जनता व्यस्त मूर्ख है । तो हम आलसी बुद्धिमान पैदा कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 0870 - यह क्षत्रिय का कर्तव्य है, बचाना, रक्षा करना
- HI/Prabhupada 0871 - राजा प्रथम श्रेणी के ब्राह्मण, साधु, द्वारा नियंत्रित थे
- HI/Prabhupada 0872 - यह जरूरी है कि मानव समाज चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0873 - भक्ति का मतलब है अपने को उपाधियों से शुद्ध करना
- HI/Prabhupada 0874 - जो आध्यात्मिक मंच पर उन्नत हैं, वह प्रसन्नात्मा है । वह खुश है
- HI/Prabhupada 0875 - अपने खुद के भगवान के नाम का जाप करो । कहाँ आपत्ति है - लेकिन भगवान के पवित्र नाम का जाप करो
- HI/Prabhupada 0876 - जब तुम आनंद के आध्यात्मिक महासागर पर आओगे, इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होगी
- HI/Prabhupada 0877 - अगर तुम आदर्श नहीं हो, तो यह केंद्र खोलना बेकार होगा
- HI/Prabhupada 0878 - भारत में वैदिक सभ्यता का पतन
- HI/Prabhupada 0879 - विनम्रता भक्ति सेवा में बहुत अच्छी है
- HI/Prabhupada 0880 - कृष्ण भावनामृत को कृष्ण को परेशान करने के लिए अपनाया है, या तुम वास्तव में गंभीर हो
- HI/Prabhupada 0881 - यद्यपि भगवान अदृश्य हैं, अब वे दिखाई देने के लिए अवतरित हुए हैं, कृष्ण
- HI/Prabhupada 0882 - कृष्ण बहुत उत्सुक हैं हमें परम धाम ले जाने के लिए, पर हम ज़िद्दी हैं
- HI/Prabhupada 0883 - अपनी आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0884 - हम बैठे हैं और कृष्ण के बारे में पृच्छा कर रहे हैं । यही जीवन है
- HI/Prabhupada 0885 - आध्यात्मिक आनंद समाप्त नहीं होता । यह बढ़ता है
- HI/Prabhupada 0886 - व्यक्ति भागवत या पुस्तक भागवत, तुम सेवा करो । फिर तुम स्थिर रहोगे
- HI/Prabhupada 0887 - वेद का मतलब है ज्ञान, और अन्त का मतलब अंतिम चरण, या अंत
- HI/Prabhupada 0888 - हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और भगवान का साक्षात्कार करो
- HI/Prabhupada 0889 - अगर तुम एक सेंट रोज़ जमा करते हो, एक दिन यह एक सौ डॉलर हो सकता है
- HI/Prabhupada 0890 - कितना समय लगता है कृष्णा को आत्मसमर्पण करने के लिए?
- HI/Prabhupada 0891 - कृष्ण नियमित आवर्तन से कई सालों के बाद इस ब्रह्मांड में अवतरित होते हैं
- HI/Prabhupada 0892 - अगर तुम शिक्षा से गिर जाते हो, तो कैसे तुम शाश्वत सेवक रह सकते हो ?
- HI/Prabhupada 0893 - यह हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम नहीं करना चाहता
- HI/Prabhupada 0894 - कर्तव्य करना ही है । थोड़ी पीड़ा हो तो भी। यही तपस्या कहा जाता है
- HI/Prabhupada 0895 - एक भक्त खतरनाक स्थितिको आपत्तिजनक स्थितिके रूपमें कभी नहीं लेता है । वह स्वागत करता है
- HI/Prabhupada 0896 - जब हम किताब बेचते हैं, यह कृष्ण भावनामृत है
- HI/Prabhupada 0897 - अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो, यह तुम्हारा लाभ है
- HI/Prabhupada 0898 - क्योंकि मैं एक भक्त बन गया हूँ, कोई खतरा नहीं होगा, कोई दुख नहीं होगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0899 - भगवान मतलब बिना प्रतिस्पर्धा के : एक । भगवान एक हैं । कोई भी उनसे महान नहीं है
- HI/Prabhupada 0900 - जब इन्द्रियों को इन्द्रिय संतुष्टि के लिए उपयोग किया जाता है, यह माया है
- HI/Prabhupada 0901 - अगर मैं ईर्ष्या नहीं करता हूँ, तो मैं आध्यात्मिक दुनिया में हूँ । कोई भी जांच कर सकता है
- HI/Prabhupada 0902 - कमी है कृष्ण भावनामृत की तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तब सब कुछ पर्याप्त है
- HI/Prabhupada 0903 - जैसे ही नशा खत्म होगा, तुम्हारे सभी नशीले स्वप्न भी खत्म हो जाते हैं
- HI/Prabhupada 0904 - तुमने भगवान की संपत्ति चुराई है
- HI/Prabhupada 0905 - असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है
- HI/Prabhupada 0906 - तुम्हारे पास शून्य है । कृष्ण को रखो । तुम दस बन जाते हो
- HI/Prabhupada 0907 - आध्यात्मिक दुनिया में, तथाकथित अनैतिकता भी अच्छी है
- HI/Prabhupada 0908 - मैं सुखी होने की कोशिश कर सकता हूँ, अगर कृष्ण मंजूरी नहीं देते हैं, मैं कभी सुखी नहीं हूँगा
- HI/Prabhupada 0909 - मुझे मजबूर किया गया इस स्थिति में आने के लिए मेरे गुरु महाराज के आदेश का पालन करने के लिए
- HI/Prabhupada 0910 - हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम कृष्ण द्वारा शाषित रहे । यही सफल जीवन है
- HI/Prabhupada 0911 - अगर तुम भगवान में विश्वास करते हो, तो तुम सभी जीवों पर समान तरह से कृपालु और दयालु होंगे
- HI/Prabhupada 0912 - जो बुद्धिमत्ता में उन्नत हैं, वो भगवान को भीतर और बाहर देख सकते हैं
- HI/Prabhupada 0913 - कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान, और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं
- HI/Prabhupada 0914 - पदार्थ कृष्ण की एक शक्ति है, और अात्मा एक और शक्ति
- HI/Prabhupada 0915 - साधु मेरा ह्दय है, और मैं भी साधु का ह्दय हूँ
- HI/Prabhupada 0916 - कृष्ण को आपके अच्छे कपड़े या अच्छा फूल या अच्छे भोजन की आवश्यकता नहीं है
- HI/Prabhupada 0917 - सारा संसार इन्द्रियों की सेवा कर रहा है, इन्द्रियों का सेवक
- HI/Prabhupada 0918 - कृष्ण का शत्रु बनना बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनो
- HI/Prabhupada 0919 - कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं
- HI/Prabhupada 0920 - क्योंकि जीवन शक्ति, आत्मा है, पूरा शरीर काम कर रहा है
- HI/Prabhupada 0921 - क्या तुम श्रीमान निक्सन का संग करने पर बहुत गर्व महसूस नहीं करोगे ?
- HI/Prabhupada 0922 - हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो
- HI/Prabhupada 0923 - इन चार स्तम्भों को तोड़ो । तो पापी जीवन की छत गिर जाएगी
- HI/Prabhupada 0924 - केवल नकारात्मक्ता का कोई अर्थ नहीं है। कुछ सकारात्मक होना चाहिए
- HI/Prabhupada 0925 - कामदेव हर किसी को मोहित करते है । और कृष्ण कामदेव को मोहित करते हैं
- HI/Prabhupada 0926 - ऐसी कोई कारोबार नहीं । यह जऱूरी है । कृष्ण उस तरह का प्रेम चाहते हैं
- HI/Prabhupada 0927 - कैसे तुम कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है
- HI/Prabhupada 0928 - केवल कृष्ण के लिए अपने विशुद्ध प्रेम को बढ़ाअो । यही जीवन की पूर्णता है
- HI/Prabhupada 0929 - स्नान करना, यह भी अादत नहीं है । शायद एक हफ्ते में एक बार
- HI/Prabhupada 0930 - तुम इस भौतिक स्थिति से बाहर निकलो । तब वास्तविक जीवन है, अनन्त जीवन
- HI/Prabhupada 0931 - अगर कोई अजन्मा है तो वह कैसे मर सकता है ? मृत्यु का कोई सवाल ही नहीं है
- HI/Prabhupada 0932 - कृष्ण जन्म नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ मूर्खों को एेसा दिखाई देता है
- HI/Prabhupada 0933 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को पशु जीवन में पतन होने से बचाने की कोशिश करता है
- HI/Prabhupada 0934 - आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है
- HI/Prabhupada 0935 - जीवन की वास्तविक आवश्यकता आत्मा के आराम की आपूर्ति है
- HI/Prabhupada 0936 - केवल वादा; 'भविष्य में ।' 'लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?'
- HI/Prabhupada 0937 - कौआ हंस के पास नहीं जाएगा । हंस कौए के पास नहीं जाएगा
- HI/Prabhupada 0938 - यीशु मसीह, कोई गलती नहीं है । केवल एक मात्र गलती थी वह भगवान के बारे मे प्रचार कर रहे थे
- HI/Prabhupada 0939 - कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो
- HI/Prabhupada 0940 - आध्यात्मिक दुनिया मतलब कोई काम नहीं । बस आनंद, हर्ष
- HI/Prabhupada 0941 - हमारे छात्रों में से कुछ, वे सोचते हैं कि 'क्यों मैं इस मिशन के लिए काम करूँ?
- HI/Prabhupada 0942 - हमने कृष्ण को भूलकर अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है
- HI/Prabhupada 0943 - कुछ भी मेरा नहीं है । इशावास्यम इदम सर्वम, सब कुछ कृष्ण का है
- HI/Prabhupada 0944 - केवल आवश्यकता यह है कि हम कृष्ण की व्यवस्था का लाभ लें
- HI/Prabhupada 0945 - भागवत-धर्म का मतलब है भक्त और भगवान के बीच का संबंध
- HI/Prabhupada 0946 - हम इस तथाकथित भ्रामक सुख के लिए एक शरीर से दूसरे में प्रवेश करते हैं
- HI/Prabhupada 0947 - हमें बहुत स्वतंत्रता मिली है, लेकिन अभी हम इस शरीर से बद्ध हैं
- HI/Prabhupada 0948 - यह युग कलि कहलता है, यह बहुत अच्छा समय नहीं है । केवल असहमति और लड़ाई
- HI/Prabhupada 0949 - हम शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हम हमारे दांतों का अध्ययन नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 0950 - हमारा पड़ोसी भूखा मर सकता है, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं है
- HI/Prabhupada 0951 - आम के पेड़ के शीर्ष पर एक बहुत परिपक्व फल है
- HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है
- HI/Prabhupada 0953 - जब आत्मा स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो वह नीचे गिर जाता है । यही भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0954 - जब हम इन नीच गुणों पर विजय पाते हैं, तब हम सुखी होते हैं
- HI/Prabhupada 0955 - ज्य़ादातर जीव, वे आध्यात्मिक दुनिया में हैं । केवल कुछ ही नीचे गिरते हैं
- HI/Prabhupada 0956 - कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा : ' स्कूल जाअो ' नहीं । वे कुत्ते हैं
- HI/Prabhupada 0957 - मुहम्मद कहते हैं कि वे भगवान के दास हैं । मसीह कहते हैं कि वे भगवान के पुत्र हैं
- HI/Prabhupada 0958 - अाप गायों को प्यार नहीं करते; आप उन्हें कसाईखाने भेज देते हो
- HI/Prabhupada 0959 - भगवान को भी विवेक है । बुरा तत्व हैं
- HI/Prabhupada 0960 - जो भगवान के अस्तित्व से इनकार करता हैं, वो पागल हैं
- HI/Prabhupada 0961 - हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं
- HI/Prabhupada 0962 - हम ठोस तथ्य के रूप में भगवान को मानते हैं
- HI/Prabhupada 0963 - केवल कृष्ण का एक भक्त जो उनसे घनिष्टता के संबंध रखता है भगवद गीता को समझ सकता है
- HI/Prabhupada 0964 - जब कृष्ण इस ग्रह पर विद्यमान थे, वे गोलोक वृन्दावन में अनुपस्थित थे । नहीं
- HI/Prabhupada 0965 - हमें उस व्यक्ति की शरण लेना है जिसका जीवन कृष्ण को समर्पित है
- HI/Prabhupada 0966 - हम भगवान के दर्शन कर सकते हैं जब आंखें रंगीं हो भक्ति के काजल से
- HI/Prabhupada 0967 - कृष्ण को, भगवान को, समझने के लिए हमें अपनी इन्द्रियों को शुद्ध करना होगा
- HI/Prabhupada 0968 - पश्चिमी तत्वज्ञान सुखवाद का है, खाअो, पियो, ऐश करो
- HI/Prabhupada 0969 - अगर तुम अपनी जीभ को भगवान की सेवा में लगाते हो, वे खुद को तुम्हे प्रकट करेंगे
- HI/Prabhupada 0970 - जीभ को हमेशा भगवान की महिमा करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0971 - तो जब तक तुम जीवन की शारीरिक अवधारणा में हो, तुम जानवर से बेहतर नहीं हो
- HI/Prabhupada 0972 - समझने की कोशिश करो 'किस तरह का शरीर मुझे अगला मिलेगा?
- HI/Prabhupada 0973 - अगर वह सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह निश्चित रूप से भगवद धाम वापस जाता है
- HI/Prabhupada 0974 - हमारी महानता बहुत, बहुत छोटी है, अत्यल्प । भगवान बहुत महान हैं
- HI/Prabhupada 0975 - हम छोटे भगवान हैं । सूक्ष्म, नमूने के भगवान
- HI/Prabhupada 0976 - जनसंख्या के अधिक होने का कोई सवाल नहीं है । यह एक गलत सिद्धांत है
- HI/Prabhupada 0977 - यह भौतिक शारीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है
- HI/Prabhupada 0978 - अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे
- HI/Prabhupada 0979 - भारत की हालत बहुत ही अराजक है
- HI/Prabhupada 0980 - हम भौतिक समृद्धि से सुखी नहीं हो सकते, यह एक तथ्य है
- HI/Prabhupada 0981 - पहेले हर ब्राह्मण ये दो विज्ञान सीखते थे, आयुर्वेद और ज्योतिर वेद
- HI/Prabhupada 0982 - जैसे ही हमें एक गाडी मिलती है, कितनी भी खराब क्यों न हो, हमें लगता है कि यह बहुत अच्छा है
- HI/Prabhupada 0983 - भौतिकवादी व्यक्ति, वे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं
- HI/Prabhupada 0984 - हिंदुओं का एक भगवान है और ईसाइयों का दूसरा भगवान है । नहीं । भगवान दो नहीं हो सकते हैं
- HI/Prabhupada 0985 - मनुष्य जीवन विशेष रूप से परम सत्य के बारे में जिज्ञासा करने के लिए है
- HI/Prabhupada 0986 - कोई भी भगवान से ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकता
- HI/Prabhupada 0987 - यह मत सोचो कि भगवद भावनामृत में तुम भूखे रहोगे । तुम कभी भूखे नहीं रहोगे
- HI/Prabhupada 0988 - श्रीमद-भागवतम में तथाकथित भावुक धर्मनिष्ठा नहीं है
- HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग
- HI/Prabhupada 0990 - प्रेम का मतलब यह नहीं 'मैं खुद को प्यार करता हूँ' और प्रेम पर ध्यान करता हूं । नहीं
- HI/Prabhupada 0991 - जुगल प्रीति : राधा और कृष्ण के बीच का प्रेम
- HI/Prabhupada 0992 - अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है
- HI/Prabhupada 0993 - यह व्यवस्था करो कि वह भूखा नहीं रहा है । यह आध्यात्मिक साम्यवाद है
- HI/Prabhupada 0994 - भगवान और हमारे बीच क्या अंतर है?
- HI/Prabhupada 0995 - कृष्ण भावनामृत अंदोलन क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है
- HI/Prabhupada 0996 - मैंने तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियों को रिश्वत नहीं दी थी मेरा अनुसरण करने के लिए
- HI/Prabhupada 0997 - कृष्ण का कार्य हर किसी के लिए है । इसलिए हम हर किसी का स्वागत करते हैं
- HI/Prabhupada 0998 - एक साधु का कार्य है सभी जीवों का कल्याण
- HI/Prabhupada 0999 - अात्मवित मतलब वो व्यक्ति जो आत्मा को जानता है
- HI/Prabhupada 1000 - माया हमेशा मौके की तलाश में है, छिद्र, कैसे तुम पर फिर से कब्जा करें
- HI/Prabhupada 1001 - कृष्ण भावनामृत हर किसी के हृदय में सुषुप्त है
- HI/Prabhupada 1002 - यदि मैं भगवान से किसी लाभ के लिये प्रेम करूँ, तो वह व्यापार है; वो प्रेम नहीं है
- HI/Prabhupada 1003 - व्यक्ति भगवान के पास गया है, भगवान आध्यात्मिक है, लेकिन वो भौतिक लाभ मांग रहा है
- HI/Prabhupada 1004 - बिल्लियों और कुत्तों की तरह काम करते रहना और मर जाना । ये बुद्धिमता नहीं है
- HI/Prabhupada 1005 - कृष्ण भावनामृत के बिना, आपकी केवल बकवास इच्छाए होंगीं
- HI/Prabhupada 1006 - हम जाति व्यवस्था प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1007 - जहाँ तक कृष्ण भावनामृत का संबंध है, हम समान रूप से वितरित करते हैं
- HI/Prabhupada 1008 - मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया 'जाओ और पश्चिमी देशों में इस पंथ का प्रचार करो'
- HI/Prabhupada 1009 - अगर तुम गुरु को भगवान की तरह सम्मान देते हो, तो उन्हे भगवानकी तरह सुविधा भी देनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1010 - तुम लकड़ी, पत्थर देख सकते हो । तुम आत्मा नहीं देख सकते
- HI/Prabhupada 1011 - धर्म क्या है यह तुम्हे भगवान से सीखना होगा । तुम अपने मन से धर्म का निर्माण नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1012 - सुनना और दोहराना, सुनना और दोहराना । आपको निर्माण करने की अावशयक्ता नहीं है
- HI/Prabhupada 1013 - अगली मृत्यु से पहले हमें अति शीध्र प्रयास करना चाहिए
- HI/Prabhupada 1014 - एक ढोंगी नकली भगवान अपने शिष्य को सिखा रहा था और वह बिजली के झटके महसूस कर रहा था
- HI/Prabhupada 1015 - जब तक पदार्थ के पीछे अात्मा नहीं होती है, कुछ भी निर्माण नहीं किया जा सकता है
- HI/Prabhupada 1016 - भागवतम कहता है कि हर वस्तु का मूल स्रोत संवेदनशील है । सचेत
- HI/Prabhupada 1017 - ब्रह्मा मूल सृजनकर्ता नहीं हैं । मूल सृजनकर्ता कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1018 - शुरुआत में हमें लक्ष्मी नारायण के स्तर में राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1019 - अगर तुम कृष्ण के लिए कुछ सेवा करते हो, तो कृष्ण तुम्हे सौ गुना पुरस्कृत करेंगे
- HI/Prabhupada 1020 - हृदय प्रेम के लिए ही है, परन्तु आप क्यों इतने कठोर हृदय के हो ?
- HI/Prabhupada 1021 - अगर बद्ध जीव से कोई सहानुभूति करता है, तो वह एक वैष्णव है
- HI/Prabhupada 1022 - पहली बात हमें यह सीखना है कि प्रेम कैसे करना है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 1023 - अगर भगवान सर्व शक्तिशाली हैं, तुम क्यों उनकी शक्ति को घटाते हो, कि वे अवतरित नहीं हो सकते ?
- HI/Prabhupada 1024 - अगर तुम इन दो सिद्धांतों का पालन करते हो, कृष्ण तुम्हारी पकड़ में होंगे
- HI/Prabhupada 1025 - कृष्ण केवल प्रतीक्षा कर रहे हैं 'कब यह धूर्त मेरी तरफ अपना चेहरा मोडेगा ?'
- HI/Prabhupada 1026 - अगर हम समझ जाते हैं कि कृष्ण भोक्ता हैं, हम नहीं - यही आध्यात्मिक दुनिया है
- HI/Prabhupada 1027 - मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और समाज मेरे सैनिक हैं । अगर मैं मुसीबत मे हूँ, वे मेरी मदद करेंगे
- HI/Prabhupada 1028 - ये सभी नेता, वे स्थिति को बिगाड़ रहे हैं
- HI/Prabhupada 1029 - हमारा धर्म वैराग्य नहीं कहता है । हमारा धर्म भगवान से प्रेम करना सिखाता है
- HI/Prabhupada 1030 - मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एमात्र उद्देश्य है
- HI/Prabhupada 1031 - प्रत्येक जीव, वे भौतिक अावरण से ढके हैं
- HI/Prabhupada 1032 - अपने आपक को भौतिक शक्ति से आध्यात्मिक शक्ति की और ले जाने की पद्धति
- HI/Prabhupada 1033 - यीशु मसीह भगवान के पुत्र हैं, भगवान के श्रेष्ठ पुत्र, तो उनके प्रति हमें पूरा सम्मान है
- HI/Prabhupada 1034 - मृत्यु का अर्थ है सात महीनों की नींद । बस । यही मृत्यु है
- HI/Prabhupada 1035 - हरे कृष्ण जप द्वारा अपने अस्तित्व की वास्तविक्ता को समझो
- HI/Prabhupada 1036 - सात ग्रह प्रणालियॉ हमारे उपर हैं और सात ग्रह प्रणालियॉ नीचे भी हैं
- HI/Prabhupada 1037 - इस भौतिक जगत में हम देखते हैं कि लगभग हर कोई भगवान को भूल गया है
- HI/Prabhupada 1038 - शेर का ख़ुराक दूसरा जानवर है । मनुष्य का ख़ुराक फल, अनाज, दूध की उत्पाद है
- HI/Prabhupada 1039 - गाय माँ है क्योंकि हम गाय का दूध पीते हैं । मैं कैसे नकार सकता हूँ कि वह माँ नहीं है ?
- HI/Prabhupada 1040 - मानव जीवन का हमारा मिशन दुनिया भर में असफल हो रहा है
- HI/Prabhupada 1041 - केवल लक्षणात्मक उपचार से तुम मनुष्य को स्वस्थ नहीं कर सकते
- HI/Prabhupada 1042 - मैं आपके मोरिशियस में देखता हूं, आपके पास अनाज के उत्पादन के लिए पर्याप्त भूमि है
- HI/Prabhupada 1043 - हम कोका कोला नहीं पीते हैं । हम पेप्सी कोला नहीं पीते हैं । हम धूम्रपान नहीं करते हैं
- HI/Prabhupada 1044 - मेरे बचपन में मैं दवाई नहीं लेता था
- HI/Prabhupada 1045 - मैं क्या कहूं ? हर बकवास व्यक्ति कुछ बकवास बात करेगा । मैं इसे कैसे रोक सकता हूं ?
- HI/Prabhupada 1046 - तय करो कि क्या एेसा शरीर पाना है जो कृष्ण के साथ नृत्य करने में, बात करने में सक्षम है
- HI/Prabhupada 1047 - उसने कुछ मिथ्या कर्तव्य को अपनाया है और उसके लिए कडी मेहनत कर रहा है, इसलिए वह एक गधा है
- HI/Prabhupada 1048 - तुम कभी सुखी नहीं रहोगे - पूर्ण शिक्षा - जब तक तुम भगवद धाम वापस नहीं जाते हो
- HI/Prabhupada 1049 - गुरु भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है
- HI/Prabhupada 1050 - 'तुम ऐसा करो और मुझे पैसे दो और तुम सुखी हो जाओगे' - वह गुरु नहीं है
- HI/Prabhupada 1051 - मैने गुरु के शब्दों को अपनाया, जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में
- HI/Prabhupada 1052 - माया के प्रभाव में अाकर हम सोच रहे हैं कि 'यह मेरी संपत्ति है'
- HI/Prabhupada 1053 - क्योंकि तुम्हे समाज को चलाना है, इसका मतलब यह नहीं कि तुम असली बात भूल जाअो
- HI/Prabhupada 1054 - वैज्ञानिक, तत्वज्ञानी, विद्वान - सभी नास्तिक
- HI/Prabhupada 1055 - देखो कि अपना कर्तव्य करते हुए अापने भगवान को प्रसन्न किया है या नहीं
- HI/Prabhupada 1056 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन आध्यात्मिक मंच पर है, शरीर, मन और बुद्धि से ऊपर
- HI/Prabhupada 1057 - भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार
- HI/Prabhupada 1058 - भगवद गीता के वक्ता भगवान श्री कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1059 - प्रत्येक व्यक्ति का भगवान के साथ विशिष्ट संबंध है
- HI/Prabhupada 1060 - जब तक कोई भगवद गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है...
- HI/Prabhupada 1061 - इस भगवद गीता की विषयवस्तु में पाँच मूल सत्यों का ज्ञान निहित है
- HI/Prabhupada 1062 - हमारी वृत्ति भौतिक प्रकृति को नियंत्रित करने की है
- HI/Prabhupada 1063 - हमें सभी प्रकार के कर्मफल से मुक्ति दो
- HI/Prabhupada 1064 - भगवान हरेक जीव के हृदय में वास करते हैं
- HI/Prabhupada 1065 - व्यक्ति को सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि वो यह शरीर नहीं है
- HI/Prabhupada 1066 - अल्पज्ञानी लोग परम सत्य को निराकार मानते हैं
- HI/Prabhupada 1067 - हमें भगवद गीता को किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी के बग़ैर, बिना घटाए स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 1068 - विभिन्न प्रकार के गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म हैं
- HI/Prabhupada 1069 - रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं
- HI/Prabhupada 1070 - सेवा करना जीव का शाश्वत धर्म है
- HI/Prabhupada 1071 - अगर हम भगवान का संग करते हैं, उनका सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं
- HI/Prabhupada 1072 - भौतिक जगत को छोड़ना और नित्य धाम में अनन्दमय जीवन पाना
- HI/Prabhupada 1073 - जब तक हम भौतिक प्रकृति पर प्रभुत्व जताने की प्रवृत्ति को नहीं त्यागते
- HI/Prabhupada 1074 - इस संसार में जितने भी दुख का हम अनुभव करते हैं - ये सब शरीर से उत्पन्न है
- HI/Prabhupada 1075 - इस जीवन के कर्मो से हम अगले जीवन की तैयारी कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1076 - मृत्यु के समय हम या तो इस संसार में रह सकते हैं या आध्यात्मिक जगत जा सकते हैं
- HI/Prabhupada 1077 - भगवान पूर्ण हैं, उनके नाम और उनमे कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 1078 - मन तथा बुद्धि को चौबीस घंटे भगवान के विचार में लीन करना
- HI/Prabhupada 1079 - भगवद गीता एक दिव्य साहित्य है जिसको हमें ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए
- HI/Prabhupada 1080 - भगवद गीता में संक्षेप रुप से बताया है - एक ईश्वर कृष्ण हैं, वे सांप्रदायिक ईश्वर नहीं हैं